जीवन के हर पल को खुशी के साथ जिएं
https://www.zeromilepress.com/2023/01/blog-post_47.html
मनुष्य जीवन सीमित है लेकिन अमूल्य है। इस अमूल्य जीवन का एक-एक क्षण व्यर्थ न गंवाएं बल्कि हंसते-खेलते खुशी-खुशी जिएं। विश्व में कोई अमर नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए हर व्यक्ति को
जिंदगी के हर पल को हंसते-खेलते एवं खुशी के साथ जीना चाहिए। हंसते-हंसते जीवन जीने को
‘जीने की कला' कहते हैं।
खुशियां बांटने से बढ़ती है। दिल खोलकर हंसने से मांसपेशियों की ताकत बढ़ने के साथ ही उनके बीच बेहतर सामंजस्य और संतुलन भी स्थापित होता है तभी नर्वस सिस्टम सही रहेगा। बिना तनाव के हंसते रहने से आप हमेशा तंदुरुस्त रहेंगे। आपका मन शांत रहेगा। शारीरिक सुख जरूर खरीदा जा सकता है किन्तु मानसिक सुख शांति नहीं।
जिंदगी में सुख-दुःख तो लगा ही रहता है किन्तु सुख में जिस प्रकार वह आनंदमय वातावरण में जीता है वैसा ही दुख में भी मन को शांत एवं समाधान रखकर जीने की आदत डालनी चाहिए। हर इंसान सुख-सुविधाएं जुटाने में सबकुछ भुलाकर व्यस्त हो गया है और शरीर को तनावग्रस्त बनाकर कई रोगों के मकड़जाल में फंसता जा रहा है।
आज हर मनुष्य ने जिस जीवन शैली को अपनाया है, उसकी स्वास्थ्य संबंधी शिकायतें बढ़ गयी है। कार्य क्षेत्र के दबाव से जहां हृदयरोग संबंधी शिकायतें बढ़ी है वहीं जीवन पद्धति में आहार की अनियमितता से मधुमेह रक्तचाप जैसी शिकायतें भी अब आम बात हो गयी है।
विश्व में कुछ लोगों का अतिपोषण जबकि कुछ का कुपोषण हो रहा है। कई लोग धनवान होने के बावजूद सुखी नहीं है, वे हमेशा चिंतित रहते है। उनकी पूरी जिंदगी ही चिंता में चली जाती है और अन्त भी चिंता में ही होता है, अतः चिंतामुक्त जीवन जीना सीखो।
आहार संतुलित रखना, नियमित व्यायाम करना, गरीब, निराधारों, जरूतमंदों को मदद करना यही यथार्थ जीवन शैली का मूल मंत्र है। आत्मिक संतुष्टि के लिये हर पल मुस्कुराते रहना चाहिए। परिस्थितियां कैसी भी क्यों न रहें, हमें हर पल हंसते मुस्कुराते और वाणी पर संयम रखते हुए ही सभी चुनौतियों का सामना करना चाहिए।
आज अनियमितताएं बढ़ रही हैं। न ही हम समय से सोते हैं और न ही उठते हैं। खाने-पीने का भी कोई
निश्चित समय नहीं होता है। जब समय मिला खा लिया वाला दौर जो है, जिसे देखो उसी के सिर पर भूत सवार है सफलता के शिखर को चूमने का। एक समस्या से इंसान उबरता नहीं, तो दूसरी से जूझने लगता है।
आपाधापी की इस जिंदगी में अनियमितताएं बढ़ रही हैं। असंतुलित जिंदगी में खान-पान भी अव्यवस्थित हो गया है। यहीं कारण है हम रोगों को आमंत्रण दे रहे हैं। मौसम कितनी खूबसूरती से अपनी एक पारी पूरी करके दूसरे में कदम रखता है, इसे हम महसूस करते हैं।
किन्तु बदलते मौसम के बदलते मिजाज के अनुरूप अपने मिजाज को नहीं बदल पाते। संकल्प करना किन्तु उस पर अमल न करना सिवाए बेवकूफी के कुछ और नहीं है। मानव प्रजाति सभी जीवों में श्रेष्ठ मानी गई है क्योंकि उसे विधाता ने बहुत सी खूबियां दी है। अपने मन मस्तिष्क का इस्तेमाल सिर्फ हमें ही ज्ञात है। आज हर मनुष्य ने जिस जीवन शैली को अपनाया है, उसी कारण मनुष्य अपने आप को स्वस्थ नहीं रख पा रहा है।
प्रकृति ने संसार में स्वस्थ रहने के लिए समस्त सामग्री जुटाई है परंतु ज्यों ज्यों मनुष्य प्रकृति के सानिध्य से दूर होकर सुख-सुविधाओं में खोने लगता है त्यों-त्यों मनुष्य का मन, मस्तिष्क एवं शरीर अस्वस्थ होता चला जाता है और फिर शरीर अस्वस्थ होने के बाद आप ना हंस सकते है, ना अच्छा खा सकते है, ऋतु और जलवायु के अनुसार मानव शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं, अतः हमें उसी ऋतु के अनुसार अपने आहार-विहार में परिवर्तन करना चाहिए और जीवन के हर पल को खुशी एवं समाधान से जीना सीखना चाहिए
- दीपक लालवानी
नागपुर, महाराष्ट्र