गंभीर अपराध करने वाले किशोरावस्था के ही होते हैं : रजनी प्रभा
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नागपुर/पुणे। किशोरों में अपराध के बढ़ते मामलों पर यदि चिंतन किया जाए तो ज्ञात होता है कि प्रतिवर्ष कम से कम 500 से अधिक किशोर किसी न किसी अपराध में संलिप्त पाए गए हैं। परिणामत: पाया जाता है कि गंभीर अपराध करने वाले किशोरावस्था के ही बालक होते हैं। इस आशय का प्रतिपादन श्रीमती रजनी प्रभा, मुजफ्फरपुर, बिहार ने किया।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में ‘किशोरों में बढ़ते अपराध और भटकता बचपन’ विषय पर आयोजित 141 वीं (17 वीं) राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी (15 जनवरी, 2023) में वे मुख्य वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रही थी। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। श्रीमती रजनी प्रभा ने आगे कहा कि हमारा कानून पूर्णता से स्वीकारता है कि कोई भी किशोर जन्मजात अपराधी नहीं होता है।
उसके द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार के लिए हमारा परिवेश और हमारी परिस्थितियां उत्तरदायी होती है। समाजशास्त्रीय अध्ययन द्वारा ज्ञात हुआ है कि मनुष्य में अपराधिक प्रवृत्तियों का जन्म बचपन में ही हो जाता है।
अभिभावकों और शिक्षकों की उपेक्षा, पारिवारिक परिस्थितियां, बच्चे की संगति, अश्लील फिल्में और गलत पुस्तकें पढ़ना, माता-पिता का नौकरी में होना, आधुनिकता व सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव आदि परिस्थितियां बाल अपराध के लिए उत्तरदायी मानी जाती हैं।
परिणामत्: किशोरावस्था के बच्चों का घर से भाग जाना, लड़ाई झगड़े करना, चोरी करना, मादक वस्तुओं का प्रयोग, यौन अपराध करना, अभद्र भाषा का प्रयोग, कानूनी विरोधी कार्य करना आदि अपराधिक प्रवृत्तियों की ओर वे उन्मुख हो जाते हैं। किशोरों को अपराधिक प्रवृत्ति से दूर रखने के लिए यथा चिकित्सा, क्रिया चिकित्सा, व्यवहार चिकित्सा व परिवेश चिकित्सा को अपनाना परम आवश्यक है।
आभासी गोष्ठी की वक्ता श्रीमती अनीता मंदिलवार, सरगुजा, छत्तीसगढ़ ने कहा कि समाज में किशोरों में बढ़ते अपराधों की संख्या में वृद्धि होना एक चिंता का विषय है। अधिकतर किशोरों को उनकी संगति पथ से भ्रष्ट करती है।
अशिक्षा, गरीबी, पारिवारिक वातावरण जैसे अनेक कारण हैं, जो किशोरों में अपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। अतः किशोरों को शिक्षा के साथ-साथ उनमें आत्मविश्वास की भावना निर्माण करनी चाहिए। हमारे यहां किशोर अपराध के संबंध में अलग कानून की व्यवस्था भी है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि वास्तव में किशोरावस्था उनके जीवन का वसंत काल हैतथा जीवन का उत्कर्ष है। साहस, शक्ति और उमंग का एहसास किशोरों में पाया जाता है।
परंतु पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण, माता पिता की व्यस्तता व लापरवाही, सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण हमारा किशोर वर्ग कुमार्ग पर अग्रसर हो रहा है तथा अधिकांश मात्रा में अनुशासन, सदाचरण और शिष्टाचार का मार्ग त्याग कर वह पथभ्रष्ट हो रहा है।
अतः सर्वप्रथम माता-पिता अपनी संतानों के आचरण व व्यवहार पर कड़ी नजर रखें तथा निराशा से ग्रसित, हतोत्साहित, दिग् भ्रमित, निस्तेज तथा आक्रोशित किशोर वर्ग को मुख्यधारा में लेकर आएं।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज ने आरंभ में प्रास्ताविक भाषण में कहा कि किशोरों में बढ़ते अपराध को रोकने के लिए माता-पिता सहित परिवार जनों का परम दायित्व है की वे अपनी संतान की हर गतिविधि पर कड़ी नजर रखें।
किशोरों में अपराधिक वृत्ति निर्मिति के कारणों को दूर करने के प्रयास सभी स्तरों पर होने चाहिए। आभासी गोष्ठी का शुभारंभ कुमारी मोनिका कानवड़े, सावरचोल, अकोले, अहमदनगर, महाराष्ट्र की सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. पूर्णिमा झेंडे, नासिक ने स्वागत भाषण दिया।
प्रतिभागी के रूप में प्रा. मधु भंभानी, नागपुर, महाराष्ट्र, डॉ. नजमा मलेक, नवसारी, गुजरात, लक्ष्मीकांत वैष्णव, चांपा, छत्तीसगढ़, डॉ. सुरेखा मंत्री, यवतमाल, महाराष्ट्र, अधिवक्ता मुकेश तिवारी, धर्मचंद, डॉ. शिप्रा मिश्र की गोष्ठी में गरिमामयी में उपस्थिति रही।
युवा संसद की कार्यकारी अध्यक्षा प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने गोष्ठी का सुचारू रूप से संचालन किया तथा प्रा. ललिता घोड़के, अकोले, महाराष्ट्र ने आभार ज्ञापित किये।