समप॔ण...
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'क्यों, नहीं जायेगा'....
इकलौते बेटे सुमन ने कहा- 'माँ, कक्षा के सभी लड़के मुझे चिढ़ाते हैं और कहते हैं कि मैं... 'कहते कहते रोने लगा. विधवा कमला अपने बेटे के आंसू पोंछते हुए कहने लगी- 'अरे, तू तो मेरा बहादूर बेटा है। तुझे तो एक दिन बड़ा डॉक्टर बनना है'।
कमला ने उससे बड़ी आत्मियता से पूछा, 'आखिर, क्या बात है बेटा? आखिर तू स्कूल क्यों नही जाना चाहता'? सुमन बड़ी उदासी से कहने लगा- 'माँ, तू तो जानती है, न? मैं बैसाखी के बिना एक क़दम भी चल नहीं सकता।'
'इसमे ऐसी क्या बात'...?
'माँ, सभी मुझे लंगड़ा कह कर चिढ़ाते है। मै विकलांग जो हूं।'
'बस, इतनी सी बात से तू घबरा गया।' कमला अपने आंसू छिपाते हुए कहने लगी- 'बेटा, तू इन बातों में ध्यान न दिया कर और खूब मन लगाकर पढ़ाई कर।
'देखना एक दिन सब ठीक हो जायेगा'
'पर माँ'...? कमला अपने बेटे को समझाते हुए कहने लगी, 'बेटा, हमारी सरकार ने विकलांगों, अपाहिजों व दिव्यांगों के लिए विविध प्रकार की आथि॔क योजनाऐं शुरूं कर रखी है और देखना एक दिन तू बहुत बड़ा डॉक्टर बनेगा' माँ की बातों से सुमन को प्रेरणा मिलने लगी और वह एकाग्र होकर दिन रात पढ़ाई करने लगा।
आज कुछ वषो॔ बाद, एक विशाल मंच से अपनी आपबीती सुनाते हुए डॉक्टर सुमन की आंखों से आंसू बहने लगे। अपने भव्य हाॅस्पिटल 'कमला मेमोरियल मल्टी स्पेशलिटी' को अपनी स्वगी॔य माँ कमला के नाम से समपि॔त करते हुए उसे बड़ा आनंद और गव॔ हो रहा था।
- मोहम्मद जिलानी,
चन्द्रपुर (महाराष्ट्र)