'माँ धूप की छाँव माँ सुख का सागर' कविता के माध्यम से प्रकट हुई माँ की महिमा
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नागपुर/हिंगना। माँ धूप की छाँव, माँ की खुशियों का सागर, नील गगन जितना उसकी ममता का पदर... प्रदेश भर के कवियों ने माँ की महिमा गाते हुए कविताएँ प्रस्तुत कीं.
इस अवसर पर कवि माणिक खोबरागड़े की कविता 'माई' को प्रथम पुरस्कार दिया गया. त क प्रतिष्ठान यशवंतराव चव्हाण जिला केंद्र एवं आई प्रतिष्ठान के तत्वावधान में आयोजित राज्य स्तरीय कुसुमकन्या काव्य प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण समारोह शनिवार को आयोजित किया गया था.
यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान जिला केंद्र के पूर्व अध्यक्ष डॉ. गिरीश गांधी, संजय नाथे, अजय पाटिल, राजाभाऊ टाकसांडे, डॉ. अभय महाकाल आदि उपस्थित थे पारिवारिक सहयोग के अभाव में भी बेटी को डॉक्टर बनना सिखाने वाली संगीता धर्मा को इस अवसर पर सम्मानित किया गया.
दूसरा पुरस्कार ज्योति कपिले और तीसरा पुरस्कार रविंद्र जावड़े को दिया गया दिव्या कलामकर को प्रोत्साहन पुरस्कार दिया गया. इस अवसर पर सुजाता देशपांडे, मीनल येवले, माला पारधी, सुषमा मुल्मुले, धनश्री पाटिल, बृंदा जोगलेकर आदि कवियों ने मां पर कविताएं प्रस्तुत कीं. 'जन्म की पीठ ऐसी है, क्या तुम खड़े रहोगे.
इस अवसर पर 'क्या तुम मुझे फिर से अपनी कोख से जन्म दोगी' शीर्षक से एक कविता भी प्रस्तुत की गई. महाकवि सुधाकर गायधनी ने प्रदेश भर की कविताओं का परीक्षण किया.प्रास्ताविक मदर फाउंडेशन के सदस्य डॉ. मंजूषा सावरकर, संचालन कीर्ति कालमेघ और दिनेश मासोदकर ने तथा आभार नीलेश सोनटक्के ने माने.
सास को दें मां के समान सम्मान! 'कवियों को कविता के प्रति गंभीर होना चाहिए, विचार करना चाहिए कि क्या यह शब्द उचित है।
'अपने ही परम सत्य' के भ्रम में मत रहो प्रतिभा को उपकरण चाहिए कवियों के पास एक प्रभावी शब्दावली होनी चाहिए', गिरीश गांधी ने इस समय नए कवियों को सलाह दी. गांधी ने कहा कि सास को मां के समान सम्मान देना चाहिए. संजय नाथे ने संवेदनशील रहने की जरूरत जताई.