नागरी लिपि का प्रचार, प्रसार व विकास करना हमारा संवैधानिक दायित्व है : अतुल भट्ट
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नागपुर/विशाखापट्टनम। भाषा और लिपि का अटूट संबंध है। लिपि भाषा को सुरक्षा प्रदान करती है। अतः नागरी लिपि का प्रचार, प्रसार व विकास करना हमारा संवैधानिक दायित्व है। देवनागरी लिपि संविधान सम्मत राष्ट्र लिपि है। इस आशय का प्रतिपादन श्री अतुल भट्ट, अध्यक्ष, सह-प्रबंधक निदेशक, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम, आंध्रप्रदेश ने किया।
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम) गृह मंत्रालय, भारत सरकार, विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश एवं नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘नागरी लिपि विवेचन: भारतीय भाषाओं का विकास’ विषय पर राष्ट्रीय इस्पात निगम लि. के परिसर में उक्कू नगरम स्थित उक्कू हाउस के नागार्जुन सभागार (26, 27 जून 2023 ) में आयोजित द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि व उद्घाटक के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे।
अतुल भट्ट जी ने आगे कहा कि विभिन्न भाषाओं में नागरी लिपि में प्रकाशित साहित्य समृद्ध व व्यापक है। नागरी का व्याकरण लचीला है। नागरी लिपि के लेखन व पठन में सामंजस्य पाया जाता है। यह सरल, सुगम व वैज्ञानिक लिपि है।
विशेष अतिथि प्रो. डॉ. पूर्ण सिंह डबास, प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं पीकिंग, (बीजिंग) विश्वविद्यालय, चीन ने संबोधित करते हुए कहा कि कोई भी लिपि अपनी भाषा के लिए होती है। रोमन लिपि अपनी गुणवत्ता के कारण नहीं, राजनीतिक प्रभाव के कारण विश्व की आधी धरती पर छाई हुई है। नागरी लिपि के क्षेत्र में और कार्य करने की जरूरत है।
रोमन अधूरी लिपि है। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने बीज वक्तव्य में कहा कि आंध्र प्रदेश सहित दक्षिण के अन्य राज्य भी नागरी लिपि से कदापि दूर नहीं है। नागरी की भूमिका हिंदी से बढ़कर है। भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची में निर्दिष्ट 22 भाषाओं में से 12 भाषाओं की लिपि देवनागरी है।
अरुणाचल की भाषाओं और बोलियों के लिए नागरी लिपि का प्रयोग हो रहा है। कोई भी देश अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति से दूर रहकर कदापि प्रगति नहीं कर सकता। भारतीय भाषाओं के अस्तित्व हेतु एवं भारतीय संस्कृति को अबाधित रखने के लिए नागरी लिपि का कोई विकल्प नहीं है। विनोबा जी कहा करते थे कि राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी जितना काम देगी, उससे अधिक नागरी योगदान करेगी।
इस अवसर पर विशेष अतिथि श्री सुरेश चंद्र पांडे, निदेशक (कार्मिक), राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम ने भी अपना मंतव्य प्रस्तुत किया। श्री ललन कुमार, महाप्रबंधक (राजभाषा) व प्रशासन प्रभारी, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश ने स्वागत भाषण दिया। मंच संचालन डॉ हेमावती, सहायक महाप्रबंधक, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड ने किया तथा कृतज्ञता ज्ञापन डॉ. के. एन. एल. वी. कृष्णवेणी, प्रशासन सहायक (राजभाषा) राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड ने किया।
प्रथम सत्र में वक्ता डॉ एस कृष्णा बाबू अध्यक्ष, वाजा एपी, विशाखापट्टनम 'भारत में लेखन पद्धति का विकास और नागरी लिपि' विषय पर अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि आचार-विचार, खान-पान, पहनावा, आदि सभ्यता में आते हैं तो मानव मूल्य व संस्कारों का समावेश संस्कृति में होता है। सभा में बैठने वाला सभ्य होता है। लिपि की 4 अवस्थाओं को विवेचित करते हुए उन्होंने कहा कि चीन में चित्र लिपि, मिस्र (इजिप्त) में रोमन तथा भारत में नागरी लिपि प्रचलन में है।
अन्य भाषाओं की ध्वनिओं को स्वीकार करने की अद्भुत क्षमता मात्र देवनागरी लिपि में है। 'ब्राह्मी से विकसित भारत की आधुनिक लिपियां' विषय पर डॉ. सी. एच निर्मला देवी, विभागाध्यक्ष, नेवी चिल्ड्रेन स्कूल, नौसेना बाग, विशाखापट्टनम ने कहा कि ब्राह्मी सभी लिपियों की जननी है। भारतीय सभी लिपियां ब्राह्मी से उद्भूत है।
अतिथि वक्ता डॉ. अनिल शर्मा जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ने आभासी पटल से अपने उद्बोधन में कहा कि देश की बहुत सी भाषाएं नागरी लिपि में लिखी जाती हैं। आचार्य विनोबा भावे एवं काकासाहेब कालेलकर ने नागरी लिपि के क्षेत्र में बहुत कार्य किया है। हमें भारतीय भाषाओं की अस्मिता के लिए जोड़ लिपि के रूप में नागरी का प्रयोग करना जरूरी है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए नागरी लिपि परिषद के, नयी दिल्ली के कार्याध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने मन्तव्य में कहा कि विश्व स्तर पर आज प्रमुख रूप से 4 लिपियाँ प्रचलन में है – चित्र लिपि, रोमन, देवनागरी व फारसी लिपि। वर्णाक्षरों में संख्या की दृष्टि से चीन की चित्र लिपि में असंख्य चित्र हैं। देवनागरी में 53 वर्ण हैं।
रोमन में 26 वर्ण है तथा उर्दू अरबी की फारसी लिपि में 36 लिपि चिन्ह है। देव नागरी के समान वर्ण विश्व की किसी भी भाषा की लिपि में नहीं हैं। देवनागरी में 11 स्वर हैं। रोमन में 5 स्वर है जो बिखरे हुए हैं तो फारसी में मात्र 3 स्वर है।
देवनागरी की वर्ण माला एक ही प्रकार की है, रोमन की वर्ण माला 3 प्रकार की है, तो उर्दू की लिपि एक से अधिक प्रकार से लिखी जाती है। इस प्रकार देवनागरी की वैज्ञानिकता स्पष्ट है। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ. पूर्ण सिंह डबास, दिल्ली ने की।
इस सत्र में वक्ता डॉ. नागनाथ शंकरराव भेंडे, कलबुर्गी, कर्नाटक ने 'कर्नाटक में नागरी लिपि की संभावना' विषय पर विचार व्यक्त किए। श्र चवाकुल रामकृष्ण राव, हैदराबाद,तेलंगाना ने 'तेलंगाना में नागरी लिपि और हिंदी' विषय पर अपना मंतव्य प्रस्तुत किया।
उद्घाटन सत्र में नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की पत्रिका 'नागरी संगम' तथा विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज की वार्षिक स्मारिका 'विश्व स्नेह समाज' का मान्यवर अतिथियों के कर कमलों से लोकार्पण किया गया।
इस अवसर पर श्री चवाकुल राम कृष्ण राव हैदराबाद, तेलंगाना ने अपने पिताजी स्वर्गीय श्री चवाकुल नरसिंहा मूर्ति की पावन स्मृति में 10 नागरी प्रेमियों को महावस्त्र और नगद राशि से सम्मानित किया।
इसके उपरांत श्री मोहन द्विवेदी, गाजियाबाद के उत्तम संचालन में काव्य गोष्ठी हुई, जिसमें श्रीमती अपराजिता शर्मा, रायपुर, छत्तीसगढ़, जे एस यादव, डॉ पुष्पा पाल, नई दिल्ली, सुधा जूही,डॉ हरीसिंह पाल, नई दिल्ली; चवाकुल रामकृष्ण राव, हैदराबाद,
तेलंगाना; डॉ नागनाथ भेंडे, कलबुर्गी, कर्नाटक ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की। इस अंतरराष्ट्रीय (भौतिक व आभासी ) गोष्ठी में लगभग 12 राज्यों एवं 4 देशों के अधिकांश प्रतिभागियों ने सहभागिता की।