भारतेंदु आधुनिक हिंदी काव्य के प्रवर्तक है : डॉ. अश्विनी करपे
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नागपुर/पुणे। रीतिकाल में हिंदी काव्य जनजीवन से दूर चला गया था। भारतेंदु ने साहित्य को जीवन से जोड़कर इस विच्छेद की खाई को पाट दिया। परिणामत: भारतेंदु आधुनिक हिंदी काव्य के प्रवर्तक है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ.अश्विनी करपे - कदम, हिंदी अध्यापिका, द्वारकादास मंत्री राजस्थानी विद्यालय, बीड़ (महाराष्ट्र) ने किया।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'भारतेंदु युग की प्रमुख काव्य प्रवृत्तियां' विषय पर आयोजित (30 मार्च) राष्ट्रीय आभासी 150 वीं गोष्ठी (26वीं) में वे मुख्य वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रही थी। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की।
डॉ. अश्विनी करपे ने आगे कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने न केवल अपनी पूर्व परंपरा पर चलते हुए काव्य रचनाएं की वरन् स्वयं अपनी एक परंपरा भी प्रारंभ की। वे अपने पूर्ववर्ती साहित्य से पूरे प्रभावित थे। अतः उनके काव्य में परंपरागत सभी धाराओं का प्रतिनिधित्व पाया जाता है।
भारतेंदु के भक्ति काव्य में कबीर , सूरदास और तुलसी की झलक मिलती है। वे वल्लभ संप्रदाय के वैष्णव थे। भारतेंदु का बचपन रीतिकाल में बीता था। अतः इसके प्रभाव से बच निकलना असंभव था। उन्होंने घनानंद, रसखान, ठाकुर, बोधा, आलम आदि स्वच्छंद कवियों का अनुकरण किया।
भारतेंदु जी ने राज्य भक्ति, देश भक्ति, समाज सुधार, देश प्रेम, हिंदी प्रेम आदि विषयों पर कविताएं लिखकर काव्य की संकीर्ण सीमा का विषय विस्तार किया। उनका हिंदी भाषा साहित्य के इतिहास में युगांतकारी योगदान है। सच्चे अर्थों में भारतेंदु आधुनिक काल के जनक कहे जा सकते हैं।
डॉ. सुबिया फैसल, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने अपने मंतव्य में भारतेंदु जी की काव्य प्रवृत्तियों के संदर्भ में देश प्रेम की व्यंजना, सामाजिक चेतना एवं जन काव्य, भक्ति भावना, भारतीय संस्कृति से प्रेम, प्राचीनता तथा नवीनता का समन्वय, अपनी भाषा से प्रेम, श्रृंगार और सौंदर्य वर्णन, हास्य व्यंग एवं प्रकृति चित्रण आदि का उल्लेख किया है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भारतेंदु युग के पूर्व कविता में रीतिकालीन प्रवृतियां थीं। अतिशय शृंगारिकता, अलंकार मोह, रीति निरूपण व चमत्कार प्रियता के कारण कविता जनजीवन से कट गई थी। परिणामत: भारतेंदु जी का पर्दापण हिंदी काव्य के लिए वरदान सिद्ध हुआ।
भारतेंदु युग में जो काव्य प्रवृत्तियां उभरी उनमें नवीन प्रवृत्तियों के साथ रीतिकालीन प्रवृतियां भी चल रही थी। इस युग की जनचेतना पुनर्जागरण की भावना से अनुप्राणित थीं। भारतेंदु और उनके युग के कवियों का काव्य फलक अत्यंत विस्तृत है। इस युग के कवियों ने अपनी कविता में राष्ट्रीयता को प्रमुख स्थान दिया।
भारतेंदु युग की राष्ट्रीय चिंतन धारा के दो पक्ष हैं - देश प्रेम और राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रीय और सामाजिक चिंतन के साथ ही भारतेंदु युग की कविता धार्मिक और भक्ति भावना से प्रभावित रही। राम काव्य की तुलना में कृष्ण भक्ति काव्य की रचना इस युग में अधिक हुई है। वस्तुतः यह युग सांस्कृतिक पुनरुत्थान का युग था।
भारतेंदु युग के प्रमुख कवियों में भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र के अतिरिक्त प्रताप नारायण मिश्र,बद्री नारायण चौधरी, ‘प्रेमघन’, अंबिकादत्त व्यास, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधा कृष्णदत्त, राधा चरण गोस्वामी आदि के नाम लिए जा सकते हैं। इनके अलावा श्रीधर पाठक, बालमुकुंद गुप्त, हरिऔध की कविताओं का प्रकाशन भी इस युग में प्रारंभ हो गया था।
प्रारंभ में संस्थान के सचिव डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने गोष्ठी के उद्देश्य व विषय के महत्व को प्रतिपादित करते हुए प्रस्तावना की। अर्जुन गुप्ता, प्रयागराज की सरस्वती वंदना से गोष्ठी का आरंभ हुआ। लक्ष्मीकांत वैष्णव ‘मनलाभ’, शक्ति, छत्तीसगढ़ ने स्वागत भाषण दिया। श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव ‘शैली’ रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने गोष्ठी का सफल संयोजन किया।
इस गोष्ठी में संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी व हिंदी सांसद डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र प्रभारी डॉ. भरत त्र्यंबक शेणकर, राजूर, महाराष्ट्र, रश्मि लहर श्रीवास्तव, लखनऊ, श्वेता मिश्रा, जय वीर सिंह (दोनों पुणे) प्रा. मधु भंभाणी, नागपुर, डॉ. पूनम माटिया, दिल्ली, डॉ. शहनाज शेख, नांदेड़, देवीदास बामणे, पेण, रायगढ़, महाराष्ट्र तथा अन्य महानुभावों की गरिमामय उपस्थिति रही। गोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया तथा सुश्री अनीता सक्सेना ने आभार ज्ञापन किया।