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हरिशंकर परसाई का व्यंग्य लेखन मनुष्य को पशुता से ऊपर उठाता है : डाँ. अरुण कुमार



नागपुर। व्यंग्यधारा समूह की ओर से हरिशंकर परसाई के जन्मशती संवाद श्रृंखला में 155वीं ऑनलाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी  में वरिष्ठ व्यंग्यकार डाँ. अरुण कुमार ने अपने विचार रखते हुए यह कहा। विमर्श का विषय 'हरिशंकर परसाई के व्यंग्य लेखन का साहित्य और समाज में दखल'  था। 

वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ अरुण कुमार (जबलपुर) ने अपनी बात रखते कहा कि हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य लेखन मनुष्य को पशुता से ऊपर उठाता है। परसाई जी ने व्यंग्य की ताकत बता दी थी। उन्होंने व्यंग्य को क्रांति और बदलाव का सबसे बड़ा माध्यम बनाया। परसाई  जी का लेखन  आज भी प्रासंगिक है लेकिन जरूरी नहीं कि उनके जैसा ही लिखें। नए विषयों पर भी लिखा जाना चाहिए। 

परसाई जी ने धर्म, क्षेत्र और जातीयता के नाम पर किए जाने वाले विद्वेषपूर्ण व्यवहार पर प्रहार किया। डॉ अरुण कुमार ने जगदलपुर आकाशवाणी के  लिए गए परसाई जी के साक्षात्कार का भी उल्लेख किया। गोष्ठी में अतिथि वक्ता के रूप में वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ मनमोहन सिंह यादव (बीकानेर),  डॉ. सुसंस्कृति परिहार (दमोह) तथा डॉ अरुण कुमार (जबलपुर) उपस्थित थे। 

गोष्ठी की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. सुसंस्कृति परिहार (दमोह) ने कहा कि हरिशंकर परसाई परिवर्तन के लिए लिखते थे। उन्होंने राजनीति सहित हर क्षेत्र के छल-छद्म पर प्रहार किया। लेखक समाज का अंग है। इसलिए उसका प्रतिबिंब लेखन में दिखाई देना चाहिए। इसलिए जब परसाई जी पर हमला हुआ तो समाज उनके साथ खड़ा था।  

आयुध निर्माणी के मजदूरों ने मोर्चा निकाला। डॉ सुसंस्कृति ने इस बात पर चिंता जताई कि आजकल बिना विचार के विमर्श का चलन चल पड़ा है। परसाई जी की स्पष्ट विचारधारा थी। उन्होंने परसाई को व्यंग्यकार के बजाय कहानीकार क्यों न माना जाए? इस पर चिंतन की सलाह भी दी।

तत्पश्चात वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. मनमोहन सिंह यादव (बीकानेर) ने कहा कि हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य को शूद्र से क्षत्रिय बनाया, अनुभव द्वारा खड़ा कर नया रूप दिया। संघर्ष कर करने के लिए व्यंग्य को हथियार बनाया। परसाई जी समाज के सोए हुए व्यक्ति की निद्रा तोड़ते है। उनके एक-एक व्यंग्य में सायरन है जो हमें जगाता है। 

परसाई जी पूरे तंत्र को ही लाते हैं। व्यंग्य, निबंध, कहानी हर विधा के माध्यम से उन्होंने जबरदस्त प्रहार किया है। परसाई जी हाथ में कोड़ा रखते है, मारते भी है और साथ में सायरन है उससे सजग भी करते हैं।परसाई के व्यंग्य एक प्रकार का सायरन हैं। उनके व्यंग्य तंत्र को हिलाने वाले हैं.उन्होंने विसंगतियों पर जबरदस्त हेमरिंग की है।

वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र वर्मा (लखनऊ) ने कहा कि क्या परसाई की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैंः इस पर विचार करने की आवश्यकता है। जनता की समझ को विकसित करना होगा। परसाई के पास अपनी सोच - समझ और उसे व्यक्त करने की ताकत थी। 

गोष्ठी के आरंभ में वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने  प्रास्ताविक भूमिका में कहा कि परसाई जी के व्यंग्य में समाज की बात होती थी। विकृति पाखंड और तानाशाही की बात होती थी। आध्यात्मिकता के साथ की बात होती थी। लेकिन आज सामाजिक सरोकार नजर नहीं आता। परसाई जी कहते थे व्यक्ति और समाज आत्मलोचन करें, इसलिए लिखता हूं। 

गोष्ठी का संचालन रमेश सैनी ने किया। संचालन सहभागिता प्रखर व्यंग्य आलोचक डॉ रमेश तिवारी नई दिल्ली और अभिजित कुमार दूबे,अगरतला की रही। आभार प्रदर्शन टीकाराम साहू 'आजाद' (नागपुर) ने किया। 

व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में सर्वश्री बीएल आच्छा, कुंदन सिंह परिहार, सेवाराम त्रिपाठी, लोकेश मुंडेल, सुनीता चौधरी, रेणु देवपुरा, वीणा सिंह, वेदप्रकाश भारद्वाज, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डॉ किशोर अग्रवाल, हनुमान प्रसाद मिश्र, जयप्रकाश पांडेय, परवेश जैन, भंवरलाल जाट, सोनू वैष्णव आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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