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हमारी प्राचीन संस्‍कृति में है भारतीयता का सूत्र



तमिल और हिंदी’ विषय पर आभासी संगोष्ठी संपन्न 

नागपुर/हैदराबाद। केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत ‘भारतीय भाषा परिसंवाद : तमिल और हिंदी’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। 

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी के सानिध्य में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ की महासचिव डॉ. ए. भवानी ने की। संगोष्ठी में वक्ता के तौर पर डॉ. पी.एस. विजयराघवन (प्रभारी संपादक, राजस्थान पत्रिका), डॉ. राजशेखर (हिंदी विभागाध्यक्ष, लोयोला कॉलेज चेन्नई), डॉ. संतोषी (सहआचार्य, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा) एवं श्री ईश्वर करुण (तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी के सचिव) ने अपनी बात रखी। संगोष्ठी का संचालन केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे ने किया।

लगभग सवा दो घंटे तक चली संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रो. राजेश कुमार ने रखी। केंद्रीय हिंदी संस्थान भुवनेश्वर केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. रंजन दास ने संगोष्ठी में शामिल सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। 12वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान विश्व हिंदी सम्मान से विभूषित तथा आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ. ए. भवानी ने कहा कि दुनिया भर में हिंदी की पहुंच बढ़ रही है। फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया भर के लोग संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि अनुवाद और तुलनात्मक अध्ययन पर गंभीरता के साथ काम किया जाना चाहिए ताकि हिंदीतर क्षेत्रों में भी हिंदी भाषा का प्रभाव और प्रसार व्यापक हो।

कार्यक्रम के दौरान अपनी बात रखते हुए राजस्थान पत्रिका के प्रभारी संपादक डॉ. पी.एस. विजयराघवन ने कहा कि उत्तर भारतीय बड़े नेताओं के बार-बार के प्रवास से तमिलनाडु में हिंदी पत्रकारिता समृद्ध हुई है, और हिंदी पत्रकारिता ने ढेर सारे तमिल भाषा भाषी लोगों को हिंदी के करीब लाने में अपार सफलता अर्जित की है। हाल ही में तमिलनाडु में हुए बिहार के मजदूरों के पलायन की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी के अखबारों के जरिए जनता में फैली गलतफहमियों को दूर करने में बहुत हद तक सफलता मिली। 

लोयोला कॉलेज चेन्नई हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजशेखर ने कहा कि केवल साहित्य को लेकर ही बात नहीं होनी चाहिए हिंदी भाषा ज्ञान और विज्ञान का भी माध्यम बने, इसके लिए हमें और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। देश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में शुरू किए जाने पर हर्ष प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति ने मातृभाषाओं के लिए भाषाई समृद्धि का दरवाजा खोल दिया है। हमें इसका उपयोग करना चाहिए तथा हिंदी सहित सभी स्थानीय भाषाओं को रोजगार का जरिया बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि 1857 में हिंदी पूरे देश के लिए स्वतंत्रता की भाषा थी जिसे 1873 में भारतेंदु ने ‘कालचक्र’ पत्रिका में हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में चिह्नित किया था। उन्होंने कहा कि हिंदी को बाजार की भाषा के साथ-साथ संवाद की भाषा के रूप में भी विकसित करने की जरूरत है। 
दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचार सभा चेन्नई की सहआचार्य डॉ. संतोषी ने भाषा के स्तर पर हिंदी तथा तमिल भाषा की दशा और दिशा को लेकर एक विश्लेषणात्मक विचार प्रस्तुत किए। 

उन्होंने बताया कि भाषा के मोर्चे पर तमिलनाडु में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक रूचि ले रही हैं। स्त्रियों की भागीदारी के महत्व को इन आँकड़ों से समझा जा सकता है कि सभा में अगर 40 लोग नामांकित होते हैं तो उनमें से 35 स्त्रियाँ होती हैं। स्त्रियाँ लगन के साथ हिंदी भाषा में एम.ए. कर रही हैं, शोध कर रही हैं। 

उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में हिंदी के तमिल भाषी शिक्षक नहीं है। वहाँ अधिकतर तेलुगू भाषी लोग हैं जो लोगों को हिंदी सिखाते हैं। तमिल में चूँकि महाप्राण नहीं होता इसलिए तमिलनाडु के छात्रों को थोड़ी दिक्कत भी होती है। उन्होंने कहा कि कई तरह की तकनीकी दिक्कतों के बावजूद हिंदी बढ़ रही है। हिंदी को और आगे बढ़ाने के लिए सीबीसीएस में क्रेडिट जोड़ा गया है तथा अनुवाद को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। अनुदित साहित्य को भी पाठ्यक्रम में रखा गया है ताकि वहां के साहित्य से बच्चे सीधे जुड़ सकें। 

तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी चेन्नई के सचिव ईश्वर करुण ने ‘वण्णकम’ के साथ अपनी बात शुरू करते हुए कहा की भाषाएँ जब आपस में मिलती है तो एक अलग तरह का भाषाई चमत्कार होता है। इसलिए भी भाषाई सौहार्द के लिए हमें गंभीर और लगातार काम करने की जरूरत है। मूलतः मैथिली भाषी श्री करुण ने कहा कि हमें सहोदर भाव विकसित करने पर बल देना चाहिए तथा दक्षिण भारत के लोगों द्वारा प्रयुक्त की जा रही हिंदी को उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के लोगों द्वारा स्वाभाविक तौर पर बोली जाने वाली हिंदी अत्यंत महत्वपूर्ण होगी जो कि यहाँ के लोगों को सहज समझ आएगी तथा अन्य भाषा भाषी लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करेगी। उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों पर तमिलनाडु के चरित्रों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी को हास्यास्पद तरीके से पेश किए जाने का आरोप लगाया तथा कहा कि हमें इसे इसी रूप में अंगीकार करने की ओर आगे बढ़ना चाहिए। कार्यक्रम के दौरान डॉ. एम ज्ञानम, डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, डॉ. वी. पद्मावती, डॉ. के रामनाथन सरीखे विद्वानों ने भी हस्तक्षेप किया तथा अनुवाद, रोजगार, साहित्य की आवाजाही, सरकारी उदासीनता, राजनीतिक अड़चनें आदि मुद्दों को आगे कर अपनी बातें रखी। 

कार्यक्रम का समाहार करते हुए केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि तमिलनाडु को भाषागत दृष्टिकोण से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी थोड़ी बहुत रुकावटें हैं उन्हें सहयोग, संवाद और समन्वय से ठीक किया जा सकता है। देश के कुछ हिस्सों में आर्य और द्रविड़ को लेकर प्रचलित कपोल कल्पित कहानियों को श्री जोशी ने न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण बल्कि निराधार भी बताया। उन्होंने कहा कि भारतीयता का सूत्र हमारी प्राचीन संस्कृति में ही है। 

श्री जोशी ने कहा कि गाँधीजी ने हिंदी के विकास की नींव दक्षिण भारत में रखी थी। हमें आकलन करना चाहिए कि जिस उम्मीद के साथ गांधीजी ने शुरुआत की थी हम उस पर कितने खरे उतरे। हमें गाँधी जी के सपनों को साकार करने के लिए आपस में भाषाई सौहार्द को विकसित करना होगा तथा तुलनात्मक अध्ययन को केंद्र में लाना होगा। 

श्री जोशी ने कहा कि केंद्रीय हिंदी संस्थान प्रवासी लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन कर रहा है इस तर्ज पर दक्षिण भारत के लेखकों की कृतियों के प्रकाशन का भी मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए। अंत में सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ने सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में देश-विदेश के हिंदी प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। रिपोर्ट लेखन का कार्य डॉ॰ श्री अनिल तिवारी जी ने संपन्न किया।
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