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बेटी के ससुराल में मायके के दखल से होता है पारिवारिक विघटन : हरेराम वाजपेयी


 
नागपुर/पुणे। भारतीय संस्कृति को पोषित करने में संस्कारों की अहम भूमिका युगों से रही है। सोलह संस्कारों में विवाह को भी एक संस्कार माना गया है। पर बेटी के ससुराल में मायके के दखल से पारिवारिक समस्या कभी-कभी विकराल रूप धारण करती है। 

इस आशय का प्रतिपादन श्री मध्य भारत हिंदी समिति इंदोर, म.प्र. के प्रचार सचिव श्री हरेराम वाजपेयी ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश के तत्वावधान में आयोजित 152 वीं (20) राष्ट्रीय आभासी  गोष्ठी (15 अप्रैल) में वे विशिष्ट वक्ता के रूप में उद्बोधन दे रहे थे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की।

श्री वाजपेयी ने आगे कहा कि, विवाह पश्चात बेटी को  उसके ससुराल की विदाई के समय माता-पिता के द्वारा उन्हें जो शिक्षाएं दी जाती है, नारी धर्म सिखाया जाता है, वही उसकी बड़ी शक्ति होती है। पर वर्तमान में भौतिकता की अंधी दौड में लड़कियों को शिक्षा देने के बजाय सुख और सुविधाओं की बात अधिक बतायी जाती है, जिसके  दुष्परिणाम पारिवारिक विघटन पैदा करते हैं। वाजपेयी ने यह भी कहा कि ऐसी उत्पन्न कई समस्याओं पर समाधान के लिए दखल शब्द को हटाकर उसकी जगह सलाह और सहायता को स्थान दिया जाए। 

श्री प्रबोध कुमार गोविल, जयपुर, राजस्थान ने कहा कि 'दखल'  शब्द पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, जो मां-बाप अपनी पाली पोसी संतान को शादी के बाद एक नितांत अजनबी परिवार में हमेशा के लिए रहने भेज देते हैं, क्या वो उसके लिए चिंतित नहीं होगे। उसकी खैर खबर नहीं लेंगे। इसे 'दखल' नहीं कहा जाएगा। जिसके मन में चोर है, जो दान-दहेज के साथ दूसरे की बेटी को अपने घर में दोयम दर्जे की नागरिक बनाने के लिए लाया है। सच तो यह है कि दूसरे की बेटी को अपनी बेटी समझोगे तो सम्मान अपने आप मिलेगा। श्रीमती अपराजिता शर्मा, अवकाश प्राप्त अधिकारी, दूरदर्शन,रायपुर, छत्तीसगढ़   ने अपने मन्तव्य में कहा कि, वर्तमान  समय में बेहद परिपक्व  उम्र में शादियों हो रही हैं। 

अधिकतर पसंद के विवाह भी बढ रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि  पति-पत्नी नौकरी करने वाले हो, तो अहम का छोटा-सा टकराव बडा रूप ना ले, इसलिए दोनों परिवारों को समझदारी से पेश आना चाहिए। दोनो परिवारों में सामंजस्य की भावना निर्माण होनी चाहिए | श्रीमती वैभवी, संस्थापिका, हिंदी साहित्य संस्था, दिल्ली ने अपने उ‌द्बोधन में कहा कि आभासी गोष्ठी का विषय वास्तव में बहुत बड़ा है। उसमें सामाजिक सरोकार की  महत्ता निहित है। 

फिर भी दखल के कारण बहुत सारे परिवार टूट रहे हैं। वास्तविक रूप में समस्याओं के सही कारणों की तलाश होनी चाहिए। बेटियाँ अपने पापा की परी व माँ की लाडली होती है। बेटी की विदाई होने पर वे चाहते है कि बेटी ससुराल में सुखी रहैं, उसे कष्ट न हो। समस्या हर जगह है, पर समाधान जरूरी है। अनावश्यक दखल से छोटी-छोटी बातें विकराल रूप धारण करती हैं।  

राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र, अध्यक्ष, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि शादी के बाद बेटी के ससुराल में मायके का निरंतर हस्तक्षेप बेटी के सौहार्द पूर्ण जीवन में कटुता पैदा करता है। 

शादी के बाद बेटी से लगातार संपर्क में मोबाईल की भूमिका को कदापि नकारा नहीं जा सकता। क्योंकि माँ और बेटी में मोबाइल पर दिन भर लगातार बातें होती रहती है। परिणाम स्वरूप बेटी का परिवार बसने से पूर्व ही बिखरने लगता है| अत: मायके वालों को समझना चाहिये की हमारी बेटी अब बड़ी हो चुकी है। हमने उसे अच्छी शिक्षा और संस्कार दिये हैं।

इसलिए वह निर्मित परिस्थति से समायोजन व सामना करने में सक्षम है। माता-पिता बेटी पर विश्वास रखें। मगर मायके से डोली से जाना और ससुराल से अरथी में ही आना ये सीख कभी भी अपनी बेटी को ना दें। अन्यथा वह ससुराल में प्रताडित होकरे मायके की लाज के चक्कर में कहीं दम न तोड़ दें। 

अतः बेटी को अपनी सूझ-बूझ से जीने का अवसर देना चाहिए | प्रारंभ में संस्थान के सचिव  डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने  प्रास्ताविक  भाषण में विषय की प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बेटी के ससुराल में मायकेवालों की दखल अंदाजी पर उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त की। 

श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव, युवा सांसद प्रभारी,शक्ति, छ.ग ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की तथा सुश्री सीमा रानी प्रधान,  महासमुंद, छ. ग. ने स्वागत भाषण दिया। इस राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी  का उत्तम संयोजन, संचालन व नियंत्रण संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी व हिंदी सांसद डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने क्रिया तथा डा. सरस्वती वर्मा, महासमुंद, छ. ग. ने आभार ज्ञापन दिया। 

उक्त  गोष्ठी में संस्थान के महाराष्ट्र प्रभारी डॉ भरत शेणकर, राजूर, महाराष्ट्र, डॉ. शहनाज शेख, नांदेड, महाराष्ट्र, पूर्णिमा मालवीय, रतिराम गढ़ेवाल, उपमा आर्य, दीनबंधु आर्य, लखनऊ, कसिरा जहाँ, सैफुल इस्लाम, असम, सुश्री फरहत उन्निसा खान, विदिशा, मध्यप्रदेश,  प्रा. ललिता घोडके व प्रा. रोहिणी डावरे सहित अनेकों की गरिमामय उपस्थिति रही।
साहित्य 458827573089789003
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