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अपनों का महत्व...



'उठो, मैं तुम्हे लेने आया हूँ।'
राकेश गहरी नींद से उठते हूए पूछने लगा, 'तुम कौन हो, इतनी रात को, अंदर कैसे आ गये हो?'
'मै यमदूत हूँ, मुझे आदेश है। तुम्हारी आत्मा लाने के,चलने के लिए तैयार हो जाओ।'
'तुम यह क्या कह रहे हो। मेरी अभी उम्र ही क्या है।'

'हम आदेश का पालन  करते है।'
'यमदूत जी, कोई पया॔य नही हो सकता क्या ?' राकेश ने हिम्मत कर के पूछा
'हो सकता है। कुछ माह पूर्व तुमने एक बालिका को दुघ॔टना मे मरने से बचाया था। इस कारण तुम्हे एक अवसर दिया जाता है।'
राकेश ने उत्सुकतावश पूछा,
'कैसे?'

'इस घर मे इस समय जो तुम्हारा सब से प्रिय व्यक्ति होगा, उसका नाम बताओ। तो तुम्हारे स्थान पर मैं उसे ले जाऊंगा, और उसकी शेष आयु के वष॔ भी तुम्हे मिल जायेगे'
'मुझे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए'
'ठीक है, पर शीघ्र निण॔य लेना'

राकेश अपनी पत्नी के शयन कक्ष में गया और पत्नी सुशीला को देखा जो अपनी दो छोटी बेटियों के साथ गहरी नींद में सो रही थी। उसके बाद  वहाँ से वह मंदिर घर में गया, जहाँ उसकी 70 वषी॔य मां सो रही  थी। उसे बड़े ध्यान से देखा और सीधे यमदूत के पास वापस आ गया।
'क्या निण॔य लिए हो?' यमदूत ने पूछा
राकेश ने कहा, 'मुझे ले चलिए। मैं चलने के तैयार  हूँ', दूसरे ही क्षण राकेश यमराज के सामने खड़ा था।

'ऐ मानव, जब तुम्हे अवसर मिल था। तब किसी एक का नाम ले सकते थे'
जी, हाँ, ले सकता था। पर जब मैंने पत्नी और दोनों बेटियो को देखा तो, विचार आया कि मैं पत्नी का नाम लेता हूँ तो मुझे दूसरा विवाह करने का भी अवसर मिल जाता, पर मेरी बेटियों को सौतेली मां का दु:ख झेलना पड़ता। पत्नी रह जायेगी, तो मेरे बाद मेरी नौकरी उसे मिल जायेगी और मां की देख भाल भी होते रहेंगी। इसलिए उसका नाम नहीं लिया'

'तुम्हारी मां तो 70 वष॔ की थी, उसका नाम ले सकते थे।' यमराज ने कौतुहलवश पूछा।
'ऐसा भी सोचा था, तो यह बात समझ में आयी कि मां रहेंगी, तो मेरे बाद सभी को ढाढ़स बांधेगी और सांत्वना भी देगी'

यह सुनकर यमराज अति प्रसन्न हुए। कुछ कहते, इतने मे राकेश को पत्नी की आवाज़ सुनायी दी, 'उठिए चाय लायी हूँ।' यह सुनते ही राकेश हैरान - परेशान  हो गया। उसे  ऐसे लगा कि रात मे कोई दुविधाजनक स्वप्न देखा हो। वह सीधे मां के कमरे मे गया और मां की गोद मे सिर रखकर फूट- फूट कर रोने लगा।

'क्या, कोई बुरा सपना देखा क्या?'
'मां, कल रात बहुत बड़ा अनथ॔ होते- होते टल गया।मां मैं बड़ा भाग्यवान हूँ कि मुझे तेरे सीखाये हुए संस्कारों ने बचा लिया।' कहते हुए राकेश की आंखों से आंसू बह रहे थे।

- मोहम्मद जिलानी, 
चन्द्रपुर (महाराष्ट्र )
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