वह कौन थी... ?
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ट्रेन के इन्तेज़ार में अपने ग्रूप से दूर अकेली बैठी सुमीता अपने सामने एक 25-30 वषी॔य महिला को दयनीय अवस्था में देखा तो चौंक गयी।
पूछने लगी -"कब और कैसे हुआ?"
महिला धीमे स्वर में कहने लगी - "इसी स्टेशन के पास ही कुछ असामाजिक वृति में लिप्त लोगों का अड्डा है। मैं पास ही के एक झोपड़ी में रहती हूँ।
यहाँ पर पुलिस की सांठ गांठ से आपराधिक कार्य चलते रहते है। किसी ने भी मेरी मदद नहीं की।" कहते हुए वह फूट फूट कर रोने लगी। सुमिता अपनी ट्रेन जो कि दो घंटे देरी से चल रही थी। स्टेशन की बड़ी घड़ी की ओर देखा तो रात के दो बज रहे थे। स्टेशन पर मुसाफिरों की गदी॔ दिखाई दे रही थी।
ट्रेन के आने की हड़बड़ी में सुमिता के ध्यान में नहीं रहा कि वह महिला कब और कहां ग़ायब हो गयी। सुमिता एक होनहार साहसी महिला पत्रकार थी। उसने इसका ब्यौरा सभी मुख्य समाचार पत्रों मे छपवाया। पुलिस मुख्यालय के आदेश पर छापे मारे गए। सभी अपराधियों को पकडा गया।
पता चला कि एक वर्ष पहले ही इन्ही गुंडों ने एक महिला और उसकी चौदह वषी॔य लड़की के साथ अमानवीय हरकत कर के उन दोनों की हत्या कर दी थी। यह सुनकर सुमिता पसीने से भीग उठी। उसे ऐसे लगा- "उस रात जो मुझ से मदद मांग रही थी। क्या ? वह कोई आत्मा... तो... नहीं..." और बहुत देर रात तक सोचने लगी कि "वह कौन थी ...?"
- मोहम्मद जिलानी
चन्द्रपुर, महाराष्ट्र