Loading...

सिस्टमिक लुपस एरिदेमेटोसस (SLE)


अंतर्राष्ट्रीय लुपस दिवस के अवसर पर लेख


एक ऐसी बीमारी है जिसमें बदन में कुछ ऐसे प्रोटीन बनते हैं जो बदन के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं। इन्हें ऑटो एंटीबॉडी कहते हैं ।यह आंखों को, किडनी, दिल, जोड़ों को और विशेषकर चमड़ी को असर करते हैं। 

जब सिस्टमिक लुपस एरिदमेटोसस का असर किडनी पर होता है तो उसे *लुपस नेफ्राइटिस* कहते हैं।
लुपस की बीमारी महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होता है। महिलाओं में  चमड़ी पर लुपस का असर ज्यादा पाया जाता है। जबकि पुरुषों में लुपस नेफ्राइटिस यानी  किडनी पर असर ज्यादा पाया जाता है । यह बीमारी कई बार मां से मां के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी हो सकता है , हालांकि ऐसा बहुत कम होता है।

लुपस के होने के सटीक कारण के बारे में फिलहाल अभी कुछ स्पष्ट रूप से पता नहीं चला है, लेकिन फिलहाल शोधों के अनुसार एक व्यक्ति को लुपस तब होता है जब उसका इम्यून सिस्टम उसके खुद के ही बदन को नुकसान पहुंचाती है। बदन में कुछ ऐसे प्रोटीन बनते हैं जो बदन के अंगों को ही नुकसान पहुंचाते हैं, इन्हें आटो एंटीबॉडी कहा जाता है और यह एंटीबॉडी आंखों को , जोड़ों को,  किडनी को, चमड़ी को,  या दिल को नुकसान पहुंचा सकती है।

कुछ रिसर्च के मुताबिक लुपस अनुवांशिक भी हो सकता है जिसमें परिवार में किसी और व्यक्ति को इसके पहले लुपस की बीमारी हुई रहती है।
कभी कभी गर्भवती स्त्री जिसे लुपस हो,  उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को लुपस हो सकता है इसे नियेनाटाल लुपस कहते हैं ।

पर्यावरण की खराबी की वजह से भी लुपस हो सकता है । धूम्रपान, तनावपूर्ण वातावरण और धूल जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से लुपस की समस्या हो सकती है। 

महिलाओं में इस्ट्रोजेन का बढ़ा हुआ स्तर लुपस का कारण हो सकता है, यही कारण है कि  युवतीयों में लुपस ज्यादा पाया जाता है।
कुछ इंफेक्शन जैसे साइटोमेगालोवायरस और एप्स्टीन बार जैसे इंफेक्शन लुपस को बढ़ावा दे सकते हैं।

कुछ दवाओं के लंबे समय तक उपयोग की वजह से भी लुपस हो सकता है जैसे हाइड्रालाजीन, प्रोकेनामाईड, आईसोनियाजाईड, क्विनिडिन, मीनोसाइक्लिन आदि।

लेकिन अब तक यह मालूम नहीं पड़ा है कि लुपस क्यों होता है ,जो भी हो बदन में ऑटो एंटीबॉडी बनने के कारण लुपस होता है जो अपने ही बदन  को नुकसान पहुंचाती है।

लुपस नेफ्राईटिस की बिमारी में पेशाब में प्रोटीन जाता है, मरीज को पेशाब में झाग नजर आता है, पेशाब कई बार लाल होती है।
 ब्लड प्रेशर ज्यादा होने से सिर दर्द होता है, खून और पेशाब के परीक्षण करने पर पेशाब में प्रोटीन और रेड ब्लड सेल्स दिखते हैं। 

खून में यूरिया और क्रिएटिनिन बढ़ जाता है । यूरिया और क्रिएटिनिन किडनी के कार्य शक्ति को दर्शाते हैं। अगर हम संक्षेप में कहें तो लुपस नेफ्राइटिस एक गंभीर रोग है जो किडनी की कार्य शक्ति को कम करता है और किडनी काफी हद तक परमानेंटली खराब हो सकती है। इसलिए इसके बारे में मालूम होना बहुत जरूरी है, और जल्दी से ट्रीटमेंट लेना भी अति आवश्यक है।
लुपस नेफ्राईटिस का अगर सही समय पर निदान और उपचार नहीं किया गया, तो किडनी तेजी से खराब होने लगती हैं। 

किडनी की खराबी के कई लक्षण है जैसे पेशाब कम होना, चेहरे पर और पांव पर सूजन आना। ब्लड प्रेशर का बढ़ना, दम आना,  सांस फूलना, बहुत थकावट महसूस होना।

जैसे-जैसे किडनी की खराबी बढ़ती है वैसे वैसे भूख कम लगती है ,जी मचलता है, उल्टियां होती है, बहुत ज्यादा खराबी होने पर मस्तिष्क पर असर होकर मृगी की तरह झटके आ सकते हैं। कभी कभी दिल के चारों ओर जो झिल्ली होती है, उसमें सूजन आ जाती है जिसे यूरिमिक पेरिकार्डाइटिस कहते हैं। इसमें ब्लड प्रेशर कम होने लगता है जिससे जान को खतरा हो जाता है।

किडनी की खराबी जैसे जैसे बढ़ने लगती है वैसे वैसे हड्डियों में कमजोरी होती है , दर्द होता है और हड्डियों के फ्रैक्चर का चांस बढ़ जाता है। जब किडनी की कार्य शक्ति 20% से नीचे हो जाए तब भविष्य में डायलिसिस की आवश्यकता को समझते हुए हाथ में फिस्टुला बनवाना होता है। जब जब तकलीफ ज्यादा होने लगे अथवा किडनी की कार्य शक्ति 10% से कम हो जाए तो डायलिसिस की जरूरत होती है।

 लुपस का उपचार कैसे किया जा सकता है?

लुपस का उपचार करने के दौरान डॉक्टर आपको लक्षणों के आधार पर और आपकी शारीरिक स्थिति के आधार पर दवाएं देते हैं। आपको आहार में परिवर्तन के साथ-साथ जीवनचर्या में भी बदलाव करने की भी जरुरत है। इस बीमारी में यह देखा गया है कि लुपस की बीमारी तेज धूप में घूमने पर ज्यादा होती है , इसलिए मरीजों को चाहिए कि सुबह 10 से शाम को 5 बजे तक धूप में ना जाएं और अगर धूप में जाना ही पड़े तो सन स्क्रीन आयंटमेंट का इस्तेमाल करें।
मरीज को भरपूर नींद लेना चाहिए , मन को शांत रखना चाहिए, थोड़ा बहुत  योगा करें,  चलें, साइकिलिंग करें, इस तरह  के कार्य करें जिससे joints  पर  जोर ना लगे।

ध्यान लगाएं, 
आहार में उपयुक्त बदलाव करें, 
रक्तचाप और मधुमेह स्तर को नियन्त्रण में रखें।
अगर ब्लड प्रेशर ज्यादा हो तो नमक कम लें,  सुजन हो तो पानी की मात्रा कम करें,  पोटेशियम ज्यादा हो तो फल और सब्जीयों पर ध्यान दें।
इनके साथ-साथ डॉक्टर आपको निम्नलिखित प्रकार की दवाएं भी दे सकते हैं, जिससे लुपस में आराम मिले :- 
नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs),
मलेरिया रोधी दवाएं, प्रतिरक्षादमनकारी दवाएं, बायोलॉजिक्स, कोर्टिकोस्टेरॉयड।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र) 
समाचार 1552896154829632036
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list