घर वापसी!
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अमृत सा लगता है,
तुलसी का चौबारा मुझे
वृंदावन सा लगता हैं।।
दीया जलाती थी माँ,
तुलसी के पौधे पर हर शाम,
हर शाम आज भी तुलसी पर,
जलता हुआ दीया, लगता हैं।।
मेरे एक दीये के तेल पर
सवाल उठाने वालों,
तुम्हारा, हज़ारों मोमबत्तियाँ जलाना,
मुझे बेमानी सा लगता हैं।।
'जनवरी का पहला दिन' हो
या 'दिसंबर पच्चीस' की रात,
घर पर मेरे धूमधाम से
'हरीनाम' का संकीर्तन लगता हैं।।
जो छोड़ गये थे 'कुनबे' को,
छलावे और बहकावे में आकर,
वो लौट कर घर, वापस आयेंगे,
यह विश्वास पक्का सा लगता हैं।।
- डॉ. देब आशीष 'देब'
नागपुर, महाराष्ट्र