मेहनत का फल...
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कलेक्टर साहेब ने आते आते एक
वृद्ध व्यक्ति की ओर देखा और अंदर चले गये।
'बी के शमा॔ कौन है?' आपको साहेब ने बुलाया है।
शमा॔ जी को स्कूल की शिक्षक की नौकरी से रिटायर हुए 15 साल हो चुके थे।
शारिरिक थकान की वजहे से वे धीरे धीरे चलते हुए अन्दर गये। कहने लगे 'नमस्कार सर,मेरी पेंशन कई माह से रोकी गयी है...' वह कहते कहते एकदम से रूक गये। उन्हें ऐसे लगा, जैसे किसी ने उनके पैर स्पश॔ किए हो।देखा तो कलेक्टर साहेब सामने खड़े थे।
'यह आप क्या कर रहे हो।
सर, आपने मुझे पहचाना नहीं।मै आपका विद्यार्थी कमलेश, जिसका गणित बहुत ही कमज़ोर था।आपके ढाढ़स बांधने के कारण ही मै गणित में उत्तीर्ण हो सका। आप ही ने तो मेरी फीस भरी थी।मैं आपके उस वक्त किए हुए उपकार को कैसे भूल सकता हूँ।'
शमा॔ जी के आंखो से आंसू छलक आए। 'तुम्हे देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया है।हम शिक्षक हमेशा अपना कर्तव्य निभाते है।यह तो संस्कारी विद्यार्थियों की निष्ठा होती है कि वे अपने शिक्षकों को याद रखकर सम्मान देते है।'
'सर,आपका दिया हुआ,मनोबल आज भी मेरे साथ है। तुम्हें और तुम्हारे संस्कारों को देखकर, मै धन्य हो गया हूँ, ऐसा लग रहा कि मुझे मेरी मेहनत का फल मिल गया है।' यह कहते कहते शमा॔ जी बाहर आ गए।
- डॉ. मोहम्मद जिलानी,
चन्द्रपुर (महाराष्ट्र)