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गिला कैसे?



हमारी बातें ऐसे ही
बिन कहे रह जाएंगी, 
कोई गिला नहीं,
जुबां बेजुबां ही रह जाएंगी, 
कोई गिला नहीं।

दिल को थोड़ा  
और तड़पने दें, 
कुछ और जख़्मे-दिल हो, 
कोई गिला नहीं।

सावन में बारिश 
कई बार नहीं होती, 
फूल मुरझा जाएं, 
कोई गिला नहीं।

यूं तो चाहत की 
कोई सीमा नहीं,
बेहिसाब चाहतें दफन हो जाएं, 
कोई गिला नहीं।

- डॉ शिवनारायण आचार्य 'शिव'
    नागपुर, महाराष्ट्र 
काव्य 5191352845002045735
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