समाज पर साहित्य अमिट छाप छोड़ता है : अज़हर बख्श अज़हर
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नागपुर। आप हिंदी-उर्दू जिसमें भी लेखन करते हैं, कीजिए, लेकिन आपके शब्दों का उच्चारण सही होना चाहिए क्योंकि जनमानस, शायर व साहित्यकार के कहे गए शब्दों का ही अनुसरण करता है।
गजल व अन्य विधाओं में लेखन के साथ हमारी प्रस्तुति श्रोताओं के मन मस्तिष्क में जगह बनाती है अर्थात् समाज पर साहित्य अमिट छाप छोड़ता है। विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन, बहारे गजल कार्यक्रम के माध्यम से हिंदी-उर्दू साहित्यकारों को जोड़कर रखे हुए है।
उक्त विचार विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के उपक्रम साहित्यिकी के अंतर्गत बहारे ग़ज़ल कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि अज़हर बख्श अज़हर ने व्यक्त किए।
उर्दू साहित्य का भी हिंदी में अनुवाद होना चाहिए जिससे यह जन-जन तक पहुंच सके और समाज की दिशा व दशा बदलने में सहायक बने यह कर्तव्य भी हम साहित्यकारों का होना चाहिए। उक्त विचार साहित्यिकी के संयोजक डॉ विनोद नायक ने व्यक्त किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गुलाम मोहम्मद खान आलम ने की प्रमुख अतिथि अज़हर बख्श अज़हर रहे। अतिथि स्वागत संयोजक डॉ विनोद नायक ने किया। संचालन शादाब अंजूम ने किया।
सर्वप्रथम शायर डॉ भोला सरवर ने गजल धूप छांव बिन अपनी हस्ती मेरे यार अधूरी है, बिन दोनों के जीवन आधा दोनों में गर दूरी है पेश की।
मजीद बेग मुगल शहजाद ने गजल रोटी कपडा सभी को मकान हो, गणतंत्र दिन की यही तो शान हो, जवानों के हाथों को मिले काम, खुशहाली युवा में ना थकान हो पेश की।
शादाब अंजुम ने गजल तआक़ुब दिन में कीजेगा मेरा, मैं दिन में मिलता हूं अंधेरों में कहां परछाईंयां आवाज़ देती हैं अज़हर बख्श अज़हर ने गजल जब संवारा मीर, मोमिन और ग़ालिब ने इसे, तो ग़ज़ल सिन्फ़े सुख़न की शाहज़ादी हो गई, खिलौने छोड़ के बम इस्तेमाल करने लगे, हमारे शहर के बच्चे कमाल करने लगे पेश की।
डॉ विजय श्रीवास्तव ने गजल बस्ती खामोश हैं, राहें वीरान हैं, दोस्त क्या हुआ, राही परेशान हैं पेश की। शाने हैदर अल्वी ने गजल चारा-गरों के पास भी कोई दवा नहीं, तू ही बता के अब तेरे बीमार क्या करें पेश की। डॉ विनोद नायक ने जादू नजरों से वो करते रहे, पूछते हैं तुम्हें ये क्या हो गया पेश की।
शायर गुलाम मोहम्मद खान आलम, हफीज शेख नागपुरी, शमशाद, मजहर कुरैशी, रमेश मौंदेकर, माणिक खोबरागडे, माधुरी मिश्रा, संतोष बुधराजा, मन्नान आशिक, रफीक सहर, सईद हजरत व रश्मि मिश्रा ने अपनी गजलों से समा बांधा।