अमीर खुसरो ने राम को हमारे तन, मन, धन का स्वामी माना है : प्रो. डॉ. विशाला शर्मा
https://www.zeromilepress.com/2022/11/blog-post_40.html
नागपुर/पुणे। लोकनायक तुलसीदास जी से 250 वर्ष पूर्व अमीर खुसरो ने राम को हमारे तन, मन, धन का स्वामी माना है। बौद्धों ने राम को बोधिसत्व मानकर राम काव्य को जातक साहित्य में स्थान देकर विदेशों में प्रचारित किया । इस आशय का प्रतिपादन प्रो. डॉ. विशाला शर्मा, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, चेतना महाविद्यालय, सावंगी, औरंगाबाद, महाराष्ट्र ने किया।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में रीतिकाल में ‘राम भक्ति काव्य’ विषय पर आयोजित 130 वीं गोष्ठी में वे मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्बोधन दे रही थीं । प्रो. डॉ.विशाला शर्मा ने आगे कहा कि विश्व में भगवान राम पर लिखे सर्वाधिक ग्रंथ है। वाल्मीकि कृत रामायण तथा तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरितमानस के साथ-साथ सभी भारतीय भाषाओं में रामायण उपलब्ध है।
अन्य देशों में मलेशिया, थाईलैंड, चीन, नेपाल, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा, भूटान जैसे देशों में ग्रंथों के माध्यम से राम होने की पुष्टि की गई है और राम का चरित्र लिखा गया है। रीतिकाल के कई कवियों ने तुलसीदास जी की परंपरा को आगे बढ़ाया है। सेनापति द्वारा लिखित कविता रत्नाकर में राम कथा वर्णित है।
लालदास कृत अवध विलास में सीता और राम का वर्णन है । सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह राम काव्य के मर्मज्ञ थे। केशव की रामचंद्रिका प्रबंध काव्य ही है । बिहारी ने रघुराई की भक्ति करते हुए भाव की भक्ति पर बल दिया है। रीतिकाल के अधिकांश कवि दरबारी थे और उनकी रचनाओं में श्रृंगार के साथ-साथ कृष्ण और राम लीलाओं का वर्णन है।
श्री जयवीर सिंह, वाघोली, पुणे ने अपने मंतव्य में कहा कि हिंदी साहित्य के रीतिकाल में हमें अनेक राम भक्ति काव्यों का उल्लेख मिलता है । अनेक रीति कालीन रचनाकारों को राम के उपासक के रूप में भी माना गया है। रीतिकाल लगभग 200 वर्षों का रहा । भक्तिकाल एक लोक संवेदना युक्त काव्य रहा है तो रीतिकाल राजाश्रय प्राप्त काव्य।
एक भक्तित्व से युक्त दूसरा शृंगारिक तत्वों से युक्त काव्य है। केशवदासजी राम भक्ति काव्य के रचनाकारों में गिने जाते हैं। चिंतामणि त्रिपाठी के रामायण काव्य में राम कथा का वर्णन मिलता है । महाराजा विश्वनाथ सिंह के रचनाओं में रामचरित से संबंधित वर्णन आया है।
पद्माकर ने वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर राम रसायन ग्रंथ की रचना की।
इसी प्रकार जनक राज किशोरी शरण, जानकी रसिक शरण, रसिक अली, सरजू राम पंडित, भगवंत राम नवल सिंह, गोपालचंद्र गिरिधर दास, मधुसूदन दास, ललकदास, संत लालदास की रचनाओं में भी राम कथा वर्णित है।
प्रा. धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, हिंदी व्याख्याता, हरि भाई देवकरण महाविद्यालय, सोलापुर, महाराष्ट्र ने केशवदास, सेनापति, भीखा साहब, पद्माकर, महाराज विश्वनाथ सिंह, जनक राज, किशोरी शरण, गणेश बंदीजन आदि रीतिकालीन राम भक्त आचार्यों के साहित्य पर प्रकाश डालते हुए प्रभु रामचंद्र को शक्ति, शील और सौंदर्य का प्रतीक माना है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख,पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि, रीतिकाल में भक्ति काल भी चलता रहा है । राम काव्य और कृष्ण काव्य भी रीतिकाल में लिखा गया है। जनक राज, किशोरी रमण, नवल सिंह, विश्वनाथ सिंह, ललकदास जैसे अनेक कवि हुए हैं, जिन्होंने तुलसी की परंपरा का ही अनुसरण किया है।
तुलसीदासजी के मानस की टिप्पणी महंत रामायण दास और हरिप्रसाद ने लिखी । राजारतन सिंह ने विनयपत्रिका की तो हरिप्रसाद ने गीतावली की टिप्पणी की। अतः रीतिकाल के कवियों की उपादेयता कम नहीं है ।
प्रारंभ में विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने प्रास्ताविक भाषण दिया। प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र की सरस्वती वंदना से गोष्ठी का आरंभ हुआ। श्रीमती अनीता सक्सेना, अयोध्या, उत्तर प्रदेश ने स्वागत उद्बोधन दिया।
गोष्ठी में डॉ. सुमा टी. रोडनवार, मंगलोर, कर्नाटक; डॉ. नजमा बानू मलेक, नवसारी, गुजरात; डॉ. भरत शेणकर, राजुर, महाराष्ट्र, प्रा.मधु भंभानी, नागपुर, संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ.ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, हरेराम वाजपेयी, इंदौर, मध्य प्रदेश सहित अनेकों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
गोष्ठी का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने किया तथा उत्तर प्रदेश प्रभारी श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने धन्यवाद ज्ञापित किये ।