अब जाने भी दें...
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रात्रि अपने दामन में
समा लेने आकुल है,
दिल विह्वल, मन चंचल,
मेरे व्याकुलता की
परवाह ना कर,
सो जा, अब जाने भी दे!
उनींदे नैनों को आराम दे
थके सपनों को विराम दे,
इन उलजलूल बातों में न उलझ,
सो जा, अब जाने भी दे।
बातें होती रहेंगी सदा
होंगे कई सैलाब तूफां,
शतरंज की चालों में न उलझ
सो जा, अब जाने भी दे।
विभावरी अपनी मस्ती से ,
आगोश में यूं घिर लेती हैं,
तू भी इससे मिल ले जरा,
सो जा, अब जाने भी दे।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)