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व्यंग्यकारों को खतरे उठाने होंगे, यह डरे हुए लेखकों का समय है - सुभाष चंदर


व्यंग्यधारा समूह का 'आधुनिक समाज में व्यंग्य की आवश्यकता' पर गोष्ठी

नागपुर। व्यंग्यकारों को खतरे उठाने होंगे| हम दिक्कत से बचना चाहते हैं। हम उन मुद्दों पर बात करते हैं जिनमें खतरे नहीं है। मजेदार सा लिखते हैं| व्यंग्यधारा समूह द्वारा आयोजित व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में"आधुनिक समाज में व्यंग्य की आवश्यकता' विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए यह बात वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री सुभाष चंदर (नई दिल्ली) ने कही।  

व्यंग्यधारा समूह की ओर से 142 वीं ऑनलाइन गोष्ठी में 'आधुनिक समाज में व्यंग्य की आवश्यकता' विषय पर व्यंग्य विमर्श का आयोजन किया गया।
श्री सुभाष चंदर ने बतौर मुख्य अतिथि वक्ता अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आजकल व्यंग्यकार चाहते हैं कि दिखते भी रहें, बिकते भी रहें। न प्रतिकार करते हैं, न इच्छा है। तीखे व्यंग्य से  सुरक्षित दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। व्यंग्य में बड़ी चीजें लगातार कम लिखी जा रही हैं। अस्सी प्रतिशत से अधिक व्यंग्यकार ऐसे हैं जो बहुत बड़ी बात कहने से बचते हैं। पाठक न होने का रोना रोते रहते हैं, जबकि पाठक ऐसा पढ़ना चाहता है जो उसके मन की बात करता हो। यह समय डरे हुए लेखकों का समय है। लेखन में सामाजिक जिम्मेदारी, सरोकार और जनोन्मुखता जरूरी है। विसंगतियों और विद्रूपताओं के खिलाफ एक माहौल बने यह व्यंग्यकार का काम है, लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। बचते-बचाते लिखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। बहुत कम व्यंग्यकार है जो व्यंग्य जैसा लिख रहे हैं। धीरे-धीरे व्यंग्य भी हास्य की दिशा में बढ़ रहा है। अभी भी समय है व्यंग्यकार अपना धर्म निभाएं और अपने कर्तव्य का निर्वाह करें।

चर्चा की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार वेदप्रकाश भारद्वाज ने कहा कि प्रतिरोध ही व्यंग्य का मूल है। समाज की प्रतिरोधक शक्ति को बचाए रखने के लिए व्यंग्य की आवश्यकता है। प्रतिरोध और आलोचना है व्यंग्य लेखन, हंसाना नहीं। प्रतिरोध के बिना व्यंग्य संभव नहीं है। व्यंग्य आलोचना से अलग नहीं है। व्यंग्य का होना ही सरोकार है। सरोकार स्पष्ट नहीं होने पर व्यंग्य प्रभावशाली नहीं हो सकता। तटस्थ होकर व्यंग्य लेखन नहीं कर सकते। व्यंग्यकार को अपने विवेक के अनुसार तथ्यपरक मूल्यांकन करना चाहिए। जीवन में विरोधाभास बढ़ा है, सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का क्षरण हुआ है, जिससे व्यंग्य की आवश्यकता भी बढ़ गई है। व्यंग्य भाव जगत का लेखन नहीं, विचार का लेखन है। तकनीक का फायदा व्यंग्य को हुआ है। अखबार और सोशल मीडिया से व्यंग्य का विस्तार हो रहा है। जो लिखा जा रहा है वह समाज तक पहुंचे, लेकिन उसकी छंटनी भी होनी चाहिए।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार बृजेश कानूनगो (इंदौर) ने कहा कि व्यंग्य प्रतिरोध का काम करने में कितना कारगर है, इस पर विचार करने की आवश्यकता है। व्यंग्य जिसके लिए लिखा जा रहा है वह पाठक पढ़ ही नहीं रहा। इसे देखते हुए सोशल मीडिया पर जाना चाहिए। नुक्कड़ नाटक, ओटीटी का सहारा लेना चाहिए।  स्क्रिप्ट लिखना चाहिए। 

वरिष्ठा व्यंग्य आलोचक डॉ. रमेश तिवारी (नई दिल्ली) ने कहा कि व्यंग्य हमें जीवन और जीवन की विसंगतियों के प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण देता है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि व्यंग्य में गुणवत्ता और सरोकार कम हो रहे हैं। आधुनिक समाज में व्यंग्य की आवश्यकता और उपादेयता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि व्यंग्य में आधुनिकता के साथ स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा का भी ध्यान रखना होगा। बहुजन का हित लेखन के केंद्र में हो। लेखन अत्यंत जिम्मेदारी का काम है। बिना ज़िम्मेदारी को समझे व्यंग्य-लेखन दिशाहीनता का शिकार हो जाएगा। अतः जिम्मेदारी और सकारात्मकता के साथ व्यंग्य लेखन ही आज की आवश्यकता है|

चर्चा की शुरुआत में विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी (जबलपुर) ने कहा कि आजकल व्यंग्यकार सवालों और सवाल करने से  बच रहे हैं। पुरस्कार और सत्ता से लाभ का त्याग करना होगा। समाज और सत्ता में व्याप्त विसंगतियों पर लिखना चाहिए। रमेश सैनी ने याद दिलाया कि समाज और सत्ता की कमियों के विरोध में साहित्यिक आंदोलन होते रहे हैं। अब व्यंग्यकार को भी आंदोलनकारी की भूमिका में आना होगा।

व्यंग्यधारा द्वारा आयोजित व्यंग्य विमर्श गोष्ठी का संचालन श्री रमेश सैनी ने किया और अंत में टीकाराम साहू 'आजाद (नागपुर) ने सभी सहभागियों और अतिथि वक्ताओं का हृदय से आभार व्यक्त किया|
 
इस ऑनलाइन व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रभाशंकर उपाध्याय (सवाई माधोपुर), डॉ महेंद्र कुमार ठाकुर (रायपुर), राजशेखर चौबे, (रायपुर) अरुण अर्णव खरे (भोपाल), डॉ किशोर अग्रवाल (रायपुर), वीणा सिंह (लखनऊ), अभिजीत कुमार दुबे (अगरतला), गौरव सक्सेना (इटावा) आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
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