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राष्ट्रबोध ही राष्ट्रीय चेतना का मानक है : डॉ. श्रीराम परिहार



नागपुर। राष्ट्रबोध ही किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रीय चेतना का मानक होता है। 'नेशन' शब्द राष्ट्र का पर्यायवाची नहीं है। राष्ट्र एक सांस्कृतिक भावधारा का बोधक है, इसकी कोई सीमा नहीं है। जबकि देश की सीमा होती है, उस पर किसी का आधिपत्य होता है। उक्त विचार प्रख्यात साहित्यकार डॉ. श्रीराम परिहार ने 'हिन्दी साहित्य में राष्ट्रबोध के स्वर' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। वे सांस्कृतिक कार्य विभाग, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुम्बई तथा हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे। 

डॉ. परिहार ने जोर देकर कहा कि भारत को वैभवशाली बनाने का क्या हम कोई स्वप्न देखते हैं? क्या भारत के निर्माण के लिए कुछ करने के लिए छटपटाते हैं? यदि ऐसा है तो यह राष्ट्रबोध है। हमारा राष्ट्रबोध ही हममें राष्ट्र- प्रेम का बीजारोपण करता है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता, स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा के लिए स्वतंत्रता का संग्राम हुआ। आज भारत स्वतंत्र हो गया पर हमारी भाषा, भूषा, भोजन और भवन बदल गया है। इसलिए राष्ट्रबोध की आवश्यकता है। 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि पूर्व विधायक व वनराई फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ.गिरीश गांधी ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ा गया। गांधीजी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय चेतना को जन-जन में जाग्रत किया। वीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस आदि सभी क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रबोध की भावना को प्रेरित किया। भारतीय भाषाओं के साहित्य में इसकी अनुगूॅंज सुनाई पड़ती है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में नागपुर विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु प्रो. संजय दुधे ने  कहा कि 'वसुधैव कुटुंबकम्' यह भारत का सनातन सन्देश है। भारत में हो रहे G-20 सम्मेलन का भी यही सन्देश है, जिससे सारा विश्व प्रेरणा ले रहा है। यह हमारे लिए गौरव का विषय है। यह भाव हमारे साहित्य का मुख्य प्रेरक रहा है।

कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि राष्ट्र भौगोलिक नहीं, भावनात्मक सत्ता का नाम है। यह हमारी सामुहिक चेतना की अभिव्यक्ति है। स्वतंत्रता संघर्ष में राष्ट्रीय एकता की भावना केन्द्रीय थी। यही समूचे राष्ट्र की एकात्मकता का मूलाधार रही। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. संतोष गिरहे ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ. सुमित सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रयागराज से पधारे डॉ. शिव प्रसाद शुक्ल, डॉ . पूर्णेन्दु मिश्र, डॉ. मिथिलेश अवस्थी, डॉ. राजेन्द्र पटोरिया, डॉ. सपना तिवारी, रीमा चड्ढा, माधुरी मिश्रा, डॉ. नागदिवे, डॉ. मालोकर, डॉ. लखेश्वर चंद्रवंशी, डॉ. नीलम वैरागडे सहित अनेक गणमान्य लोग एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
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