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अकेले हम बूंद है, मिल जाएंगे तो सागर हैं : निशा चावला



सिंधी बोली दिवस पर विशेष

नागपुर। मोटिवेशनल स्पीकर निशा चावला ने बताया कि 1947 में अखंड भारत से भारत आए, तब साथ लाए  थे, अपनी प्यारी अबानी, मीठी बोली, सिंधी बोली। सनातन धर्म के लिए छोड़ आए थे, अपना घर, व्यापार, अपनी भूमि और हिंद में आकर जीरो से शुरूवात को थी। 

अपने परिश्रमी स्वभाव और मीठी बोली व्यापार के दक्ष होने के वजह से सिंधी समाज ने अपनी एक पहचान बनाई। और सिंध शब्द हमारे राष्ट्रगान के साथ पूरे भारत के कोने कोने में सिंधी कॉलोनी के रूप मे सामने आया।

हमारे भूतपूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने भाषण में कहा था कि 'हिंदी भाषा मेरी मां है, तो सिंधी भाषा मेरी मौसी है।' आज हर क्षेत्र में सिंधी भाई, बहनों ने अपनी पहचान बनाई है। हालाकि अल्पसंख्यक होने के बावजूद भी किसी सुविधा की मांग के बिना, अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देते है। सिंधी भाई बहनों के लिए एक बात कहना चाहूंगी।

'अकेले हम बूंद है, मिल जायेगे तो सागर है,
अकेले हम कागज है, मिल जायेगे तो किताब है,
अकेले हम धागा है, मिल जायेगे तो चादर है।'
हमारी सिंधी भाषा, हमारे गौरव की भाषा है आओ मिल के अपनी भाषा का मान बढ़ाए, सिंधी बोली दिवस मनाए।

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