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सोशल इनफ्लूएंसर्स का अंधाधुंध इनफ्लूएंस!


मैं बरसों से सोशल मीडिया में सक्रिय हूं और सबसे पहले यही वो मंच था जहां से मैंने अपने विचारों को, कविताओं को, आलेखों को प्रकाशित करना शुरू किया। सबसे पहले आर्कुट था, उसके बाद फेसबुक आया जो हर उम्र वर्ग के लिए एक आसानी से यूज किया जा सकने वाला प्लेटफॉर्म बन कर  पसंदीदा सोशल मंच बना। उसके बाद अब इंस्टाग्राम का चलन है लेकिन जिन लोग फेसबुक में अपनी एक मंडली तैयार कर चुके हैं उन्हें इंस्टा में सेट होने में जरा वक़्त लगता है क्योंकि उन्हें फिर नए सिरे से नयी शुरूवात करनी पड़ती है। खैर  सबकी अपनी-अपनी चाॅइस है पर आजकल लेटेस्ट ट्रेंड्स क्या चल रहा है वो तो इंस्टाग्राम  से ही पता चलता है। 

हाल ही में एक दिन यूं ही अपने सोसाइटी परिसर में टहल रही थी तो कुछ टीनेज लड़कियों से गपशप के दरमियान मैंने यूं ही उनके इन्टरेस्ट के मुताबिक बात करते हुए पूछा और सुनाओ, इंस्टा में अभी सबसे ज्यादा ट्रेडिंग टॉपिक क्या है। तो उनमे से एक ने बड़ी गंभीरता पूर्वक जवाब दिया कि आजकल "सोशल इनफ्लूएंसर्स" सबसे ज्यादा ट्रेडिंग में हैं। तभी मेरा ध्यान इस ओर गया कि आज तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी में सोशल मीडिया इन्‍फ्लुएंसरों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। यह होना तो लाजमी है क्योंकि अब तो आलम ये है कि लोग सीधे-सीधे आपबीती बता रहे हैं, लिख रहे हैं कि भारत ही एक ऐसा देश हैं जहां लोग पहले इंजिनीयर बन जाते हैं फिर सोचते हैं कि बनना क्या है। 

मतलब साफ़ है कि थोक के भाव इंजीनियरिंग किए युवा बैठे हैं, अब नौकरी न मिले तो क्या करें इसलिए इन्टरनेट का सदुपयोग करके रोजी-रोटी का बंदोबस्त कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया पर अपने अलग अलग हुनर से लोगों को प्रभावित कर उन्‍हें कुछ विशेष उत्‍पाद का एडवर्टाइजिंग कर, विभिन्न एप्स को सही तरीके से यूज करने का तरीका बताना, मोटिवेशनल बातों से प्रभावित करना या सेवाएं खरीदने के लिए प्रेरित करने का धंधा, युवाओं में काफी लोकप्रिय हो रहा है। 

देश में ऐसे युवाओं की संख्‍या में लगातार इजाफा हो रहा है जो सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित (इन्फ्लुएंस) करने का कारोबार शुरु कर चुके हैं। इसमें उनका मुख्य उदेश्य ज्यादा से ज्यादा फाॅलोवर्स बढ़ाना, सब्सक्राइबर्स बढ़ाना और पैसे कमाना है। अब इस कारोबार में विभिन्न विषयों के बारे में जानकारियों की प्रामाणिकता पर कोई ध्यान नहीं देता क्योंकि influencer के पास अपने विषय को इतने प्रभावी ढंग से पेश करने की कला होती है कि वे हर प्रकार के विरोधाभास का भी बेहद प्रभावी ढंग से सामना कर सकते हैं।

ई-कॉमर्स वेबसाइट के अनुसार, इन्‍फ्लुएंसरों को फॉलोअर्स की संख्‍या के हिसाब से एक पोस्‍ट के लिए दस डॉलर से दस हजार डॉलर, या इससे भी अधिक का भुगतान किया जाता है। 20 प्रतिशत सालाना ग्रोथ रेट के साथ भारत में यह कारोबार इतना तेजी से फल-फूल रहा है कि वर्ष 2025 तक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का देशी मार्केट 2500 करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। हमारे भारतीय समाज में जैसे यहां के जर्रे-जर्रे में वर्ग भेद मौजूद है सोशल इन्फ्लुएंसरों की दुनिया में भी अलग-अलग वर्ग है। पहले, एक से दस हजार फॉलोअर्स वाले नैनो इन्फ्लुएंसर, जिन्‍हें हर पोस्‍ट के लिए दस से सौ डॉलर मिलते हैं। 

दूसरे, दस हजार से पचास हजार फॉलोअर्स वाले माइक्रो इन्फ्लुएंसर, जिन्‍हें प्रत्‍येक पोस्‍ट के लिए सौ से पांच सौ डॉलर मिलते हैं। तीसरे, पचास हजार से पांच लाख फॉलोअर्स वाले मिड टियर इन्फ्लुएंसर, जिन्‍हें प्रति पोस्‍ट पांच सौ से पांच हजार डॉलर मिलते हैं। चौथे, पांच लाख से दस लाख फॉलोअर्स वाले मैक्रो इन्फ्लुएंसर, जिन्‍हें प्रत्‍येक पोस्‍ट के लिए पांच हजार से दस हजार डॉलर मिलते हैं। 

दस लाख से अधिक फॉलोअर्स वाले मेगा इन्फ्लुएंसर, जिन्‍हें उनकी हर पोस्‍ट के लिए दस हजार डॉलर और इससे ज्‍यादा मिलते हैं। इस प्रकार जितने फॉलोअर उतनी कमाई। हालांकि हर बिजनैस की तरह इसमें भी सफलता और रकम मिलने में वक़्त लगता है पर इतना आसान बिल्कुल नहीं। ट्रेडिंग है सोशल इनफ्लूएंसर आजकल लेकिन आम पब्लिक इसके पीछे की सच्चाइयों से वाकिफ़ नहीं। 

पब्लिक तो अपने अपने जिंदगी के जद्दोजहद में लगी है उसे तथ्यों से सच्चाइयों से मतलब नहीं वह तो बस  को फालो करते हैं चाहे सोशल इनफ्लूएंसर्स हो या आधुनिक बड़े बड़े धार्मिक गुरू सभी अंध भक्त इकट्ठे करके कारोबार ही कर रहे हैं फिर बेरोजगार क्यों न इस आइडिया में बहती गंगा में हाथ धोयें। बहरहाल नागरिक को जागरूक रहना है अपने विवेक का इस्तेमाल करके ही  इनफ्लूएंसर्स से  इनफ्लूएंस होना है।

- शशि दीप ©✍
विचारक/द्विभाषी लेखिका
मुंबई
shashidip2001@gmail.com
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