'प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय' विषय पर हुई रोचक परिचर्चा
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नागपुर। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा एवं वामा विमर्श मंच के संयुक्त तत्वावधान में प्रेम रंग - 'प्रेम न बाड़ी उपजै प्रेम न हाट बिकाय' इस विषय पर रोचक परिचर्चा आयोजित की गयी। नवगठित संस्था वामा विमर्श मंच के पदाधिकारियों का पदग्रहण समारोह भी साथ ही सम्पन्न हुआ।
वामा विमर्श मंच की अध्यक्ष रीमा दीवान चड्ढा, कार्यकारी अध्यक्ष शगुफ्ता यास्मीन काज़ी, उपाध्यक्ष अर्चना राज चौबे, सचिव नीलम शुक्ला, सहसचिव युगंधरा जगताप तथा कोषाध्यक्ष रेशम मदान सर्वसम्मति से चुनी गयीं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता हेमलता मिश्र 'मानवी' तथा मुख्य अतिथि डाॅ वीणा दाढे के साथ विशिष्ट अतिथि अनिल त्रिपाठी, रतन मदान और राजेश नामदेव मंचासीन थे। कार्यक्रम का सधा हुआ संचालन सचिव नीलम शुक्ला ने किया।
कार्यक्रम अध्यक्ष हेमलता मिश्र 'मानवी' ने क्रोंच वध का प्रसंग उठा कर अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि प्रेम की परिपूर्णता उसके समर्पण में है।
मुख्य अतिथि वीणा दाढे ने टॉलस्टॉय के उपन्यास अन्ना कारेनिना का जिक्र किया जिसकी नायिका विवाहित होते हुये भी अन्य पुरुष के प्रेम में पड़कर अपने परिवार को छोड़ कर चली जाती है और सारा जीवन एक अपराध बोध से घिरी रहती है। उन्होंने चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का भी जिक्र किया जिसमें प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया गया है।
कार्यक्रम का शुभारंभ स्वाति सुमेश पैंतिया की गायी सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए शगुफ्ता यास्मीन काज़ी ने कबीर के दोहे पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ का ज़िक्र किया।
अध्यक्ष रीमा दीवान चड्ढा ने वामा विमर्श मंच की स्थापना पर प्रकाश डाला तथा साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा वैचारिक क्षेत्र में महिलाओं को मंच देने एवं महिलाओं के हित में सामाजिक कार्य करने की संकल्पना का ज़िक्र किया।
महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रसार और वामा विमर्श के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में प्रेम पर सभी ने अपने विचार रखे।
विशिष्ट अतिथि स. निदेशक एवं हिंदी अधिकारी, आयकर विभाग अनिल त्रिपाठी ने कहा कि हर कोई किसी न किसी से प्रेम करता है। चाहे वो माता, पुत्र का हो या पति, पत्नी का या भाई बहन का।उन्होंने कहा कि हमारा युवा वर्ग भी प्रेम का वास्तविक रूप क्या है ये जानने का प्रयास करे। उन्होंने अपनी स्वरचित कविता तिरंगा भी प्रस्तुत की।
ग्राम सभा मेल के संपादक राजेश नामदेव ने कहा कि प्रेम ही इंसान को इंसान बनाता है। प्रेम एक विश्वास है,यदि इसमें संशय ने प्रवेश किया तो वह नष्ट हो जाता है।
राष्ट्रपति पुरस्कृत मराठी फिल्म निर्माता रतन मदान ने कहा कि प्रेम आनंद है, अनुभूति है, विश्वास है। प्रेम में भाव सच्चे होने चाहिए, यही प्रेम है। जैसे मीरा का था, राधा का था।
महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा की सचिव सुनिता मुंजे ने कहा कि अपने परिवार में रहने वाले लोगों की सेवा करते, बच्चों के साथ खेलते,और सब लोगों का सुख-दुख साझा करते जो पाया वही प्यार है।
विदुषी डाॅ शीला भार्गव ने कहा कि प्रेम ईश्वर की देन है। यह हमारे अंतस से प्रवाहित होता है। दिव्य प्रेम की मीरां सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं (झनकार लिए सांसो की धुन पर, प्रेम दिवानी गीत सुनाए) स्व रचित गीत गाया। साहित्यकार शशि भार्गव ने कहा कि प्रेम एक ऐसा आवश्यक भाव है, जिसके बिना संसार का विकास असंभव है।
रितु आसई ने कहा कि प्रेम भाव है,अनुभूति है। प्रेम बिना जग सूना है। अर्चना चौबे ने भी देश प्रेम की बात की और महिलाओं के मनोभावों पर अपनी स्वरचित कविता पढ़ी। पत्रकार टीकाराम साहू ने कुंवर बेचैन का शेर सुनाते हुए प्रेम को परिभाषित किया।
स्वाति ने प्रेम को परिभाषित करते हुए कहा की प्रेम परवाह की पराकाष्ठा है। डाॅ. छाया श्रीवास्तव ने कहा की प्रेम अस्तित्व है, प्रेम भाव है जो दो आत्माओं को जोड़ता है।
मधु पटोरिया ने कहा की प्रेम का रूप समय के साथ बदलता रहता है,बचपन में मां, पिता के साथ तो बड़े होने पर पति,सहेलियों के साथ। रीमा दीवान चड्ढा ने कहा कि हमारे समाज में प्रेम पर बात करना वर्जित है। आज प्रेम में स्वार्थ ने घर कर लिया है। सच्चा प्रेम लुप्तप्राय है। मुकुल अमलास ने प्रेम पर बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी तथा प्यार नामक अपनी कविता सुनाई जिसकी पंक्तियाँ थी - प्यार एक ऐसा एहसास, जगाती जो जीवन की प्यास, मन मुदित तन सुरभित, टूट जाती सारी वर्जना।
आरती पाटिल ने कबीर के दोहे, कविता कौशिक ने उर्मिला की व्यथा, उमा हरगन ने पारिवारिक मूल्यों, किरण हटवार ने प्रेम एक कल्पना, व्यंग्यकार टीका राम साहू जी ने कुंवर बैचन की कविता, संतोष बुधराजा ने कुमार विश्वास की कविता के जरिए प्रेम पर अपने उदगार व्यक्त किए। देवयानी बैनर्जी, सुषमा अग्रवाल, सुरेखा खरे, नीलम शुक्ला, माया शर्मा एवं रेशम मदान ने भी अपनी कविता के माध्यम से प्रेम को परिभाषित किया।
युवा कवयित्री एवं कहानीकार युगंधरा ने स्वरचित कविता सुनाई। प्रियंवदा ने भी अपनी कविता के माध्यम से प्रेम पर बात की। रीमा दीवान चड्ढा ने आभार प्रकट किया।
चार घंटे तक चले इस आयोजन में डाॅ प्रभा मेहता, कृष्णकुमार भार्गव, अरुण खरे, ममता विश्वकर्मा, सुधा विज आदि बड़ी संख्या में साहित्यकार श्रोता के रूप में उपस्थित थे ।