यशवंतराव चव्हाण का करियर उल्लेखनीय रूप से अलग लड़ाई - डॉ. श्रीकांत तिड़के
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नागपुर। कृष्णा नदी के तीर पर जन्मे एक बहुत ही साधारण परिवार के व्यक्ती से महाराष्ट्रीयन धर्म के शिल्पकार बनने तक यशवंतराव चव्हाण की यात्रा एक असाधारण संघर्ष था. यशवंतराव को राजनीति से परे समझना भी उतना ही जरूरी है. यशवंतराव ने राष्ट्रसेवा के साथ-साथ साहित्य, कला, कृषि, वक्तृत्व कला की भी सेवा की.
यशवंतराव के जीवन का अर्थ है कि उनकी मां ने जो बोया वह सफल हुआ. ऐसे उदगार प्रसिद्ध जेष्ठ साहित्यिक डॉ श्रीकांत तिड़के ने यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान नागपुर केंद्र द्वारा आयोजित यशवंतराव चव्हाण की 38 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर महाराष्ट्र के शिल्पकार यशवंतराव चव्हाण पर व्याख्यान दिया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता यशवंतराव चव्हाण फाउंडेशन नागपुर केंद्र के पूर्व अध्यक्ष गिरीश गांधी ने की. अपने अध्यक्षीय भाषण में गिरीश गांधी ने यह विचार व्यक्त किया कि यदि हमें आज के दमन से बाहर निकलना है तो यशवंतराव चव्हाण को समझना आवश्यक है.यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान नागपुर केन्द्र के नवनियुक्त अध्यक्ष महेश बंग ने उपस्थित लोगों का मनोगत से स्वागत किया.
कार्यक्रम में राज्य के पूर्व मंत्री रमेशचंद्र बंग, राजाभाऊ ताकसांडे, जि प सदस्य दिनेश बंग, रवि देशमुख, बाल कुलकर्णी, साहित्यकार यशवंत मनोहर, रमेश बोरकुटे, नीलेश खांडेकर, प्रो किशोर बुटले, मंजूषा सावरकर, लीना निकम, बबनराव नाखले, संजय पालीवाल, अजय मल, श्यामबाबू गोमासे, राजेंद्र गोतमारे आदि के साथ रसिक प्रेक्षक उपस्थित थे. कार्यक्रम का प्रास्ताविक डॉ. कोमल ठाकरे ने मंच संचालन रेखा डांडिगे-घिया ने किया और आभार डॉ प्रदीप विटालकर ने माने.