ऋग्वेद, रामायण व महाभारत काल से सांस्कृतिक निरंतरता के वैज्ञानिक प्रमाण
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नागपुर/हैदराबाद। हैदराबाद केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित साप्ताहिक ई - आभासी वैश्विक संवाद का कार्यक्रम वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषाकर्मी श्री राहुल देव के सान्निध्य में संपन्न हुआ।
आभासी गोष्ठी का विषय था -'ऋग्वेद, रामायण व महाभारत काल से सांस्कृतिक निरंतरता के वैज्ञानिक प्रमाण'। डॉ. सरोज बाला, पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, भारतीय राजस्व सेवा और पौराणिक ग्रन्थों की वैज्ञानिकता से संबन्धित पुस्तकों की प्रख्यात लेखिका अतिथि बक्ता के रूप में उपस्थित थीं। संबादी के रूप में गरुड़ प्रकाशन के संस्थापक श्री संक्रांत सानू उपस्थित थे।
सर्वविदित है कि सनातन प्राचीन ज्ञान अथाह है। इसकी ऐतिहासिकता और वास्तविकता के प्रमाण मिलते रहते हैं। ऋग्वेद से लेकर वेद पुराण और रामायण तथा महाभारत काल की सांस्कृतिक निरंतरता के वैज्ञानिक प्रमाण जगजाहिर होते हैं। क्रमिक विकास और शोध के परिणामस्वरूप बिबिध तथ्य उजागर होने स्वाभाविक हैं। आधुनिक सूचना क्रांति और प्रौद्योगिकी युग में भी शोध के आयाम और गवेषणा के गवाक्ष खुले हैं। आज के रविवारीय कार्यक्रम में पौराणिक ग्रंथों की वैज्ञानिकता से संबंधित पुस्तकों की प्रख्यात लेखिका डॉ. सरोज बाला से श्री संक्रांत सानू द्वारा सीधा संबाद किया गया जिससे दुनिया के दर्जनों देशों से जुड़े श्रोताओं के समक्ष चौंकाने वाले प्रमाण सामने आए।
इक्कीसवीं सदी में हुई अकल्पनीय घटनाओं और आधुनिक यंत्रों ने भारतीय राजस्व सेबा की सुप्रतिष्ठित अधिकारी डॉ. सरोज बाला जी के जीवन की दिशा प्रेरित की। उन्होंने वेदों और महाकाव्यों की ऐतिहासिकता एवं पुरातनता पर आधुनिक प्रौद्योगिकी के सहारे वैज्ञानिक शोध किया एवं प्रामाणिक पुस्तकें लिखीं।
उन्होंने वैदिक युग एवं रामायण काल की ऐतिहासिकता के संबंध में समुद्र की गहराइयों से आकाश की ऊँचाइयों तक के वैज्ञानिक प्रमाण दिए। रामायण और महाभारत की कहानी विज्ञान की जुबानी हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखी। उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े शीर्षस्थ वैज्ञानिकों का भी मार्गदर्शन और सहयोग मिला।
कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकार एवं अनुसंधित्सु डॉ. जबाहर कर्नाबट द्वारा सारगर्भित प्रस्ताविकी प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के मैसूर केंद्र पर तैनात डॉ. परमान सिंह द्वारा आत्मीयता से माननीया अतिथि वक्ता, सानिध्यप्रदाता, संवादी एवं विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। तदोपरांत संवाद शुरू करने के लिए गरुड़ प्रकाशन के संस्थापक, तकनीकीविद एवं विचारक श्री संक्रांत सानू को आमंत्रित किया गया।
आज के कार्यक्रम के आयोजन पर मुख्य वक्ता और संबादी द्वारा अपार हर्ष प्रकट किया गया। संवादी श्री सानू के शोध की प्रेरणा के सबाल पर पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त एवं केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की सदस्य डॉ. सरोज बाला ने बताया कि प्राचीन ज्ञान की खोज हेतु आधुनिक प्रौद्योगिकी ने नए द्वार खोले और विविध आयाम स्थापित हुए। उन्हें संस्कृत भाषाशास्त्रियों, नासा, इसरो, तारामंडल वैज्ञानिकों तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आदि के विशेषज्ञों से सहयोग मिला और विविध प्रमाण जुटाए।
शोध प्रक्रिया के सवाल पर उन्होंने बताया कि उनका कार्य विभिन्न माध्यमों के प्रमाणों का आधुनिक तकनीकी की मदद से मिलान पर आधारित है। उन्होंन, भूगोल, खगोल, पुरातत्व, बेद शास्त, अनुबाद, व्योम चित्र और प्रकृति तथा समुद्र बिज्ञान आदि से चाह को राह मिली। बेशक बेद अपौरुषेय कहे जाते हैं किंतु उनमें निहित ज्ञान का आनंद असीम और अनंत है। ऋग्वेद लगभग सात हजार ईस्वी पूर्व का है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में कहा गया है कि धरती, पिता समान सूर्य के चारों ओर घूमती है और चंद्रमा, माता समान पृथ्वी का चक्कर लगाता है। गैलीलियो आदि ने बहुत बाद में खोज की जो हमारे ग्रंथ पर आधारित है। हमारे यहाँ उत्तरायन सूर्य आदि की चर्चा अक्सर की जाती है।
रामायण के सवाल पर पूर्व महानिदेशक विदुषी डॉ. सरोज बाबा ने कहा कि पहले आसमान ही खुला कैलेंडर होता था। अब आधुनिक तकनीकी से ग्रह नक्षत्र, पुत्रेष्टि यज्ञ का समय और खर दूषण तथा सीताजी की खोज आदि के समय सही तौर पर निर्धारित हुए हैं। अनेक प्रसंग कई दृष्टियों से की गई शोधों का मिलान करने पर सही प्राचीन समय बताते हैं। जैसे राम जी के जन्म आदि का समय। उनका शोध कार्य बाल्मीकी के रामायण पर आधारित है। वे स्वयं धनुष कोडि आदि गईं और पानी के अंदर राम सेतु पर शोध कर आईं जिसका पृथ्वी विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिकों ने प्रमाणन किया। उन्होंने अनेक देशों में अनेक सेमिनार किए।
रामायण लगभग 5116 ईस्वी पूर्व से 5076 के बीच का है। महाभारत के प्रश्न पर शर शैया पर पड़े भीष्म पितामह के शरीर त्याग की वैज्ञानिक सिद्धि की। उन्होंने दुख प्रकट किया कि अनुवादकर्मियों ने हमारे सनातन ज्ञान को अलग अर्थों में अनुवादित किया जो समीचीन नहीं है। शब्द बहण के लिए हरियप्पा आदि को हड़प्पा रूप में प्रस्तुत किया गया। हमारे इतिहास को दरकिनार कर मनगढ़ंत अलग इतिहास लिखा गया। सरस्वती नदी आदि के विषय में सही तथ्य अब सामने आ रहे हैं। महाभारत के 3139 ईस्वी पूर्व के प्रमाण उपलब्ध हैं।
कार्यक्रम में भाषाकर्मी श्री राहुल देब और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक श्री नारायण कुमार ने सक्रियता से भाग लेकर तथ्यों के उजागर होने पर प्रसन्नता प्रकट की एवं शोध की सराहना करते हुए प्रामाणिकता पर आश्चर्य प्रकट किया। अमेरिका से अनूप भार्गव, जापान से पद्मश्री तोमियो मिजोकामी, श्रीनगर से शबनम, कोयंबटूर से सरिता, असम से रघुनाथ पाण्डेय तथा कटक से आरुणी आदि के सवालों का डॉ. सरोज बाला ने बेबाक बिश्लेषण करते हुए उत्तर दिया।
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी जी ने परंपरागत ज्ञान और आधुनिक खोज की प्रशंसा की और इतिहास को सही दृष्टि से समझने की पुरजोर अपील की। उन्होंने अतिथि वक्ता, संवादी और सुधी विद्वानों का सादर समादर करते हुए आज की चर्चा को अत्यंत सार्थक बताया।
अंत में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से डॉ. जयशंकर यादव ने आत्मीयता से अतिथि बक्ता, सानिध्य प्रदाता, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित विशेष आभार प्रकट किया। डॉ. यादव द्वारा भारतीय सनातन संस्कृति का वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु शोध कार्य तथा इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीमसदस्यों को हृदय तल से धन्यवाद दिया गया।