कविता लेखन में लगन, परिश्रम, अभ्यास, निरंतरता व सक्रियता आवश्यक : डॉ. शहाबुद्दीन शेख
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नागपुर/पुणे। साहित्य की विभिन्न विधाओं में कविता का अपना विशेष महत्व है। कविता लेखन में लगन, परिश्रम, अभ्यास, निरंतरता व सक्रियता होनी चाहिए। इस आशय का प्रतिपादन विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने किया। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई; हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे तथा क्षितिज के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव व हिंदी पखवाड़ा समापन में आयोजित गोष्ठी में वे अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे।
मंच पर हिंदी आंदोलन परिवार के संस्थापक अध्यक्ष श्री. संजय भारद्वाज, श्रीमती सुधा भारद्वाज, विशिष्ट अतिथि मुंबई दूरदर्शन के पूर्व अधिकारी एवं गायक, संगीतकार व लेखक डॉ. अश्विनी कुमार तथा हिंदी साप्ताहिक, हडपसर एक्सप्रेस, पुणे के संपादक श्री दिनेश चंद्रा की गरिमामयी उपस्थिति थीं।
'कविता की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति' विषय पर पत्रकार भवन, गांधी चौक पुणे में आयोजित गोष्ठी में डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने आगे कहा कि कविता वास्तव में एक कला है और कवि उसका उपासक है कविता एक साधना है, साध्य नहीं। कविता स्वयं को जानने की एक अंतहीन प्रक्रिया भी है। कविता का अपना विश्व ही अलग है । कविता की अपनी शर्ते हैं | कविता के बिना जीवन व्यर्थ है। हम कविता में कुछ पाने के लिए नहीं बल्कि खो जाने के लिए जाते हैं। एक भ्रम है कि कवि कविता लिखता है, परंतु स्वयं कविता कवि को ढूंढने आती है। कविता में कवि की अनुभूति निहित होती है पर प्रभावशाली कविता के लिए सक्षम अभिव्यक्ति भी महत्वपूर्ण होती है।
प्रारंभ में प्रास्तविक भाषण में हिंदी आंदोलन परिवार की सक्रिय सदस्या श्रीमती सुधा भारद्वाज ने कहा कि हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे ने अपनी सफलता के 27 वर्ष पूर्ण किए हैं| इस अवधि में 277 गोष्ठियाँ संपन्न हो चुकी है। हिन्दी आंदोलन परिवार का घोष वाक्य है - 'उबंटू' अर्थात 'हम हैं ; इसलिए मैँ हूँ।'
हिंदी आंदोलन परिवार के अध्यक्ष श्री संजय भारद्वाज ने अतिथि परिचय देते हुए कहा कि कविता अपनी जीवन रेखा का विस्तार करती है। श्री दिनेश चंद्रा ने अपने मंतव्य में कहा कि कवियों की काव्य संवेदना एक दूसरे से भिन्न होती है। कवि विशेषतः गागर में सागर भर देने का भरसक प्रयास करता है। कविता की भाषा सरल, सहज, प्रभावशाली होने के साथ-साथ उसमें छंद बद्धता आवश्यक है।
इस अवसर पर डॉ. अश्विनी कुमार ने भी अपने मौलिक विचार प्रस्तुत किए। इस गोष्ठी में उपस्थित वरिष्ठ नागरिकों - मेजर सरजू प्रसाद, डॉ रमेश मिलन, माया मीरपुरी, डॉ. रजनी रणापिसे, डॉ. कांति देवी लोधी, वीनू जमुआर, अलका अग्रवाल, जिया बागपति, ऋता सिंह, डॉ. मंजू चोपड़ा, रवि किरण गलंगे, सुदर्शन मनचंदा, अनूप सक्सेना, अरविंद तिवारी, राकेश श्रीवास्तव, इंदिरा शबनम पूनावाला, पूजा भंटार, मीरा गिडवानी, नीलम छाबरिया, जयश्री सातपुते, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्षा श्रीमती सुवर्णा अशोक जाधव को पौधा व ग्रंथ देकर उन्हें सम्मानित किया गया।
गोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन श्रीमती ऋता सिंह तथा सम्मान सत्र का संचालन श्रीमती अपर्णा कड़सकर व श्रीमती स्वरांगी साने ने किया। श्री संजय भारद्वाज ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। राष्ट्रगान के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।