इतनी जल्दी, मालुम न था...
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वक्त इतने जल्दी आएगा,
मालुम न था।
बहुत कुछ
बचा रखा था मूठ्ठी में,
धीरे-धीरे धीर से काम आएगा,
फिसल जाएगा रेत सा पल इतने जल्दी,
मालुम न था।
कुछ पल पहले तो मिले हम,
बिछड़ेंगे यूं इतने जलद,
मालुम न था।
कितनी सुहावन हैं
ये गलीयां,
समां बंध रहा था
शाम ए महफिल का,
ख़िजां ऐसी छा जाएगी,
सच, मालुम न था।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर (महाराष्ट्र)