सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक है सूफी साहित्य - डॉ कन्हैया सिंह
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नागपुर। सूफी साहित्य भारतीय चिंतनधारा में सांस्कृतिक एकता का सूत्रधार है। इस धारा ने भारतीय समाज में समन्वय की चेतना विकसित की। प्रायः सभी सूफी कवि इस्लाम पंथ के मानने वाले थे, लेकिन उन्होंने हिंदु प्रतीकों के माध्यम से सामाजिक समरसता पर बल दिया। यह बात सूफी साहित्य के मर्मज्ञ, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कन्हैया सिंह ने कही। वे हिंदी विभाग राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में 'सूफी साहित्य में सामाजिक समरसता' विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सूफी साहित्य में प्रेम के माध्यम से ऐसी आध्यात्मिक चेतना का चित्रण हुआ है जिसका एक विशेष निहितार्थ है। वह सामाजिक सौहार्द स्थापित करने की प्रेरणा से अंकुरित है।
प्रेम संसार में जोड़ने का नाम है। प्रेम के पाश में बंध कर व्यक्ति सत्य और विश्वास दोनों का पक्षधर बन जाता है। जहां प्रेम है, वहां संसार की सारी कामनाएं, समस्त इच्छाएं, समस्त सद्गुण स्वयं विद्यमान हैं । सूफी कवि इसी प्रेम की आराधना करते हैं। समाज में इसका प्रसार हो, ऐसा हर दौर में अपेक्षित रहा है, आज भी है। डॉ. सिंह ने कहा कि समस्त सामाजिक विसंगतियों की जड़ में प्रेम का अभाव ही विद्यमान है।
स्वागत उद्बोधन देते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि सूफी काव्य मध्यकालीन समाज का एक ऐसा सच है जो समकालीन समाज के लिए भी दिशा दर्शक है। किसी भी प्रगत समाज के लिए उसकी उपादेयता बनी रहेगी। कबीर , जायसी, तुलसी, मीरा जैसे कवि कभी काल-कवलित नहीं हो सकते। इसकी वजह यह है कि सूफी कवि प्रेम और वेदना के माध्यम से जीवन में सहिष्णुता और सद्भावना की सीख देते हैं।
इस अवसर पर इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, प्रयागराज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. विनम्र सेन सिंह ने 'हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना' पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना पुनर्जागरण काल से ही देखने को मिलती है। यद्यपि इसके पूर्व भी भारतीयता का भाव हमारे साहित्य में रहा है, लेकिन राष्ट्रीय चेतना का विकास निश्चित रूप से विदेशी आक्रांताओं के अत्याचार के कारण पनपा। हमारे सभी प्रतिनिधि रचनाकार राष्ट्रीय चेतना से प्रेरित थे। उनका साहित्य इसका गवाह है कि आजादी के पूर्व तक राष्ट्रीयता भारतीय साहित्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष रहा है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ सुमित सिंह ने और आभार प्रदर्शन डॉ. संतोष गिरहे ने किया। इस अवसर पर महालेखाकार कार्यालय के श्री अनिल त्रिपाठी, विभाग के शिक्षक डॉ.एकादशी जैतवार, डॉ कुंजन लाल लिल्हारे, प्रा. जागृति सिंह, डॉ. लखेश्वर चंद्रवंशी सहित अनेक विद्यार्थी उपस्थित थे।