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दक्षिण पूर्व एशिया में हिन्दी : स्थिति और संभावनाएँ


नागपुर/हैदराबाद। केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत ‘दक्षिण पूर्व एशिया में हिन्दी की स्थिति और संभावनाएँ’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें इस क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हिन्दी विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए। इस कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में देश विदेश से जुड़े प्रतिभागियों द्वारा आभासी रूप से नई और अद्यतन जानकारी सुरूचपूर्ण ढंग से आत्मसात की गई।

कहना न होगा कि गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्व एशिया की स्थिति अद्भुत है। यहाँ का रहन-सहन, खान-पान, भेष-भूषा और भाषा आदि सहज ही आकर्षण और पर्यटन के केंद्र हैं। भाषा और संस्कृति तथा अध्यात्म की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत समृद्ध है और अखंड भारत की विरासत को सँजोये हुए है।  

कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकार प्रो॰ राजेश कुमार द्वारा पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात केंद्रीय हिन्दी संस्थान के मैसूरु केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ॰ परमान सिंह द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, अतिथि वक्ताओं एवं विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। 

संचालन का दायित्व कार्यक्रम के संयोजक एवं भोपाल के भाषाकर्मी डॉ॰ जवाहर कर्नावट द्वारा मृदुल वाणी में बखूबी संभाला गया। बैंक ऑफ बड़ौदा में राजभाषा के पूर्व महाप्रबंधक एवं लेखक डॉ॰ कर्नावट ने दक्षिण पूर्व एशिया में भाषा संबंधी अपने विशद अनुभवों को साझा करते हुए अतिथि वक्ताओं को आदर सहित बारी -बारी वक्तव्य हेतु आमंत्रित किया।

थाईलैंड के चूड़ालंकरण विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक डॉ॰ कीटोपोंग बुंकर्ड ने इस आयोजन पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि भारत–थाई संबंध ढाई हजार वर्षों से भी अधिक समय पुराना है। थाईलैंड में भारतीय आत्मा बसती है। संस्कृत भाषा इसके मूल में है। यहाँ जातक कथाएँ ,रामायण और भारतीय साहित्य स्थानीय रूप में परिलक्षित है। यहाँ हिन्दी शब्द समझने में कठिन नहीं हैं। बेशक हिन्दी का व्याकरणिक व्यवस्था और संरचना विदेशियों को समझने में चुनौतीपूर्ण होती है।थाई -भारत सांस्कृतिक आश्रम 84 वर्ष पुराना है। 

लगभग दस वर्ष तक भारत में रह चुके प्राध्यापक बुंकर्ड ने बताया कि थाईलैंड में औपचारिक रूप से हिन्दी कक्षा 2 अक्तूबर 1946 में शुरू हुई। वैसे तो भारत में बौद्ध भिक्षुओं का आवागमन सदियों से अबाध रूप से होता रहा है।
भारत से हिन्दी विषय में एम॰ ए॰ करने वाले प्रथम थाई व्यक्ति प्रो॰ बुंकर्ड ने बताया कि थाईलैंड के हिन्दी विद्वान डॉ करुणा कुशलाशाही को नई दिल्ली में वर्ष 1983 में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में सम्मानित किया गया था। वे गांधीजी और कवीन्द्र रवीन्द्र से भी मिल चुके थे। थाई भारत प्रेम, संबंध और पर्यटन प्रगाढ़ है। 

विश्वविद्यालय स्तर तक संस्कृत के साथ हिन्दी पढ़ाई जाती है ।स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र में भी हिन्दी सिखाई जाती है। दूतावास का सक्रिय सहयोग रहता है। प्रो शिखा रस्तोगी और सुशील धानुका सरीखे विद्वान-विदुषी सक्रियता से हिन्दी सिखा रहे हैं।यहाँ आगामी दस वर्षों में हिन्दी के अति विकासनशील लक्षण हैं।

मलेशिया की हिन्दी साहित्यकार प्रो काजल मेहता ने हर्षातिरेक से कहा कि मलेशिया में हिन्दी की सहज स्वीकृति है। मलय भाषा में हिन्दी के सैकड़ों शब्द समाहित हैं।सिनेमा और संचार माध्यमों में हिन्दी से सहज आकर्षण है। 

दूतावास के माध्यम से भी वर्ष भर अनेक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं जिनमें स्थानीय लोग भारी संख्या में भाग लेते हैं। यहाँ हिन्दी भाषा -संस्कृति और नृत्य संगीत आदि की ऑनलाइन और ऑफलाइन कक्षाएं भी चलती हैं। गीता आश्रम, सृजन संगम, मारवाड़ी युवा मंच और मंदिरों, टी.वी. चैनलों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों आदि की भी हिन्दी को बढ़ावा देने में अत्यंत सक्रिय भूमिका रहती है। 

साहित्यिक गोष्ठियाँ और तीज त्योहार आदि के कार्यक्रम भी उत्साहवर्धक ढंग से आयोजित होते हैं जिनमें हिन्दी का बोलबाला रहता है। भारत में मेडिकल और इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने हेतु जाने वाले मलेशियायी विद्यार्थी भी हिन्दी सीखकर जाते हैं।मलेशियायी भूमि पुत्रों को भारत से बहुत प्रेम है।

वियतनाम के सामाजिक विज्ञान और मानविकी विश्वविद्यालय की प्रो॰ साधना सक्सेना ने बताया कि वे 1987 से वियतनाम में हैं। स्थितिजन्य विवशतावश, कोई कोश न होने से उन्होने अपने एक छात्र के साथ “हिन्दी वियतनामी कोश” तैयार किया जो दशकों से काफी चलन में है। वर्ष 2000 में कौंसलावास के सहयोग से विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग खुला। 

वियतनामी विद्यार्थी भारतीयों से हिन्दी में बात करने में बहुत इच्छुक होते हैं। भारत में जाकर पढ़ने के लिए छात्रवृति भी दी जाती है।प्रवासी भारतीयों के बच्चों द्वारा हिन्दी वियतनामी पढ़ना श्रेयस्कर होगा। यहाँ अनेक हिन्दी कार्यशालाएं आयोजित हुईं हैं और हिन्दी के विकास की अपार संभावनाएं हैं। भारत और वियतनाम के संबंध मैत्री सहयोग और सद्भावनापूर्ण हैं।

हनोई में नव नियुक्त हिन्दी प्राध्यापिका डॉ मोनिका शर्मा ने बताया कि उत्तरी वियतनाम में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की अपार संभावनाएं हैं। भाषा, संस्कृति और अध्यात्म के क्षेत्र में कक्षाएं चलती हैं। हाल ही में यहाँ से विद्यार्थियों के समूह ने भारत जाकर “मानस गायन समारोह” में भी भाग लिया। 

म्यांमार से जुडने वाले सुप्रसिद्ध हिन्दी सेवी श्री ब्रजेश वर्मा ने बताया कि भारत म्यांमार संबंध अटूट है। यहाँ 1918 से ही हिन्दी पाठशालाएँ चलने लगीं। पहले यहाँ हिन्दी समाचार पत्र हाथ से लिखकर बांटे जाते थे। म्यांमार में उनके बड़े भाई की हिन्दी सेवाएँ स्तुत्य हैं जो भारतीय विदवानों में सुपरिचित हैं। तकनीकी कठिनाई के कारण उनका वक्तव्य पूरा श्रव्य नहीं हो पाया।
इंडोनेशिया में धर्म स्थापना फाउंडेशन के संस्थापक श्री ई॰मादे धर्मयश ने इस कार्यक्रम में शामिल होकर बड़ी प्रसन्नता की अनुभूति प्रकट की। 

सत्तर से अधिक पुस्तकों के लेखक तथा भगवतगीता के अनुवादक श्री धर्म यश ने अपनी बात की शुरुआत “ॐ स्वस्ति अस्तु” और सबको प्रणाम से की। उन्होंने कहा कि भारत इंडोनेशिया संबंध अत्यंत प्राचीन है। रामायण काल में भी सीताजी की खोज के लिए सुग्रीव द्वारा दूतों को इंडोनेशिया भेजा गया था। उन्हें ताड़ पत्र और कालपात्र के अध्ययन से भी अनेक प्रमाण मिले हैं। 

भाषा, संस्कृति, कला, शास्त्र और अनगिनत मंदिरों के रूप में यहाँ असंख्य साक्ष्य हैं। आज भी जमीन की थोड़ी खुदाई करने पर प्रायः शिवलिंग और गणेशजी की मूर्तियाँ मिलती हैं। महर्षि अगस्त्य और मारकंडेय इंडोनेशिया पधारे थे।यहाँ इनकी पूजा भी होती है। अभी भी युवा पीढ़ी को हिन्दी बोलने और हिन्दी गाने में बहुत रुचि है। 

यहाँ के स्कूलों में हिन्दी, संस्कृत सिखाने की व्यवस्था है किन्तु विश्वविद्यालय में सीमित है। इंडोनेशिया हिन्दी का उर्वर क्षेत्र है। यहाँ सभी धर्मों में बच्चों के नाम भी राम, सीता, विष्णु और अर्जुन आदि रखे जाते हैं। लड़कों के नाम से पहले “ई” और लड़कियों के नाम से पहले “नि” लगाया जाता है। वर्ष 2018 में विश्व हिन्दी सम्मेलन में सम्मानित श्री धर्म यश ने भारत इन्डोनेशिया सम्बन्धों को अटूट और प्रगाढ़ बताया और हिन्दी का भविष्य उज्जवल करार दिया।

प्रख्यात भारतीय भाषा विज्ञानी प्रो॰ जगन्नाथन ने कहा कि समूचा एशिया भारतीय अभिव्यक्ति से अविछिन्न रूप में जुड़ा है। हिन्दी को विरासत की भाषा के रूप में इन सभी देशों में समुचित पाठ्य सामाग्री, प्रशिक्षित अध्यापक और अन्य सुविधाएं प्रदान कर पढ़ाया जाना चाहिए। रेल मंत्रालय के पूर्व राजभाषा निदेशक डॉ विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा कि मनोरंजन के साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका के मद्देनजर पठन पाठन में  “एजुटेंमेंट पद्धति अपनाई जानी चाहिए। जिसे “learnhindiedutainnment.in” पर देखा जा सकता है। फिल्मी गीतों के उदाहरण के माध्यम से अनेक देशों में यह पद्धति काफी लोकप्रिय हो रही है। 

जापान से जुड़े पद्मश्री प्रो॰ तोमियो मिजोकामी का कहना था कि विभिन्न सम्मेलनों में दक्षिण पूर्व एशिया के विद्वानो से आत्मीय मुलाकात अविस्मरणीय है। शिकागो के एक प्रोफेसर द्वारा 1971 में की गई शोध के अनुसार सीखने में सरल एवं सन्निकट विश्व की 19 भाषाओं में “ थाई, आखिरी नंबर पर है। निःसंदेह हिन्दी और थाई की तरफ रुचि बढ़ी है और कठिनाइयाँ घटी हैं।

केंद्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल के उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के संरक्षक श्री अनिल जोशी जी ने आज के विषय विशेषज्ञों और प्रतिभागियों का सादर समादर करते हुए भारतीय विदेश नीति की व्यापकता की सराहना की और आने वाले समय में दक्षिण पूर्व एशिया से बेहतरीन सम्बन्धों की कामना की। उन्होने मुख्य रुप से तीन बातें रखीं। 1- सांस्कृतिक एकता को मजबूती मिले। 2- भारतीय दूतावासों और अन्य संस्थानों के माध्यम से हिन्दी पठन -पाठन और पर्यटन आदि को त्वरित गति मिले। 3- भाषा –संस्कृति आदि को बढ़ावा देने हेतु प्रौद्योगिकी का भरपूर उपयोग किया जाए। अद्भुत समन्वयक व प्रवासी साहित्य विशेषज्ञ श्री जोशी जी ने आज के वक्ताओं द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को बहुत महत्वपूर्ण बताया।

विपुल अनुभवजन्य सारगर्भित अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के मानद निदेशक डॉ नारायण कुमार ने इस कार्यक्रम पर हर्ष प्रकट किया और सभी को हर संभव प्रयास सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने प्रशंसनीय प्रयास के लिए सभी भाषायी कीर्तित और अकीर्तित नायकों को नमन किया। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में अनेकों बार यात्राएं कर चुके एवं व्यक्तिगत रूप से भाषा –संस्कृति क्षेत्र में सुपरिचित वयोवृद्ध हस्ताक्षर श्री नारायण कुमार जी ने सांस्कृतिक डायसपोरा को मजबूत बनाने की वकालत की। 

इंडोनेशिया दौरे में पूर्व प्रधानमंत्री स्व॰ अटल बिहारी वाजपेयी का संस्मरण सुनाते हुए श्री नारायण कुमार ने कहा कि इन्डोनेशिया के समकक्ष ने वाजपेयी से कहा कि –उन्होने धर्म बदला है ,भारतीय संस्कृति नहीं। हमारा “भारत को जानें ,कार्यक्रम अबाध गति से चल रहा है।     

अंत में वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर सिंगापुर से जुड़ीं इस कार्यक्रम की संयोजक प्रो संध्या सिंह ने आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष ,विशिष्ट वक्ता ,अतिथि वक्ताओं, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया । उन्होने इस कार्यक्रम से देश -विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों को  नामोल्लेख सहित धन्यवाद दिया। 

विश्व हिन्दी सम्मान से सम्मानित विदुषी डॉ॰ संध्या सिंह ने वैश्विक भाषायी गौरव बढ़ाने हेतु भाषायी प्रचार प्रसार को त्वरित गति देने की सदिच्छा प्रकट की तथा इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद दिया। उन्होने आने वाले समय में पूरी दुनियाँ में दक्षिण पूर्व एशिया की महत्ता बढ़ने की संभावना भी बताई । 

यह कार्यक्रम यू ट्यूब पर 'वैश्विक हिन्दी परिवार' शीर्षक से उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन का कार्य डॉ॰ जयशंकर यादव जी ने संपन्न किया।

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