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प्रेम...



आइये आज प्रेम पर बात करते हैं। मदनोत्सव मनाने वाले देश में प्रेम पर बात करना वर्जित है। आप यदि किसी से प्रेम करते हैं तो कह नही सकते, कह भी दिया तो प्रेम निभा नही सकते। क्योंकि भारत में प्रेम हमेशा कविता कहानियों में होता है या फिर होता है छुप छुपा कर। खुलेआम प्रेम करना पाप है अपराध है। ये हमारे दौर की बात थी या फिर हमसे पहले के ज़माने की बात थी ।जहाँ माता पिता की अनुमति के बिना प्रेम नही किया जा सकता था। हमारे दौर में प्रेम की अभिव्यक्ति सही न थी। कहना बुरा था, प्रेम करना भी बुरा था। शादी से पहले किया गया प्रेम स्वीकार न था । 
         
नये दौर में बहुत खुलापन है ।प्रेम का प्रदर्शन शीर्ष पर है। दिल के इमोजी अब फेसबुक के कमेंट में लगने लगे हैं। युवा अपने साथी के साथ घूमने लगे हैं। लड़कियों ने वर्जनाओं को पीछे छोड़ दिया है।अब संबंध बनाने से भी उन्हें परहेज नही रहा ।यदि पुरुष कर सकता है तो महिला क्यों नही ? वासना शीर्ष पर है। अश्लीलता, पोर्न और व्यभिचार चारों तरफ बस यही दिखता है।
           
प्रेम तो प्रकृति की सबसे सुंदर नेमत है जो हमें मिली है। कण कण से प्यार किया जा सकता है। दो पंछियों की तरह निश्छल प्रेम बहुत ज़रूरी है।दुख इस बात का है कि यही निश्छल प्रेम सिरे से समाज से गायब है। शादीशुदा जोड़े में जीवन के संघर्ष ने इतनी कटुता भर दी है कि प्रेम बचा ही नही है। आये दिन तलाक की खबरें आती हैं। लिव इन की परिणति श्रद्धा के 36 टुकड़ों की तरह होती जा रही है।
          
वसंतोत्सव के देश में वैलेंटाइन पर्व के बहाने से आइये विचार तो करें कि प्रेम जो सबसे ज़रूरी है वह प्रेम क्यों इस तरह वासना की गिरफ्त में है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था का प्रेम अब नहीं दिखता। राधा कृष्ण सा प्रेम कहाँ है ? मीरा सी दीवानगी कहाँ है ? शिव पार्वती सा प्रेम कहाँ है ? कहाँ बची सीता के स्वयंवर सी परंपरा कि स्त्री अपने लिए जीवन साथी का चुनाव कर सके। और वही जीवनसाथी यदि 14 बरस के वन गमन के साथ के बावजूद चरित्र पर संदेह करे तो मानिनी बन स्त्री उसका परित्याग कर सके। 
               
हमारे देश में माँ की आज्ञा मानने की  परंपरा है। वस्तु की तरह द्रौपदी को पाँच पतियों में बाँट दिया गया क्योंकि माँ ने कहा था। माँ की बात को हमारे भारतीय पुरुष कभी नही नकारते ।माँ के कहने पर पत्नी बाँट लेते हैं या त्याग देते हैं। भारतीय माँ स्त्री होने के बावजूद अपनी बहू का सुख नही देख सकती। बेटे का मोह इस कदर हावी है कि बहू बेटे के अलगाव की वजह बन जाती है । भारतीय पति पत्नी के रूप में सदा ही एक दासी की कामना करता है। हाथ बांधे जो खड़ी रहे। हुकुम की गुलामी करे और जब उसे शरीर का सुख चाहिए औरत हमेशा उसके लिए उपलब्ध रहे। पत्नी यदि पसंद न आये तो ये भारतीय पुरुष बाहर चार औरतों से बेहिचक संबंध बनाता है। पहले औरतें घुटती थीं अब वे भी बगावत पर उतर आईं हैं। विवाहेत्तर संबंध बहुत बन रहे हैं। 
        
ऊपरी रूप से भारतीय संस्कृति का ढोल पीटता हमारा समाज छुपकर प्रेम संबंध बनाने की अनुमति दे देता है। खुले आम प्रेम पर प्रतिबंध है पर आप आधी रात को दूसरी औरत के पास जाकर आ जाइये किसी को कुछ पता नही चलता । औरतों के पास तन बेचने के लिए कई विवशताओं का रोना है ,आर्थिक प्रमुख है। अब स्थिति इस कदर बिगड़ रही है कि मोबाइल और नये कपड़ों के लिए तन बेच दिया जा रहा है। क्षणिक सुख के लिए भी नयी लड़कियाँ न कपड़े उतारने से परहेज़ करतीं हैं ना शरीर बेचने से इन्कार करती हैं। 
             
ऐसे माहौल में भी कुछ लोग अभी बचे हैं जो जाति धर्म से परे केवल विशुद्ध प्रेम करते हैं । अपने साथी के सुख की परवाह करते हैं। प्रेम के मायने समझते हैं। समर्पण, सहयोग और त्याग का अर्थ जानते हैं। ढाई आखर की पूंजी सहेजना ज़रूरी समझते हैं। 
          
प्रेम के इस मौसम में आइये प्रेम करें।खुलेआम प्रेम करें। प्रकृति से प्रेम करें। अपने आप से प्रेम करें। अपने माता पिता भाई बहन, अपने बच्चों से प्रेम करें। पति पत्नी आपस में प्रेम करें।एक दूसरे का सम्मान करें। एक दूसरे की भावना का मान रखें । अपने पड़ोसी से प्रेम करें। अपने आफिस के सहयोगियों से मित्रवत प्रेम करें। अपने मित्रों से प्रेम करें ।अपने दुश्मनों से प्रेम करें क्योंकि वे ही हैं जो आपकी प्रगति से जलते हैं अत: अनजाने आप को आगे बढ़ाते हैं। अपने काम से प्रेम करें। हर एक प्राणी से प्रेम करें। पशुओं से प्रेम करें। पौधों से प्रेम करें। पैसे से प्रेम करें पर ध्यान रखें कि ये प्रेम इतना ना बढ़ जाये कि बाकी सारे प्रेम लील जाये।
         
प्रकृति के इस सुहाने मौसम में आइये प्रकृति से प्रेम करें, खुलेआम करें और प्रकृति के रंग में रंगकर पूरी कायनात को प्रेम के रंग में डूब जाने दें।कबीर ने कहा है -
         प्रेम न बाड़ी उपजै प्रेम न हाट बिकाय 
         राजा परजा सो रुच, शीश देय ले जाय।।

- रीमा दीवान चड्ढा
नागपुर, महाराष्ट्र 
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