सामाजिक परिवेश पर आधारित संदेश मन को छूते हैं : राजेंद्र मिश्र 'राज'
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नागपुर। विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन व नवभारत मेरे जीवन की महत्वपूर्ण पाठशालाएँ हैं। मैंने यहाँ बहुत कुछ सीखा है। मैं आज भी स्वयं को कवि नहीं मानता। हां, मैंने रामायण धारावाहिक की समीक्षाएँ, खेल व सिनेमा से जुड़ी समीक्षाएँ तथा व्यंग्य के लगभग 90 हजार लेख लिख चुका हूं।
साहित्यिकी मंच से पुन: जुड़कर व आप सभी का साहित्य प्रसाद का रसापान कर अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं। आपकी कविताओं में सामाजिक परिवेश पर आधारित संदेश मन को अभिभूत कर गये उक्त विचार विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपक्रम साहित्यिकी के अंतर्गत कवि सम्मेलन में प्रमुख अतिथि राजेन्द्र मिश्र 'राज' ने व्यक्त किए। संयोजक डॉ. विनोद नायक ने संचालन करते हुए साहित्य के महत्व पर प्रकाश डाला। अतिथि स्वागत प्रा. ओदश जैन ने किया।
कवि अमिता शाह, माधुरी राऊलकर, संतोष बुधराजा, सरोज गर्ग, संजीव बहादुर, गुलाम मोहम्मद खान आलम, प्रा. मजीद बेग मुगल 'शहजाद', मुकुल अमलास, माया शर्मा नटखटी, हेमलता मिश्र मानवी, माधुरी मिश्रा मधु, मिलिंद इंदुरकर, डॉ भोला सरवर, डॉ. काशीनाथ जांभुलकर, स्वप्ना जगदाले, चंद्रकला भरतिया, यज्ञेश पाठक, नीलीमा गुप्ता, कल्पना वारापत्रे, प्रा. आदेश जैन व डॉ. विनोद नायक ने अपनी रचनाओं से मंत्रमुग्ध कर दिया। आभार हेमलता मिश्र मानवी ने माना।