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डी. पी. भोसले कॉलेज, कोरेगांव महाराष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



नागपुर/कोरेगांव। रयत शिक्षण संस्था द्वारा संचलित डी.पी. भोसले कॉलेज का हिंदी विभाग, शिवाजी विद्यापीठ हिंदी प्राध्यापक परिषद एवं विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में 2, 3 दिसंबर को द्वि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई।
इस संगोष्ठी में "हिंदी साहित्य में मानवीय संवेदना" इस विषय पर विचार मंथन हुआ। 

इस गोष्ठी के लिए मुख्य अतिथि एवं बीजभाषक के रुप में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य प्रवाह, फिलाडेल्फिया, अमेरिका की संस्थापिका एवं महिला काव्य मंच, अमेरिका की अध्यक्ष तथा वरिष्ठ हिन्दी एवं भोजपुरी साहित्यकार डॉ मीरा सिंह उपस्थित थीं। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा - "मानवीय संवेदना मानव की सर्व श्रेष्ठ अनुभूति है. दया और धर्म मानव का कर्म है, जो मानवीयता का पाठ सिखाता है। 

उद्घाटन समारोह में विशेष उपस्थिति के रूप में नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष एवं विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ शहाबुद्दीन शेख उपस्थित थे। उन्होंने कहा - "संवेदना शब्द सम और वेदना से बना है। सम का अर्थ है समान और वेदना का अर्थ है दुःख, पीड़ा अर्थात सामने वाले की जो  वेदना है, उसी प्रकार की वेदना हमारे मन में जागृत होना ही संवेदना है। 

संवेदना का दूसरा एक अर्थ है कि सामने वाले हर एक व्यक्ति को पहचानना, उसके मन को जानना." सत्र के अध्यक्ष महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ विजयसिंह सावंत थे, इनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन से यह संगोष्ठी सफल हुई.  

गोष्ठी की प्रस्तावना हिन्दी विभाग प्रमुख प्रा श्रीमती राबन मुल्ला ने की। प्रमुख अतिथियो का परिचय डॉ शिराज शेख ने दिया। संचालन प्रा  हरि पोरे और शिवानी क्षीरसागर ने किया और सत्र के आभार गणेश खवले ने ज्ञापित किये। 

तकनीकी सहायता केतन जाधव ने की। समारोह के प्रथम सत्र में विषय प्रस्तोता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद तथा क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान भोपाल की पूर्व प्राचार्य डॉ लता अग्रवाल उपस्थित थीं।  

उन्होंने कहा - "जिसमें कल्याण की भावना हो, वह साहित्य है। साहित्य अपने आपमें ही एक विस्तृत कल्याण की प्रतीति कराता है, जिसमे संवेदना नहीं वह निरा पशु समान है पशु में भी संवेदना होती है। 

अत: संवेदना साहित्य में होती ही है।" इस सत्र के अध्यक्ष डॉ महेश चव्हाण थे। अध्यक्षीय मंतव्य में उन्होंने कहा कि "वर्तमान समय में मानवीय संवेदना कहीं न कहीं समाप्त होती जा रही है। साहित्य इस संवेदना को जगाये रखने का सामर्थ्य रखता है। 

साहित्य के बिना संवेदना को आगे नहीं बढाया जा सकता।" द्वितीय सत्र में प्रमुख वक्ता एवं विषय प्रस्तोता के रूप में डॉ नूरजहाँ रहमातुल्लाह कॉटन विश्वविद्यालय, गुवाहाटी, असम से उपस्थित थीं। 

उन्होंने अपने मंतव्य में कहा - "समूची मनुष्यता जिससे लाभान्वित हो, एक जाती दूसरी जाति से  घृणा ना करे, एक समूह दूसरे समूह के दुःख को जाने यही मानवीयता है।" शिवाजी विद्यापीठ हिंदी प्राध्यापक परिषद् के सचिव डॉ नाजिम शेख पेठ वडगांवइस सत्र के अध्यक्ष थे। 

अध्यक्षीय मंतव्य में उन्होंने कहा - "साहित्य भावनाओं के साथ जुड़ा हुआ है। कबीर के काव्य में भी मानवीय संवेदना देखने को मिलती है। सभी प्रकार के काव्य के मूल में मानवीय संवेदना होती है।" आलेख वाचको में शोध-छात्रा नीतामनि बरदलै, डिग्बोई, असम ने दलित साहित्य में चित्रित मानवीय संवेदना को चित्रित किया। कसीरा जहाँ गुवाहाटी, असम ने तुलनात्मक रूप में साहित्य में चित्रित मानवीय संवेदना पर प्रकाश डाला।  

3 दिसंबर, 2022 के दिन प्रथम सत्र में विषय प्रस्तोता के रूप में भवन्स महाविद्यालय, अंधेरी (मुंबई) की डॉ मेदिनी अंजनीकर उपस्थित थीं। उनके अनुसार -"मानवीय संवेदना का परिवर्तन हो रहा है। मानवीय संवेदना का सम्बन्ध नैतिक मूल्यों से है। 

साहित्य में चित्रित अनेक उदाहरणों के माध्यम से उन्होंने संवेदना के विविध रूपों पर प्रकाश डाला।" सत्र के अध्यक्ष विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी उपस्थित थे। उन्होंने कहा - "मनुष्य आज केवल अपने लिए जीता है और अपने लिए ही सोचता है, यह स्थिति चिंता का विषय है। किसी घटना को देखकर मनुष्य आहत नहीं होता, अपितु व्हाटसअप पर ये लोग फोटो निकालने में व्यस्त रहते हैं। 

अत: अमानवीयता बढती जा रही है।" इस सत्र में डॉ शाहीन जमादार, मिरज ने आलेख वाचन किया। इस आलेख में हिंदी कहानियों में चित्रित मानवीय संवेदना पर प्रकाश डाला। प्रेमचंद की कहानी कफन, ईदगाह का उन्होंने उल्लेख किया। दूसरे सत्र में रायपुर छत्तीसगढ़ से मैट्स विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ रेशमा अंसारी उपस्थित थीं।

उनके अनुसार- "संवेदना का अर्थ सहानुभूति न होकर अनुभूति होना चाहिए। प्रारम्भिक अनुभूति ही संवेदना है।" इस सत्र के अध्यक्ष सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे के पूर्व प्रोफेसर एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. विट्ठल भालेराव उपस्थित थे. उन्होंने संवेदना को चेतना में बदलने की बात की। छत्रपति शिवाजी महाराज, शाहू महाराज, महात्मा फुले, डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर आदि महानुभावो ने सहानुभुति को अनुभूति बनाया और समाज के लिए क्रांति की प्रेरणा दी। 

असल में साहित्य में भी क्रांति की चेतना निर्माण करने की क्षमता है।" आलेख वाचक के रूप में डॉ सुबिया फैजल ने संवेदना के विविध आयामों चर्चा की। संगोष्ठी के समापन सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में ओस्लो, नार्वे से प्रवासी साहित्यकार एवं पत्रकार तथा स्पाईल दर्पण के सम्पादक श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' उपस्थित थे। 

उन्होंने कहा - "प्रेमचंद को कोई विशेष पुरस्कार तत्कालीन समय में न मिल सका, किन्तु उनके साहित्य में चित्रित मानवीय संवेदना के कारण वे अमर हो गए। उनका प्रगतिशील दृष्टिकोण ही उनके साहित्य की उपज थी।" इस संगोष्ठी में देश विदेश के अनेक महानुभाव जुड़े हुए थे। 

समापन सत्र के आभार ज्ञापन का कार्य डॉ शीतल गायकवाड ने किया। डॉ केशव प्रथमवीर, डॉ सुनील बनसोडे, विश्वनाथ सुतार, डॉ सादिका नवाब 'सहर' आदि ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। इस तरह संगोष्ठी का आयोजन सफल रहा।
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