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भारतीय भाषा परिसंवाद - हिंदी और तेलुगु विषय पर आभासी गोष्ठी आयोजित


नागपुर/हैदराबाद। केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सहयोग परिषद, तथा वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा "भारतीय भाषा परिसंवाद - हिंदी और तेलुगु" विषय पर साप्ताहिक आभासी गोष्ठी आयोजित की गई।
    
कहना न होगा कि भारतीय भाषा, संस्कृति और जीवन शैली की लोकप्रियता और उपादेयता जगजाहिर है। सदियों से भारतीय भाषाओं में अंतःसंबंध भी सर्वविदित है। अतएव नई पीढ़ी में भारतीय भाषाओं को आत्मसात कराना अत्यंत आवश्यक है।भारतीय भाषाओं के बीच जागरण, सोच में बदलाव और नई रणनीतियों के बारे में विचार विमर्श जरूरी है। 

इस क्रम में हिंदी और शास्त्रीय भाषा के दर्जे में शामिल तेलुगु के संदर्भ में परिसंवाद आयोजित हुआ जिसमें विशेषज्ञों ने अनुभवजन्य ज्ञानवर्धक जानकारी दी। अनेक संस्थाओं के विद्वानों ने देश-विदेश से आभासी रूप से जुड़कर हर्षोल्लास के साथ सहभागिता की। 

परिसंवाद के आरंभ में साहित्यकार प्रो॰राजेश कुमार द्वारा भाषा और अनुवाद की आरंभिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के दूरस्थ शिक्षा विभाग के अध्यक्ष डॉ॰ राजवीर सिंह द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, सानिध्यप्रदाता, विशिष्ट वक्ताओं, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। संचालन का दायित्व शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ॰गंगाधर वानोडे द्वारा स्वयं संभाला गया। उन्होंने वक्ताओं का बारी-बारी आदर सहित परिचय देते हुए विचार प्रकट करने हेतु आमंत्रित किया।
     
हैदराबाद से साहित्यकार एवं विश्व हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित प्रो॰ पी. माणिक्यांबा 'मणि' ने इस कार्यक्रम पर अपार हर्ष प्रकट करते हुए तेलुगु साहित्य का संक्षिप्त इतिहास बताया और हिंदी के साथ समानताएँ एवं विशेषताएँ भी गिनायीं। उनका कहना था कि अनन्य भट को तेलुगु का आदि कवि माना जाता है। उन्होंने मोल रामायण, रंगनाथ रामायण और भास्कर रामायण की भी चर्चा की और बताया कि ये तुलसीकृत रामचरितमानस सदृश लोक प्रचलित नहीं हुए। महीयसी महादेवी वर्मा पर शोध कर चुकीं विदुषी एवं अनुवादक प्रो. मणिक्यांबा 'मणि' जी ने बताया कि बचपन में ही वे अनुवाद से प्रेरित हुईं और भविष्य में भी इसे कार्य क्षेत्र में भी चुना। उन्होंने डॉ॰ नगेंद्र, पांडुरंग राव, सूर्यनारायण भानु और राममूर्ति रेणु आदि विद्वानों के हिंदी तेलुगु साहित्य में अवदान को रेखांकित किया। इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी॰ वी॰ नरसिंहराव के साहित्यिक  योगदान की मुक्त कंठ से सराहना की।
     
वरिष्ठ तेलुगु साहित्यकार और अनुवादक तथा 30 से अधिक पुस्तकों के लेखक डॉ॰ निखिलेश्वर ने कहा कि भारतीय भाषाओं का आपसी मेल इतना गुंफित है कि विश्लेषण करना अत्यंत कठिन है। हिंदी और तेलुगु के समकालीन साहित्यकारों के लेखन में साम्य मिलता है। मुंशी प्रेमचंद, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, जयशंकर प्रसाद और राजेंद्र यादव तथा नामवर सिंह आदि की रचनाओं के सदृश तेलुगु में भी रचनाएँ हुई हैं। तकनीकी के प्रयोग से हमें इन्हें नई पीढ़ी तक सहज रूप में पहुँचाना चाहिए। 
     
हिंदी साहित्य भारती की आंध्र प्रदेश इकाई के अध्यक्ष डॉ॰ एस॰ कृष्णा बाबु ने विद्वतापूर्ण वक्तव्य में कहा कि संगीत और साहित्य, सरस्वती के दो चरण हैं। देश की समृद्धि और उत्थान में सत साहित्य का बहुत बड़ा योगदान होता है। हिंदी – तेलुगु साहित्य का भंडार अद्भुत एवं अथाह है।उन्होंने “दिव्यांग विमर्श, शकीला कहानी, आंध्र कथा सरोवर ,मुझे चाँद चाहिए, निर्णयम, और समन्वय दक्षिण आदि का विशेष रूप से उल्लेख किया। उनके द्वारा वैमरी बंधुओं, एन॰ टी॰ रामाराव का हिंदी भाषण, विजय राघव रेड्डी, ओम प्रकाश निर्मलऔर आचार्य भीमसेन निर्मल आदि के योगदान को हृदय से सराहा गया। इसके अलावा ज्ञानपीठ से सम्मानित डॉ॰ सी॰ नारायण रेड्डी की पुस्तक “विश्वंभरा का विशेष जिक्र किया। उन्होने प्रो॰ सर्राजू, शकुंतलम्मा देवी, सुमन लता और टी. सी. वसंता आदि साहित्यकारों और अनुवादकों की साहित्य साधना की प्रशंसा की। दीर्घानुभवी विद्वान डॉ॰ कृष्णा जी ने सुझाया कि साहित्य के माध्यम से हम समाज की विसंगतियों और विडंबनाओं को दूर कर दशा और दिशा सुधार सकते हैं।
     
हैदराबाद विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अन्नपूर्णा चेर्ला जी ने कहा कि हिं और तेलुगु में संस्कृत का मणिकांचन योग है। उन्होनें तेलुगु के बी॰ सुब्बाराव, बालशौरि रेड्डी, श्री सर्राजु, सीतादेवी और रमेश चौधरी आदि के सृजन और साहित्यिक योगदान को सांस्कृतिक सेतु की संज्ञा दी।उनके द्वारा दलित साहित्य और स्त्री विमर्श का भी उल्लेख किया गया। तेलुगु की बेराड, दसारी, डोमारा कामाथि आदि मुख्यतया 15 बोलियों में अपार साहित्य रचना अबाध गति से जारी है। हमें दस्तावेजों की उपलब्धता की व्यवस्था करनी चाहिए। 
     
तिरुपति से तेलुगू साहित्यकार एवं भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य राजभाषा प्रबन्धक पद से सेवानिवृत्त श्री एम॰ बालकृष्णा रेड्डी ने कहा कि वे किशोरावस्था से ही हिंदी, तेलुगु साहित्य से प्रेरित हैं। आंध्र के मूल साहित्यकारों ने हिंदी में रचनाएँ कर सकारात्मक भाव पैदा किया है। उन्होंने श्री रामचरितमानस और सूरदास की रचनाओं के तेलुगु अनुवाद का विशेष उल्लेख किया। उनका कहना था कि तिरुपति तिरुमला देवस्थान के सुप्रतिष्ठित मुखपत्र “सप्तगिरी" के हिंदी, तेलुगु और अंग्रेज़ी आदि संस्करण में असंख्य विद्वानों के साहित्य के दर्शन होते रहे हैं। 
     
परिसंवाद में हस्तक्षेप रूप में भाग लेती हुई प्रो॰ सुमनलता ने कहा कि हिंदी तेलुगु लेखन और अनुवाद का विपुल भंडार है। हिंदी भाषी वकील सूर्य नारायण उपाध्याय सरीखे साहित्यकारों ने तेलुगु सीखकर मौलिक रचनाएँ की। समय के परिवर्तन के साथ हमें काशी और लंदन में भी तेलुगु संवादी सहज रूप से मिल जाते हैं। साहित्य को संरक्षित करने तथा अगली पीढ़ी तक पहुँचाने हेतु दस्तावेजीकरण आवश्यक है।
     
हस्तक्षेप के क्रम में तेलुगू साहित्यकार तथा प्रोफेसर डॉ॰ दोड्डा शेष बाबु ने पुरजोर अपील की कि हिंदी –तेलुगु अनुवादित और मौलिक साहित्य की आसान उपलब्धता हेतु अलग से बेबसाइट आदि होनी चाहिए। बहुत सारा साहित्य गर्दिश में है। अनुवादकों और साहित्यकारों की नियमित बैठकें होती रहनी चाहिए और सत साहित्य जनता तक पहुँचाना चाहिए। 
     
भारतीय विद्या भवन से जुड़ीं साहित्यकार डॉ॰ सी॰ कामेश्वरी ने कहा कि तेलुगु और हिंदी मेरे लिए दो आँखों सी है। एक मातृभाषा और दूसरी कामकाजी राष्ट्रभाषा। हमें दोनों के लिए पूरे मनोयोग से कार्य करना चाहिए। भाषा का ठीक-ठीक ज्ञान और उच्चारण-वाचन, पठन–पाठन, लेखन-बोधन आवश्यक है। हिंदी और तेलुगु में अद्भुत सामंजस्य है। 
     
कार्यक्रम के हस्तक्षेप में अपनी बात रखते हुए सिंडीकेट बैंक से सेवानिवृत्त सहायक महाप्रबंधक डॉ॰ वेंकटेश्वर राव का व्यावहारिक सुझाव था कि ग्राम पंचायतों, प्रधानाध्यापकों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं की मदद से गाँव-गाँव तक हिंदी सिखाने की व्यवस्था हो। गाँव गोद लिए जाएँ। ग्रामीण क्षेत्र में पुस्तकालय स्थापित कर हिंदी के प्रति आकर्षण एवं रुझान बढ़ाया जाए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों, सरकारी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों और अन्य स्वायत्त सेवी संस्थाओं द्वारा भाषा के क्षेत्र में सामाजिक दायित्वों का निर्वहन किया जाए। इसके अलावा तेलुगु के हिंदी प्रचारक एवं प्रेमी मुफ्त में हिंदी सिखाएँ एवं जन मन में भाषा ज्ञान बढ़ाएँ।      
       
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के संरक्षक श्री अनिल जोशी जी ने माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ताओं, विषय विशेषज्ञों और प्रतिभागियों तथा देश-विदेश से जुड़े विद्वानों की उपस्थिति एवं ठोस सुझावों पर संतोष प्रकट किया। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं की अंतर्निहित शक्ति को पहचानकर चेतना जगाने एवं सामूहिक रूप से जुड़ने की नितांत आवश्यकता है। इस क्रम में हमें हिंदी-तेलुगू के सत साहित्य का चयन कर और सूची बनाकर निर्धारित समयावधि में कार्यक्रम करते रहने चाहिए।श्री जोशी जी ने पूर्व उप राष्ट्रपति डॉ॰ एम॰ वेंकय्या नायडू के हिंदी तेलुगु प्रेम एवं भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने को अत्यंत प्रेरणास्पद बताया। उनका कहना था कि हमें लिपि के महत्व को गहराई से समझाना चाहिए। विश्वविद्यालयों के माध्यम से हिंदी सर्टिफिकेट कोर्स को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरू करने का उपक्रम जारी है। हमें अपनी भाषाओं के लिए अहर्निश सामूहिक सत प्रयत्न करते रहना चाहिए।
    
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी-तेलुगु साहित्यकार एवं हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो॰ आर॰ एस॰ सर्राजु ने इस कार्यक्रम के आयोजन पर हर्ष प्रकट किया एवं प्रादेशिकता से राष्ट्रीयता की ओर बढ़ाने हेतु प्रेरित किया। उनका कहना था कि आधुनिक भारतीय भाषाओं का इतिहास हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। निरंतर परिवर्तनशील समाज में स्वस्थ परंपराओं का समकालीन बोध होना चाहिए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी भारतीय भाषाओं के लिए विशेष प्रावधान हैं। उन्होंने तेलुगु साहित्य का कालक्रमानुसार संक्षिप्त इतिहास बताया और अंग्रेज़ी द्रविडियन पुस्तक के अंश को उद्धृत करते हुए सभी भारतीय भाषाओं के एक ही परिवार के होने संबंधी तथ्य रखे। उनके द्वारा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के योगदान की भी सराहना की गई तथा भारतीय भाषाओं को साथ–साथ बढ़ाने की अपील की गई। विद्वान डॉ॰ सर्राजु ने पाठ्यक्रम निर्माण, पारिभाषिक शब्दावली, आधुनिक तकनीकी और संचार माध्यमों की भूमिका तथा भारतीय भाषा परिषद व भारत-बोध की ओर सबका ध्यान खींचा। उन्होंने हिंदी तेलुगु की सतत समृद्धि की कामना की।             
     
अंत में मुंबई से जुड़े लेखक डॉ॰ रमेश यादव ने आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ताओं, अतिथि वक्ताओं, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उनके द्वारा इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों को नामोल्लेख सहित धन्यवाद दिया गया। उन्होंने  इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय-तल से धन्यवाद दिया। यह कार्यक्रम यू-ट्यूब पर “वैश्विक हिंदी परिवार" शीर्षक से उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन कार्य डॉ॰ जयशंकर यादव ने संपन्न किया।

- डॉ. गंगाधर वानोडे
क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र
साहित्य 7082625567055668571
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