सभी भारतीय भाषाएँ समान रूप से विकसित हो और हिन्दी बने देश की संपर्क भाषा : चंद्रकांत दादा पाटील
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नागपुर/पुणे। बहुभाषी भारत देश में संविधान की अष्टम अनुसूची में 22 भाषाएं निहित हैं। इनके अतिरिक्त अनेक बोलियां भी अस्तित्व में हैं। अतः समन्वय की दृष्टि से सभी भारतीय भाषाएं समान रूप से विकसित होते हुए हिंदी को देश की संपर्क भाषा वास्तविक रूप में बनाने की नितांत आवश्यकता है। इस आशय का प्रतिपादन महाराष्ट्र राज्य के उच्च व तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत दादा पाटील ने किया।
जगदंबी प्रसाद यादव स्मृति प्रतिष्ठान, पटना, बिहार; अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति तथा सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के वाणिज्य सभागार में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में उद्घाटक के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे।
जगदंबी प्रसाद यादव स्मृति प्रतिष्ठान, पटना के अध्यक्ष तथा भारत सरकार की हिन्दी सलाहाकार समिति के सदस्य श्री वीरेंद्र कुमार यादव ने सत्र की अध्यक्षता की। उच्च शिक्षा मंत्री पाटील ने आगे कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कृतसंकल्प है।
महाराष्ट्र सरकार ने अपने कामकाज में मराठी का प्रयोग तेजी से शुरू किया है। राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों को आदेश दिया गया है कि वे अपने परिपत्र, प्रतिवेदन तथा अन्य सरकारी दस्तावेज के लिए मराठी भाषा का प्रयोग करें। इसी प्रकार अब केंद्रीय सरकारी कार्यालयों में भी हिंदी का प्रयोग बढ़ता जा रहा है।
हिंदी जगत के प्रख्यात साहित्यकार डॉ दामोदर खडसे, पुणे ने अपने मंतव्य में कहा कि हम भारतीय जन अंग्रेजी के संदर्भ में मानसिक रूप से इतने जकड़े हुए हैं कि हमें जितनी अंग्रेजी आती है, उतनी में हमारी श्रेष्ठता दर्शाने का प्रयास करते हैं। इसलिए हमारे सभी कार्यालयों के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी बैंकों में अपनी निकासीपर्ची पर तथा उपस्थिति रजिस्टर में अंग्रेजी में अपने हस्ताक्षर करते हैं।
इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है ? सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. विजय कुमार रोडे ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी हम भाषा के रूप में अपनी पहचान नहीं बना पाए। अंग्रेजी का भूत आज भी हम सभी के मन-मस्तिष्क पर सवार है। मंचीय भाषण की अपेक्षा प्रत्यक्ष व्यवहार में हिंदी तथा भारतीय भाषाओं को अपनाना बहुत जरूरी है।
राजभाषा सम्मेलन के संयोजक तथा नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि हिंदी आज हमारे देश में अनेक रूपों में विकसित हो रही है। देश की सीमा लांघकर हिंदी ने विश्व मंच पर अपने सफल चरण रखे हैं। चकित करने वाली बात यह है कि एक तरफ हिंदी खूब बोली जा रही है तो दूसरी ओर लेखन में हिंदी की लिपि देवनागरी के बदले रोमन का प्रचलन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सोशल मीडिया में रोमन लिपि के बढ़ते प्रयोग से हम सभी परिचित हैं।
भारतीय भाषाएं यदि रोमन लिपि में लिखी जाती रही तो यह स्थिति देवनागरी लिपि सहित सभी भारतीय लिपियों तथा भाषाओं के लिए बड़ा संकट है। संविधान सम्मत देवनागरी लिपि को अपनाने में हमें किसी भी प्रकार की हिचक नहीं होनी चाहिए। इस अवसर पर प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘राजभाषा दर्पण’ का लोकार्पण मान्यवर अतिथियों द्वारा किया गया।
जगदंबी प्रसाद यादव स्मृति प्रतिष्ठान, पटना की महासचिव डॉ. अंशुमाला जी ने अपने प्रास्तविक भाषण में कहा कि 4 जून 2010 को स्थापित जगदंबी प्रसाद यादव स्मृति प्रतिष्ठान राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 13 वर्षों से हिंदी के प्रचार-प्रसार व विकास कार्य में सक्रिय है। जगदंबी साहित्य शिखर सम्मानों तथा राजभाषा सम्मेलनों के आयोजनों से प्रतिष्ठान निरंतर गतिशील है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रतिष्ठान के अध्यक्ष तथा भारत सरकार की हिन्दी सलाहाकार समिति के सदस्य वीरेंद्र कुमार यादव ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि बात हम हिंदी की करते हैं, लेकिन हिंदी में नहीं करते। संकल्प हम हिंदी में करते हैं पर विकल्प अंग्रेजी में ढूंढते हैं।
इस मानसिकता को बदलना होगा। श्री यादव ने आगे कहा कि हिन्दी को साहित्य से आगे ले जाते हुए उसे आज ज्ञान की भाषा के साथ-साथ विज्ञान की, शासन-प्रशासन,न्या य और न्यायालय की भाषा बनाने की आवश्यकता है। 'राजभाषा अधिनियम' सत्र में डॉ सुषमा कोंडे ने राजभाषा नियम अधिनियम पर प्रकाश डाला।
साहित्य के वैचारिक सत्र में साहित्यकार डॉ सुनील देवधर जी ने व्यक्त किया कि हिंदी का हर क्षेत्र में पदार्पण एक बहुत बड़ा शुभ संकेत है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिंदी माध्यम का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। हाल ही में हिंदी माध्यम के 54 परीक्षार्थियों ने इसमें सफलता पाई हैं। डॉ सादिका नवाब, खोपोली ने कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों बहने हैं।
हिंदी को यदि उर्दू की फारसी लिपि में लिखा जाए तो वह उर्दू कहलाएगी और उर्दू को यदि देवनागरी में लिखा जाए तो वह हिंदी कहलाएगी। दोनों में मात्र लिपि का भेद है। सम्मेलन का शुभारंभ मंचीय अतिथियों के दीप प्रज्वलन तथा सावित्रीबाई फुले की प्रतिमा पूजन से हुआ।
इस अवसर पर जगदंबी प्रसाद यादव स्मृति प्रतिष्ठान की ओर से उच्च शिक्षा मंत्री श्री चंद्रकांत दादा पाटील के कर कमलों से प्रो. डॉ. विजय कुमार रोड़े, डॉ शहाबुद्दीन शेख, डॉ अलका सुरेंद्र पोतदार, डॉ राजेंद्र श्रीवास्तव, डॉ सुनील देवधर, संजय भारद्वाज तथा डॉ सादिका नवाब को जगदंबी साहित्य शिखर सम्मान से गौरवान्वित किया गया।
द्वि दिवसीय राजभाषा सम्मेलन में डॉ कविता सोनवणे, डॉ लतिका जाधव, भावना गुप्ता, प्रा. ज्ञानेश्वर सोनार सहित अनेक राजभाषा अधिकारियों की गरिमामय उपस्थिति रही। काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ भी हुआ। विभिन्न सत्रों का संचालन श्रीमती दीप्ति पेठे, श्रीमती श्वेता मिश्रा तथा प्रा. धन्यकुमार बिराजदार ने किया। डॉ शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किए।