स्वतंत्रता एक मूल्य बोध है : प्रो. रामजी तिवारी
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नागपुर। स्वतंत्रता हमें उपहार में नहीं मिली है, इसके लिए लंबे समय तक हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया है। आजादी का अमृतोत्सव मनाते समय हमें अपने को सेनानियों की कुर्बानियों को याद रखना चाहिए। स्वाधीनता एक मूल्य बोध है, इसका परिचय हमें अपने सेनानियों की गौरवपूर्ण गाथा से होता है। हमारी कोशिश इस मूल्य बोध को बचाए और बनाए रखने की होनी चाहिए।
यह बात मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रामजी तिवारी ने हिंदी विभाग राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ एवं महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में कही।
प्रो. तिवारी ने कहा कि हमें अपने अतीत के सुनहरे गौरव से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस समाज में स्वतंत्रता के मूल्य का महत्व समाप्त हो जाता है वह समाज प्राणहीन हो जाता है। समापन समारोह नागपुर के निवर्तमान महापौर दयाशंकर तिवारी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि स्वतंत्रता का उद्देश्य तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक समाज का प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के महत्व से परिचित नहीं हो जाता। स्वतंत्रता में केवल अधिकार नहीं, कर्तव्य बोध भी निहित है। हमारी भाषाओं का साहित्य हमें गौरवबोध प्रदान करता है।
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अर्जुन चव्हाण ने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन की पृष्ठभूमि हिंदी नवजागरण के कारण तैयार हुई। देश में जो राष्ट्रव्यापी नवजागरण चलाया गया, उससे पूरे भारतीय समाज में स्वाधीन चेतना की ललक विकसित हुई।
पांडिचेरी विश्वविद्यालय के प्रो. जयशंकर बाबू ने भारतीय नवजागरण और स्वतंत्रता के अंतर्संबंधों को रेखांकित किया। डॉ. मिथिलेश अवस्थी ने कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष के राष्ट्रव्यापी स्वरूप निर्धारण में हिंदी साहित्य का महनीय योगदान रहा।
डॉ. पुनीत राय ने कहा कि हिंदी कविता में भारत की संकल्पना को साकार करने की अद्वितीय पहल हुई है। 'स्वतंत्रता संग्राम की पत्रकारिता' विषय पर बोलते हुए प्रो.आनंद कुमार सिंह ने हिंदी पत्रकारिता के उद्देश्य पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता इस मकसद को लेकर शुरू हुई कि 'जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो'। यह न केवल स्वाधीनता संग्राम के दौर का घोष वाक्य था बल्कि स्वतंत्रता की लड़ाई में एक मूल मंत्र था, जिसमें कलम के माध्यम से संघर्ष - चेतना की लौ को प्रज्वलित करने का सराहनीय प्रयास हुआ।
दो दिवसीय संगोष्ठी में स्वतंत्रता संघर्ष के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला गया। 'भारतीय संस्कृति एवं अतीत का गौरव बोध,' 'हिंदी नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन', स्वाधीनता संघर्ष के सेनानी साहित्यकार,'साहित्य में स्वतंत्रता सेनानियों का गौरव गान', 'स्वतंत्रता संग्राम का साक्ष्य: कालजयी कृतियां', 'भारत की संकल्पना और हिंदी कविता' तथा 'स्वतंत्रता संग्राम की पत्रकारिता' पर समानांतर सत्रों में व्यापक चर्चा -परिचर्चा हुई।
प्रो. सुनील कुलकर्णी, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय,जलगांव, प्रो. अर्जुन चव्हाण, कोल्हापुर विश्वविद्यालय, प्रो. अनिल राय, दिल्ली विश्वविद्यालय, डॉ. शैलेंद्र कुमार, भाषा विज्ञान विभाग, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, डॉ. मेघना शर्मा, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर, डॉ. सोपानदेव पिसे, सेवादल महाविद्यालय नागपुर,
डॉ. संदीप सपकाले, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, सरदार पटेल कालेज, चंद्रपुर के डॉ. शैलेंद्र शुक्ल, पांडिचेरी विश्वविद्यालय के प्रो. जयशंकर बाबू, नागपुर के साहित्यकार डॉ. मिथिलेश अवस्थी, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलरामपुर के डॉ. पुनीत राय, प्रो.आनंद कुमार सिंह, भोपाल, डॉ. शंकर मुनि राय, शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांदगांव, प्रो. अनिल दुबे , वर्धा आदि ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी में नागपुर के उदीयमान कवियों मनीष बाजपेयी, आनंद राज आनंद, विनोद विद्रोही, श्रद्धा शौर्य, डॉ. जयप्रकाश की उपस्थिति में काव्य संध्या का आयोजन किया गया। कवियों ने अपनी ओजस्वी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अंत में आभार ज्ञापित करते हुए संगोष्ठी के संयोजक डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि स्वतंत्रता के महत्व को बचाए रखने के लिए स्वधर्म, स्वराज और स्वदेशी की अवधारणा पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। संचालन डॉ. संतोष गिरहे ने किया तथा प्रतिवेदन डॉ. सुमित सिंह ने प्रस्तुत किया।