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आंतरिक मन के सकारात्मक संकेत


खुशी एक ऐसी बेशकीमती नेमत है, जिसे केवल महसूस किया जा सकता है। एक सार्थक व संतुष्ट जीवन जीने के लिए खुशी जरूरी है लेकिन दुर्भाग्य से अधिकांश लोगों का जीवन दुख, निराशा व शिकायतों से भरा हुआ पाया जाता है। इसका मूल कारण जीवन में मूलभूत सुविधाओं  की कमी, ज़िम्मेदारियों के बोझ से मानसिक तनाव, चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से उपजित तकलीफ़ें इत्यादि नहीं हैं बल्कि मनुष्य अपने आंतरिक मन की बात को अक्सर नजरअंदाज करता है और नाना प्रकार के नकारात्मक विचारों से अपने मन को कमज़ोर करता जाता है, फलस्वरूप अपने इर्द-गिर्द हतोत्साहित करने वाला आभामंडल बनाता जाता है। 

जबकि असली योद्धा वो है जो कितनी भी कठिनाइयों के बावजूद अपने जमीर को मजबूत रखता है, कुछ पल के लिए निराश होता है पर फिर खुद को खुश करने के लिए उसे कोई खास जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। फिर टूटता है फिर जुड़ता है, फिर मुस्कुराता है, दुनिया में मौज़ूद और तमाम लोगों की दुख तकलीफों के बारे में सोचता है और खुद को कहीं न कहीं बहुतों से बेहतर परिस्थिति में पाता है। आखिर वो कैसे भी करके खुद को आश्स्वस्त कर ही लेता है कि अगर परिवर्तन ही ज़िन्दगी का नियम और निदान है तो बुरे वक्त का भी एक दिन बुरा वक़्त ज़रूर आएगा और एक दिन सब ठीक हो जायेगा।

गौरतलब हो कि हम सभी को इस दुनिया में विभिन्न उद्देश्यों के लिए भेजा गया है, इसलिए विधाता ने हमें उसी अनुसार निर्मित भी किया है। अलग-अलग लोगों की खुशी अलग-अलग दिलचस्पी पर आधारित होते हैं। कुछ लोगों को पैसा कमाने और रात दिन जोड़-घटाव करने का भूत सवार रहता है उसी में सबसे अधिक खुशी मिलती है। कुछ लोग अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाए रखने में खुशी महसूस करते हैं,  ऐसे अनेकों उदाहरण हो सकते हैं। हम जैसे समाजसेवी प्रवित्ति की बिरादरी के लिए तो खुशी, खुद के साथ-साथ दूसरों की भी परवाह करने में, दूसरों के लिए भी कुछ अच्छा करते रहने में ही निहित है।

इसीलिए मैंने पहले कभी लिखा था  "जिसे दूसरों की जश्न-ए-फ़तह ख़ुद की तरह मनाने की तालीम हो, जिसके दिल में समस्त आवाम के लिए सच्ची मोहब्बत हो, जिसे फायदा घाटा का हिसाब किये बिना नेकी करने की आदत हो, जो पूरे विश्व को एक परिवार मानता हो और जिसे सबको एक करने की नामुमकिन सी जिद्द हो; 

'उसकी तो रोज फतह ही फतह है, उसका हर दिन हर पल खुशियों से लबरेज है,  उसकी ज़िन्दगी, खुशियों की चाबी की मोहताज नहीं है!"दिल साफ़ हो और मन में कोई स्वार्थ न हो तो दूसरों को छोटी-छोटी खुशियाँ देने में इन्सान कभी नहीं थकता;

क्योंकि ये तो वह अपने सरल व्यवहार से, सहानुभूति और सद्भाव से स्वभावतः करता है; वह अच्छे से जानता है ये छोटी-छोटी खुशियाँ जो हम सहजता से औरों को देने का सामर्थ्य रखते हैं वही किसी के लिए बड़ी खुशी बन सकती है। शायद इसीलिए ऐसी भाव भंगिमाओं से स्थाई ख़ुशी मिलती है और मन मष्तिष्क प्रफ्फुलित रहता है। व्यक्तिगत तौर पर मैं ईश्वर कृपा से अपने आंतरिक मन के सकारात्मक संकेत को अक्सर निष्पादित करने में सफल रही हूँ क्योंकि मैं नकारात्मक भावनाओं ईर्ष्या, जलन, प्रतिस्पर्धा, स्वार्थ, बुरी नीयत ऐसे तमाम दुर्भावनाओं की घुसपैठी पर पैनी नज़र रख पाती हूँ और किसी तरह से हावी होने ही नहीं देती। 

इसीलिए अक्सर मुझे लोग सवाल करते हैं तुम्हारे मन में इतने अच्छे विचार कैसे उपजते हैं, कैसे इतना कर लेते हो? तो सीधा सा जवाब है "मेरा भी होवे भला, भला सभी का होय" की ही भावना हर वक्त मन में आता है। यही कारण है अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के दरम्यान जब हम अपनी अंतरंग ऊर्जा को प्रभावशाली ढंग से खर्च करते हैं तो उसकी विलक्षणता लोगों को आश्चर्यचकित करती है। इसलिए मेरा मानना ये भी है कुछ काम ऐसे करना चाहिए ज़िन्दगी में कि दूसरों की ज़िन्दगी की हर बला टलती जाये। दिल से दुआ कर सकें, कुछ गुप्त मदद भी करें और सामने वाले को कुछ भनक न लगे न ही उसे किसी के उपकार के बोझ का एहसास हो तो खुद को सचमुच बेहद खुशी होती है।

- शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
shashidip2001@gmail.com

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