भगवान शिवशंकर के पाँच गूढ़ रहस्यों पर से हिन्दी महिला समिति ने उठाया पर्दा
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नागपुर। श्रावण के इस पावन अवसर पर हिन्दी महिला समिति की बहनों ने भगवान शिवशंकर के पाँच ऐसे गूढ़ रहस्यों पर से पर्दा उठाया जो बहुत कम लोगों को ज्ञात था। हम सभी लाभान्वित हुए।
उक्त विषय पर सभी के विचार इस प्रकार हैं,
भगवती पंत के अनुसार शिव आराधना में मग्न भक्त स्तुति करता है। चंद्र ललाट गले सर्प माल जटा में गंग समाये हुए हैं। शिव के व्यक्तित्व के इस रूप को प्रदर्शित करने का बड़ा गूढ़ रहस्य है। जिनमें में से पांच रहस्य को मैं बताना चाहती हूँ। शिव को अंतरिक्ष का देवता माना गया है।
आकाश शिव की जटायें हैं। इस कारण इनको व्योमकेश कहा गया है। ये जटायें पवन या वायु के प्रवाह का संकेत हैं। यही वायु हर जीव की सांस में प्राण का काम करती है। उन्होंने पवित्र गंगा के संहारकारी वेग को अपनी जटाओं में रोक कर पृथ्वी पर पवित्रता,शांति व निरंतर कर्म करने की प्रेरणा का संदेश देकर पृथ्वी पर भेजा। ललाट पर अर्द्ध चंद्रमा विष से नीले पड़े कंठ को शांति देता है। अर्थात हमें क्रोध को नियंत्रित करना चाहिये। तीन नेत्र - दोनों भौंहों के बीच तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है।
इसके खुलने का अर्थ है जीवन को ज्ञान व निष्काम रह कर जीने में ही सार्थकता है। यह सत, रज, तम तीनो गुण, भूत, भविष्य,वर्तमान तीनों कालों, तथा पृथ्वी, स्वर्ग, और पाताल तीनों का प्रतीक है। अत : इन्हें त्र्यंबक कहा गया है। गले में विषधारी सर्प व बाघंबर का अर्थ है कि मनुष्य को नकारात्मक शक्तियों के साथ रह कर भी स्वयं को सकारात्मक बनाये रखना चाहिये। भस्म इस बात का प्रतीक है कि यह शरीर एक दिन भस्म के रूप में ही परिवर्तित होजायेगा। इसलिये अहंकार व्यर्थ है।
रेखा तिवारी के अनुसार शिव के जब हम दर्शन करते है तो अनेक नाम से स्तुति करते हैं। उनका व्यक्तित्व रहस्यो की गूढ़ता लिए हैं। वे समशान में रहते हैं। यही मृत्यु जीवन का सत्य हैं। खाली हाथ आये हैं खाली हाथ जाना हैं। माथे पर चंद्र एवं जटा में गंगा को धारण किया हैं, यही गंगा संहार का काम करती है। चंद्र शांत करता हैं, उनके हला हल प्राशन को। उनके तीन नेत्र हैं वे स्वर्ग, धरा, पाताल का प्रतिक हैं एवं वे महाकाल भी हैं काल पर केवल और केवल शिव ही विजय पाते हैं। शिव को भस्म धारण करने वाला भी कहते है, माला सर्पो की पहनते हैं एवं व्योम रुपानंद, अंतरिक्ष का स्वामी कहते हैं। ऐसे शिव जड़, चेतन अविनाशी हैं। वे सत्यं, शिव सुंदर हैं। नमन करते शिव को बार बार। ओम नमह शिवाय नमः शिवाय।
गीतू शर्मा के अनुसार वैसे तो आदिदेव महादेव के रहस्यों का पार पाना लगभग असम्भव है। परंतु उनसे जुड़े कुछ रहस्यमई तथ्य है। भगवान भोलेनाथ का तीसरा नेत्र साक्षात ज्योति पुंज का सूचक है और केवल विनाश के लिए ही खुलता है। भगवान भोलेनाथ का विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ था, सती माता के ही पुनरावतार माता पार्वती से उनका पुनः विवाह हुआ।
भगवान भोलेनाथ चारों युगों क्रमशः सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा वर्तमान में कलयुग में भी मौजूद है।
भगवान भोलेनाथ के गले में जो नागदेवता विराजमान है उनका नाम 'वासुकी' तथा उनके धनुष का नाम 'पिनाक' है। भगवान भोलेनाथ एकमात्र देव है जिनकी अर्ध नारेश्वर स्वरूप में पूजा की जाती है।
निशा चतुर्वेदी के अनुसार ओम् नमःशिवाय हर हर महादेव जय श्री राम हर अनन्त हरि कथा अनन्ता। बहुत ही पवित्र मास श्रावण मास में लेखनी भोलेनाथ के के गुणों का बखान करने का प्रयास करेगी उपलब्ध तथ्यों के आधार पर। त्रिनेत्र धारी शिव के पाँच मुखों से पंचतत्वों जल,वायु अग्नि, आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। जगत कल्याण कामना से शिव के अनेक अवतार हुए उनमें से प्रमुख सद्योजात, नामदेव, तत्पुरुष और ईशान प्रमुख हैं। एक मान्यता के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में शिव ने पंचमुख धारण कर जीवन उत्पन्न किया। भगवान शिव का विष्णु से अनन्य प्रेम है। वह एक दूसरे का ध्यान करने के कारण शिव गौरवर्ण व विष्णु श्याम वर्ण हैं।
शिव के चार मुख चार दिशाओं में पाँचवाँ मध्य में है वो पंचानन कहलाते हैं। भगवान शिव का पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक समान शुद्ध निर्विकार है उत्तर दिशा का मुख वामदेव विकारों को दूर करने वाला। दक्षिण मुख अघोर कर्म करने वाले भी उनकी कृपा से निन्दित कर्म को भी शुद्ध बना लेते हैं ।शिव का पूर्व मुख तत्पुरुष स्वयं की आत्मा में स्थित रहता है। ऊर्ध्व मुख ईशान अर्थात स्वामी ।
शिव के मुखों के रंग भिन्न भिन्न हैं। ईशान दुग्ध जैसा, पूर्व पीतवर्णी, दक्षिण नीलवर्ण, पश्चिम श्वेत वर्ण उत्तर मुख कृष्ण वर्ण का है। शिव पुराण में शिव ने कहा है- सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभव और अनुग्रह मेरे पंच मुखों के द्वारा धारित हैं। अपने पाँच मुखों की विशिष्टता बताते हुए शिव माता अन्नपूर्णा को कहते हैं कि ब्रह्मा मेरे अनुपम भक्त हैं ।इसलिए प्रत्येक कल्प में उन्हें दर्शन देकर समाधान करता हूँ। हर हर महादेव जय शिव शंभू
रेखा पाण्डेय के अनुसार शिव जी के बारे में 5 अलग अलग जानकारी शिवलिंग की निर्मली को सोमसुत्र कहते हैं शास्त्रों के अनुसार शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसुत्र का उल्लंघन करने से दोष लगता है।सोमसुत्र की व्याख्या करते हुए भगवान को चढाया गया जल जिस ओर से गिरता है वही सोमसुत्र कहलाता है।
क्यों नहीं लांघ सकते सोमसुत्र? सोमसुत्र में शक्ति स्त्रोत होता है, अतः उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य निर्मित और अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रवाह में रुकावट पैदा होती है। इसलिए शास्त्रों के अनुसार शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही करना चाहिए। किस ओर से परिक्रमा कर सकते हैं? भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाई तरफ से शुरू करते हुए जल स्त्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।
शिवलिंग में विराजते हैं तीनों देव : शिवलिंग का सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है वह ब्रह्म कहलाता है। दुसरा बीच का हिस्सा भगवान विष्णु का प्रतिरूप और तीसरा शीर्ष सबसे उपर जिसकी पूजा की जाती है वह देवा दी देव महादेव का प्रतीक है। इस तरह शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। मान्यताओं के शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री का और उपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक है। इस तरह शिवलिंग में शिव और शक्ति एक साथ वास करते हैं।
मंजू पंत के अनुसार शिवजी के रहस्य: जैसाकि उनके नाम में ही रहस्य छिपा है। यदि ईसके ई (शक्ति) निकाल दिया जाए तो वह मात्र शव बनकर रह जाता है। भस्म माना जाता है कि भोर में जो शव जलाया जाता है.वही भस्म महाकाल को चढ़ाई जाती है। अभी भी उसी सेभस्म आरती की जाती है। शंकर जी के ईये अर्ध भाग में पहने जानी वाघ की खाल हमें यह दर्शाती है किया। मानव शैली का अभिन्न अंग है कि बाघ अहिंसा का प्रतीक होता है नंदी, शंकर जी का हमें ईंगित करता है हमें तन मन धन से ध्यान लगाना चाहिए। सर्प शिवजी के गले के सर्प हमें यह रहस्य खोलते हैं कि शिवजी हमारी अज्ञानतावश को वश में किए हैं क्योंकि सर्प तमोगुण प्रवृत्ति का होता है।
किरण हटवार के अनुसार शिवजी के रहस्य
शिवजी के त्रिनेत्र त्रिगुण को बताते हैं। दाया नेत्र सत्वगुण बाया नेत्र रजोगुण और मस्तक के ललाट में तीसरा नेत्र को तमोगुण ओह जाता हैं। इस तरह तीनों नेत्र त्रिकाल का प्रतीक माना जाता हैं।
गले में लिपटे साँप का नाम वासुकी हैं। जो भगवान शिव के अति प्रिय भक्त हैं। नागवंशी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे। इन सभी से शिव का बड़ा लगाव था। इसका प्रमाण नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं।
भगवान भोलेनाथ ने गंगा के वेग से पृथ्वी को बचाने के लिए अपनी जताए खोल दी। इस तरह से मां गंगा देवलोक से शिवजी की जाता में समा गई और शिवजी ने अपनी जटा में गंगा को धारण कर लिया। मां काली के चरणों के नीचे मुस्कुराते हुए शिव क्रोध और उग्रता के प्रतीक हैं। फिर भी सबसे उदार रूप में हैं।
भगवान शंकर का विवाह पहले प्रपति दक्ष की पुत्री सती से हुआ थफीर जब वे यज्ञ कुंड में कूद कर भस्म हो गई तब उन्होंने दूसरा जन्म लिया और हिमवान की पुत्री पार्वती कहलाई।
शिव जी को अन्य देवों से बढ़कर माना जाने के कारण महादेव कहा जाता हैं। सूर्य, इंद्र, विराट पुरुष, हरे वृक्ष अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप हैं।
रश्मि मिश्रा के अनुसार भगवान शिव की पुत्री नर्मदा का नदी के रूप में उद्गम अमरकंटक से होता है। कहते हैं त्रिपुर नामक असुर का वध और उसके नगरों का अंत करने के बाद भगवान शिव ने उसकी राख से ही अमरकंटक नगरी का निर्माण किया था। यहीं पर भगवान शिव का पुत्री नर्मदा का बड़ा ही भव्य मंदिर है। यहाँ पर दूर-दूर से दर्शनार्थी आते हैं और ऐसी मान्यता है कि दर्शन का फल प्राप्त करने के लिए एक हाथी के नीचे से रेंगते हुए मंदिर जाना पड़ता है।
एक और गूढ़ता कि रुद्राक्ष के बीज का उद्गम भी भगवान शिव के अश्रु से हुआ है इसीलिए रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रसाद और उनका साक्षात स्वरूप माना जाता है।
रति चौबे के अनुसार शिव ही सम्पूर्ण संसार है, सर्वश्रेष्ठ देव शिव है, मंदराचल मंथन कर उसमें से निकला हलाहल शिव ने ही पी लिया और पार्वती द्वारा रोकने पर कंठ में ही रोक लिया नीलकंठ कहलाये औरअपनी जटाओं में गंगा को उसका गर्व खत्म कर कैद किया, फिर क्षमा याचना पर पृथ्वी पर सात धाराओं में प्रवाहित किया और जब मार्कण्डेय को यम जब मारने आए तो उसे भी त्रिशूल से मार दिया देव प्रार्थन पर पुनः उसे जीवित किया। शिव ही स्वर्ग है,पाताल है, विश्व संचालक है, तमोगुण को वश में कर नागदेवता बन गए। मुंडाला धारण कर मुत्यु को वश में कर मुत्युजंय हो गए।
अहंकार को वश में कर चर्मधारी बने भस्म रमा शंकर ने संसार को दिया एक कटु सत्य नश्वरता का संदेश, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को शिव ने वृषभ बना कर उस पर सवारी की शिव ने त्रिलोचन बने शिव भूत, वर्तमान, भविष्य है शिवमय समस्त यह ब्रह्माण्ड है, वहीं एकमात्र देवता है वो ही देवाधिराज है। अध्यक्षता संयोजन रति चौबे का रहा, आभार निशा चतुर्वेदी का रहा।