मीठा झूठ...
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हमारे जीवन में सत्य का अत्यंत महत्व है ।यहां तक कि उसे ईश्वर का रूप माना गया है ।एवं हर हाल में सत्य का ही सहारा लेने की बात कही गई है।किंतु कभी कभी विपरीत निर्णय लेना भी सत्य का ही पोषण करता है ।
बात सन् 1967 की है, स्नातक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की। उसके लिए मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री गोविंद नारायण सिंह जी के हाथों गोल्ड मेडल भी मिला। इससे आगे की पढ़ाई जारी रखने की प्रेरणा भी मिली। वैसे घर के लोग विशेष कर मेरे पिता तो स्त्री शिक्षा के भारी समर्थक ही थे पर मुश्किल एक ही थी।
हमारा खंडवा शहर छोटा सा था, आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए को एजूकेशन में ही जाना पड़ता, अर्थात गर्ल्स कालेज में बी. ए. के आगे पढ़ाई की सुविधा नहीं थी, और लड़कों के साथ पढ़ने भेजने के लिए हम छ: सात लड़कियों में से किसी के भी घर से कोई राजी नहीं था। सबके माता पिता को एजुकेशन में भेजने से डर रहे थे। किसी दिन यदि कोई किस्सा हो जाता तो कुछ क्षणों में ही बात पूरे शहर में फ़ैल जाती। सभी के घरों में इसी बात को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही थी।
पर हम सातों लड़कियों को तो एम.ए.करना ही था,कालेज में एडमिशन लेकर ।किंतु करें तो क्या करें? हम सब सहेलियां मिलती और ज्यों ज्यों एडमिशन की डेट समाप्त होने का समय नज़दीक आने लगा छटपटाने लगे, करें तो क्या करें? इसी बीच हममें से एक सहेली ने एक सुझाव दिया, क्यों न हम एक काम करें।
और उसने हमें एक योजना बताई। तदनुसार हमेमें से सबने अपने अपने घरों में कहा, ऊसके घर में तो हां कहा, है, आप भी हां कह दीजिए ना, इस तरह सबने अपने अपने घरों में एक झूठ का सहारा लिया और हमारी यह योजना सफल रही। हम सातों का एम. ए. में एडमिशन हो गया। पढ़ाई भी शुरू हुई, बहुत सारी शर्तों के साथ। जैसे हम किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे,क्लास न होने पर गर्ल्स रुम में ही बैठेंगे, आदि, आदि। सबने इन सब नियमों को स्वीकार भी किया, कड़ाई से पालन भी किया।
पर एक बात हम सबके मन में कांटे की तरह चुभ रही थी। हमने अपने घरों में झूठ बोला था। किंतु समय बीता, घर के लोग कालेज में हमारे कार्यों से खुश थे तब हम-सब ने निश्चय किया कि अब हम झूठ से पर्दा हटा दें। धीरे धीरे सबने अपने अपने घरों में मीठे झूठ वाली पूरी योजना बताई। थोड़ीं बहुत डांट के बाद अंततः खुशी जाहिर की हमारे मन का बोझ भी हटा। सबने बडे़ ही अच्छे नंबरों से एम.ए.पास किया।
आज भी जब इस मीठे झूठ के संबंध में विचार करती हूं तो लगता है क्या होता यदि उस समय ये झूठ न बोलकर पढ़ाई छोड़ देते? जीवन में अचानक आए बडे़ संकट का सामना कैसे हो पाता यदि एम. ए. की डिग्री हाथ में ना होती? कैसे महाविद्यालय में नौकरी मिल पाती? और यदि इतनी अच्छी नौकरी ना होती तो क्या हाल होते? सब का विचार करते करते आंखें भर जाती हैं, पर मीठे झूठ के मीठे आंसुओं से ।
- प्रभा मेहता
नागपुर (महाराष्ट्र)