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कठपुतलि...



नारी,
किस मिट्टी की 
बनी हो तुम, 
घर औ बाहर की 
एक कड़ी हो तुम, 
ममता धैर्य की प्रतिमूर्ति हो तुम,
स्नेह कोमल कंवल
पद्म सी हो तुम,
नारी,
कौन कहता है
एक कठपुतलि हो तुम, 
वंशवृद्धि की एक यंत्र 
हो तुम! 

कभी पद्मावती, 
तो दुर्गावती हो तुम, 
अग्नि से ना भय हो
ऐसी सती भी तुम,
हाथों मे तलवार लिए
लक्ष्मी बाई हो तुम, 
कभी ज्वाला सी
रज़िया सुल्तान भी तुम।

कभी सीता सी तपस्वीनी,
कभी द्रौपदी सी अभिमानिनी
कठिन कठोर हो तुम, 
कभी अहिल्या सी पाषाण, 
कभी प्रियदर्शनी इन्दिरा हो तुम।

नारी
कौन कहता है
कठपुतलि हो तुम।।

सदियों से 
पिसी गई
अबला,  मुक,
दांव पर लगाई 
मोहरा थी तुम, 
बुरखा, पर्दा,
चारदिवारी की 
बंधक थी तुम,  
आज तोड़ दो 
वो जंजीरें,
वो दीवारें, 
वह पायल,
वो चुड़ियाँ,
वो बंधन, 
तुम स्वतंत्र
आज़ाद, 
निखिल की 
पाखी हो तुम।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर (महाराष्ट्र)
समाचार 2302261263580939281
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