वक्त...
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अब नजरों से वो ओझल हैं।
कभी साथ साथ
यूं चले थे हम
अब नज़रों से कतराते हैं।
यूं तो कोई वादा न था
न थीं कसमें निभाने की,
पर गाते कई तराने थे,
पराए नहीं, अपने ही थे।।
वह कुछ समय की बात थी,
अब अंतहीन ये राह है।
वक़्त यूं पलटेगा कभी,
ख़्वाब में किसने सोचा था,
कभी हरियाली थी दामन में,
अब सूनी गलीयां साथ हैं।
- डॉ.शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)