पुष्पक महाविद्यालय में स्त्री विमर्श राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
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नागपुर/उमरेड। नारी प्रत्येक परिवार की मुख्य आधार है। आज परिवार के पोषण से लेकर बालकों के संस्कार तक तथा शिक्षा, राजनीति, मीडिया जैसे हरेक क्षेत्र में नारी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। फिर भी ‘स्त्री विमर्श’ पर चिन्तन करना वर्तमान की आवश्यकता है, क्योंकि स्त्री को अपने अस्तित्व की वास्तविक पहचान अभी तक नहीं हो पायी है।
उक्त विचार व्यक्त करते हुए दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय, नागपुर की पूर्व प्राचार्या और ओजस्वी वक्ता डॉ. वंदना खुशालानी ने भारतीय दृष्टि से ‘स्त्री चेतना’ पर प्रकाश डाला। वे अश्विनी मल्टीपरपज सोसायटी द्वारा संचालित पुष्पक महाविद्यालय उमरेड में ११ नवम्बर को आयोजित “स्त्री विमर्श : चिन्तन की दिशाएं” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रही थीं।
इस अवसर पर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु प्रो संजय दुधे बतौर उद्घाटक तथा अश्विनी मल्टीपरपज सोसायटी के अध्यक्ष श्री विकास कावले, कोषाध्यक्ष श्री गुलाब खड़से, संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. एकादशी जैतवार तथा पुष्पक महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. किशोर शेंडे व्यासपीठ पर विराजमान थे।
डॉ. खुशालानी ने आगे कहा कि जगत में जो कुछ पवित्र है, उत्कृष्ट है और श्रेष्ठ है, हम ‘माँ’ कहकर उसकी वंदना करते हैं। तुलसी, भूमि, गाय, नदियां आदि को हम ‘माता’ कहते हैं। माँ, पत्नी, बेटी, बहु और सास के रूप में नारी की विशिष्ट भूमिका होती है। इसलिए हर भूमिका में स्त्री की श्रेष्ठता और अधिक कैसे उत्कृष्ट हो सकता है, इस बात पर चिन्तन करना आवश्यक है।
इससे पूर्व इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटक प्र-कुलगुरु प्रो. संजय दुधे ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्त्व को रेखांकित किया और इस बात पर जोर दिया कि नारी विमर्श यह पाश्चात्य जगत की देन न होकर यह भारत की देन है। केवल अपने भारत देश को ही भारतमाता के रूप में पूजा जाता है। हम ‘वन्दे मातरम्’ को देशभक्ति का मंत्र मानते हैं। वास्तव में, सांस्कृतिक नारीवाद की यह भारत की संकल्पना है।
इस अवसर पर “स्त्री विमर्श : चिन्तन की दिशाएं” नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। इस पुस्तक में ४२ शोध आलेखों का समावेश है।
प्रथम सत्र में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया, शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महासमुंद की प्राचार्या डॉ. अनुसूइया अग्रवाल तथा राजकुमार केवलरमानी कन्या महाविद्यालय की पूर्व आचार्य प्रो. गीता सिंह ने अपने विचार रखे।
जबकि द्वितीय सत्र में अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद के सहायक आचार्य डॉ. प्रियदर्शिनी, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के सहायक आचार्य डॉ. गिरिजा शंकर गौतम तथा राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने सभा को सम्बोधित किया। इस अवसर पर शोधार्थियों ने पेपर वाचन किया।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को महिला महाविद्यालय, उमरेड के प्राचार्य डॉ. श्याम पुंडे बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए कहा कि नारी चेतना के जागरण व विकास के लिए विमर्श करना आज की आवश्यकता है।
वहीं सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि परिवारों में नारी के प्रति सम्मान पहले अधिक बढ़ा है। पिता अपनी बेटी के प्रति बहुत संवेदनशील है। इसी का परिणाम है कि बेटियाँ राष्ट्र-विकास के हर क्षेत्र में, हर स्तर पर अपनी प्रतिभा और गुणों से अपना श्रेष्ठ योगदान दे रही हैं।
विभिन्न सत्रों का संचालन क्रमशः डॉ. एकादशी जैतवार, डॉ. नीलम वैरागड़े, प्रा. जागृति सिंह तथा डॉ. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने किया। डॉ. एकादशी जैतवार ने आभार व्यक्त किया तथा संगोष्ठी का समापन राष्ट्रगान से हुआ।