समाज में समरसता ही साहित्य का लक्ष्य
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नागपुर। समाज में समरसता लाना ही भाषा और साहित्य का लक्ष्य रहा है। इनके माध्यम से संस्कृति का संरक्षण और संचरण होता रहा है। जब समाज में साहित्य गूंगा हो जाता है तब सामाजिक समरसता समाप्त हो जाती है।
यह बात वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेंद्र पटोरिया ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा वसंत पंचमी के अवसर पर आयोजित व्याख्यान में कही। विश्व हिन्दी दिवस पर केंद्रित अपने वक्तव्य में उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हिन्दी की वैश्विक प्रसिद्धि भारतीय संस्कृति की सामासिक प्रकृति का सूचक है। हिन्दी के माध्यम से भारतीय अस्मिता की सार्वदेशिक पहचान बनी है।
महालेखाकार कार्यालय, नागपुर के सहायक निदेशक राजभाषा श्री अनिल त्रिपाठी ने राजभाषा के रूप में हिन्दी के विस्तार और विकास की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों के हिन्दी प्रेमियों के कृतित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इस पुनीत अवसर पर हमारा यह कर्तव्य है कि हम भाषाई सीमाओं को लांघते हुए राष्ट्रीय हित में हिन्दी की भूमिका को आत्मसात करें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मनोज पाण्डेय ने कहा कि आज का दिन हम सबके लिए प्रेरणा और गौरव का दिवस है। हमें अपनी भाषाई अस्मिता को कायम रखते हुए राष्ट्रीय भावना के सबलीकरण पर विचार करना चाहिए। विद्या की आराध्य देवी सरस्वती जीवन में उन्नति की द्योतक हैं, जो मानव मात्र को अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देती हैं।
प्रास्ताविक विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ संतोष गिरहे ने रखा और संचालन डॉ. सुमित सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ. लखेश्वर चंद्रवंशी, डॉ. कुंजनलाल लिल्हारे, डॉ. एकादशी जैतवार, डॉ. नीलम वैरागडे, प्रा. जागृति सिंह, पूनम चौरे सहित कई विद्यार्थी उपस्थित थे।