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बस 'तू' ही न थी...



   तुझसे दूर रहकर -
   हर पल पुकारा तुझको
भोर की पहली किरण में
तपती दुपहरिया में भी -
    रात के आगोश में भी
महसूस किया तुझको -

खोजती रही निगाहें
'तू'ना दिखी कहीं भी
दौड़ती रही, लड़खड़ाती
रही-
  पकड़ ना पाई तुझको
 भंवर जाल में फंसी रही
   छूं ना पाई मैं तुझको--

झांका जब अपने अंदर
नस-नस में बस तू ही थी
तूही थी बस मां तू ही थी
चीखते रहे ढुलकतेआंसू
पोछनें को पर 'तू' ना थी
    सोचती रही तुझको -

कंठ सूखता गया-
      ओंठ भी ना खुले
तुझे बुलाती रही,-
'तू' दूर जाती रही-
पल्लू तेरा खींचती रही
मैं भी खिचती गई -
    मैं खिंचती रही
         खिंचती ही गई
पर 'तू' ना रुकी,
     जाती ही गई "मां"
जाती ही गई,बस जाती
           ही गई - ओ'मां'

- रति चौबे 
नागपुर (महाराष्ट्र)
समाचार 332072496770576517
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