वर्तमान हिंदी खड़ी बोली का मानक रूप है : श्रीमती इंदुमति खंडागले
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नागपुर/पुणे। हिंदी भाषा के पास 1000 वर्ष से अधिक काल का गौरवशाली इतिहास है, पर निसंदेह वर्तमान हिंदी, खड़ी बोली का मानक रूप है। इस आशय का प्रतिपादन मुला एज्युकेशन सोसाइटी, सोनई संलग्नित श्री शनैश्वर माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय, सोनई तहसील नेवासा जिला, अहमदनगर, महाराष्ट्र की हिंदी अध्यापिका श्रीमती इंदुमति खंडागले / दारकुंडे ने व्यक्त किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में आयोजित 143 वीं (25 वीं) आभासी गोष्ठी में सोमवार 30 जनवरी को मुख्य अतिथि के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रही थी। गोष्ठी की अध्यक्षता विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने की। 'खड़ी बोली गद्य की प्रारंभिक रचनाएं एवं रचनाकार' गोष्ठी के इस विषय पर अपने मंतव्य में श्रीमती खंडागले ने आगे कहा कि 1800 ई. से पूर्व हिंदी का कोई व्यवस्थित रूप हमारे सामने नहीं था। 1800 ई. में कोलकाता में फोर्ट विलियम की स्थापना के पश्चात हिंदी के भावी स्वरूप के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका के निर्वहन पर बल दिया गया।
गोष्ठी की वक्ता डॉ. अश्विनी करपे, अध्यापिका, द्वारकादास मंत्री राजस्थानी विद्यालय, बीड़, महाराष्ट्र ने अपने मंतव्य में कहा कि खड़ी बोली का मूल नाम कौरवी है। जब इसे मानक हिंदी के रूप में अपनाया गया तभी से वह खड़ी बोली कहलाई गई। खड़ी बोली दिल्ली, मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, देहरादून, अंबाला जैसे जिलों में बोली जाती है। लल्लूलाल, सदल मिश्र, इंशा अल्लाह खां तथा मुंशी सदासुख लाल खड़ी बोली गद्य के प्रतिस्थापक माने जाते हैं । परंतु इनमें से किसी को भी इस परंपरा को प्रतिष्ठित करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।
आधुनिक खड़ी बोली गद्य की परंपरा की प्रतिष्ठा का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र एवं राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद को प्राप्त है, जिन्होंने सरल व सर्वसम्मत गद्य शैली का प्रवर्तन किया। कालांतर में भारतेंदु की शैली को अपनाया गया। इस अवसर पर डॉ. संध्या खंडागले, हिंदी अध्यापिका, अनंतराव पवार महाविद्यालय, पिरंगुट, पुणे, महाराष्ट्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने अध्यक्षीय समापन में कहा कि खड़ी बोली गद्य को एक साथ आगे बढ़ाने में मुंशी सदासुखलाल, सैयद इंशा अल्ला खां, लल्लू लाल तथा सदल मिश्र इन चार महानुभावों का महनीय योगदान है। अत: आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा भी है कि आधुनिक हिंदी का पूरा पूरा आभास मुंशी सदासुखलाल और सदल मिश्र की भाषा में ही पाया जाता है।
राजा शिवप्रसाद सितारे हिंदी एवं राजा लक्ष्मण सिंह का योगदान भी खड़ी बोली गद्य के विकास में उल्लेखनीय है। इसी श्रृंखला में भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने ही हिंदी गद्य को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। तत्पश्चात हिंदी गद्य को परिमार्जित व परिष्दृत करने का दायित्व पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने निभाया।
बाद में आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा अन्य अनेक महानुभावों ने हिंदी गद्य को वर्तमान स्थिति तक पहुंचाने में सफलता पायी। प्रारंभ में विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने विषय के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए संस्थान की विविध गतिविधियों को उजागर किया।
गोष्ठी का शुभारंभ श्री अर्जुन गुप्ता, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की सरस्वती वंदना से हुआ। श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव, चांपा, छत्तीसगढ़ ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी में प्रा. मधु भंभाणी, नागपुर तथा अन्य महानुभावों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
गोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन बाल सांसद राष्ट्रीय प्रभारी डॉ.रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया तथा श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव ‘शैली’, कार्यक्रम संयोजक, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, हिंदी सांसद ने आभार प्रदर्शित किए।