भारतेंदु युग हिंदी साहित्य के आधुनिक युग का प्रवेश द्वार : रोमिता शर्मा 'मीतू'
विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'भारतेन्दु युग के प्रमुख कवि एवं रचनाएं' विषय पर 154 वीं (27 वीं) आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी (रविवार 30 अप्रैल 2023) में वे मुख्य वक्ता के रूप में अपना मंतव्य दे रही थी।
विश्व विश्व हिंदी सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षता की। रोमिता शर्मा ने आगे कहा कि, भारतेंदु युग में देश की आजादी के लिए जो ज्वाला जली उसका सीधा असर साहित्य में भी देखा जा सकता है।
1857 की क्रांति के बाद चारों तरफ राष्ट्रीय चेतना की लहर दौड़ गई। कविताओं, नाटकों के द्वारा अंग्रेजों के कुशासन की पोलें खुलने लगी। भारतेंदु को सही अर्थों में गद्य का जनक कहा जा सकता है।
इन के समय में गद्य की बड़ी उन्नति हुई। उनकी रचनाओं में देशहित की भावना का समावेश हुआ है। हिंदी साहित्य को भारतेंदु जी ने नवीन मार्ग दिखाया। खड़ी बोली को भी परिष्कृत करने का श्रेय भी भारतेंदु जी को जाता है।
परिणामत: भारतेंदु युग के प्रमुख कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हमारे जीवन और साहित्य के बीच जो विच्छेद था उसे पूरा करने का सफल प्रयास भी किया। श्वेता मिश्रा, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि भारतेंदु जी ने लेखन में नवीन विषयों की प्रेरणा दी।
भारतेंदु जी की काव्य कृतियों की संख्या 70 के आसपास है। उन्होंने प्रकृति, श्रृंगार, कृष्ण लीला आदि का वर्णन अपनी स्वतंत्र अनुभूति से किया है। संस्थान के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतेंदु जी और उनके युग के कवियों का काव्य फलक विस्तृत है।
इस युग के कवियों ने राष्ट्रीयता को सबसे प्रमुख जगह दी। देश के उत्कर्ष और अपकर्ष के लिए उत्तरदायी परिस्थितियों पर इस युग के कवियों ने प्रकाश डाला तथा राजनीतिक, सामाजिक चेतना को भी व्यापक महत्व दिया। भारतेंदु जी से पूर्व भाषा स्थिर हो रही थी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850 से 1885) ने हिंदी गद्य के विकास में मुख्य भूमिका का निर्वाह किया है। गद्य के क्षेत्र में भारतेंदु अत्यंत आधुनिक थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में प्रेम मालिका, प्रेम सरोवर, प्रेम फुलवारी, गीत गोविंदानंद, वर्षा विनोद और विनय प्रेम पचासा उल्लेखनीय हैं।
भारतेंदु युग में भारतेंदु के अतिरिक्त बद्रीनारायण चौधरी “प्रेमघन”, प्रताप नारायण मिश्र, जगमोहन सिंह, अंबिकादत्त व्यास और राधाकृष्ण दास का प्रमुख रूप से उल्लेख किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त श्रीधर पाठक (1859 -1928) बालमुकुंद गुप्त (1865-1907) और हरिऔध (1865-1945) की कविताओं का प्रकाशन भी इस युग में आरंभ हो गया था।
भारतेंदु युग में कविता के क्षेत्र से ही खड़ी बोली का प्रयोग आधुनिक काल की विशेष उपलब्धि बना है। प्रारंभ में संस्थान के सचिव डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने विषय की प्रस्तावना की।
प्रा.रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की तथा लक्ष्मीकांत वैष्णव, शक्ति, छत्तीसगढ़ ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का सफल संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया तथा श्रीमती पुष्पा शैली श्रीवास्तव ने आभार ज्ञापन किया। गोष्ठी में अनेक गणमान्यों की गरिमामय उपस्थिति रही।