'भाषायी पत्रकारिता और रोज़गार के अवसर' विषय पर साप्ताहिक आभासी संगोष्ठी
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नागपुर/हैदराबाद। केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर भाषा विमर्श के अंतर्गत "भाषायी पत्रकारिता और रोज़गार के अवसर" विषय पर साप्ताहिक आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई।
ज्ञातव्य है कि भाषा और पत्रकारिता का अन्योन्याश्रित संबंध है। अन्य अनेक तथ्यों के साथ -साथ बीसवीं सदी औद्योगिक क्रांति की भी सदी रही है तथा इक्कीसवीं सदी को संचार क्रांति की सदी माना जा रहा है। संचार क्रांति के इस युग में पत्रकारिता के क्षेत्र में तकनीक के साथ व्यावसायिक परिवर्तन भी हुए हैं।
इसके अलावा पत्रकारिता के स्वरूप और प्रभाव क्षेत्र का भी विस्तार हुआ है जिससे रोज़गार के अवसर भी तेजी से बढ़े हैं तथा पत्रकारिता के कार्य की प्रकृति में भी बदलाव हुआ है। इसके परिणामस्वरूप रोज़गार के अवसरों के लिए भिन्न प्रकार के कौशलों और दक्षता की निहायत जरूरत है। नई पीढ़ी के लिए नित नई जानकारी नितांत आवश्यक है। आज की रविवारीय शाम भाषायी पत्रकारिता और रोजगार के अवसर के मद्देनजर, विषय विशेषज्ञों द्वारा संवाद में सारगर्भित एवं नवीनतम जानकारी प्रदान की गई जिसे दुनिया के लगभग पच्चीस देशों के सैकड़ों सुधी जनों ने आभासी रूप से आत्मसात किया।
कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकार डॉ॰ राजेश कुमार द्वारा भाषाई पत्रकारिता की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तदोपरांत केंद्रीय हिंदी संस्थान के मैसूर केंद्र के प्रो॰ परमान सिंह द्वारा बड़े ही संयत भाव और मृदुल वाणी में माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि और विशिष्ट वक्ता वृंद का संक्षिप्त परिचय कराते हुए विधिवत स्वागत किया गया एवं देश विदेश से जुड़े उर्ज्वसित करने वाले सुधी श्रोताओं के प्रति आदर प्रकट किया गया ।
कार्यक्रम के संचालन की बखूबी बागडोर संभालते हुए गुरुग्राम विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग के प्रो॰ राकेश कुमार योगी ने संक्षिप्त विषय प्रवर्तन के साथ विद्वानों की उपस्थिति पर हर्ष प्रकट किया और सधे- संतुलित शब्दो में भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली की प्रो॰ संगीता प्रणवेन्द्र को विषय पर मन्तव्य देने का आग्रह किया।
लगभग तीन दशकों से पत्रकारिता में पारंगत प्रो॰ संगीता प्रणवेन्द्र ने इस आयोजन पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि पत्रकारिता में विविध भाषाई प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है और अंग्रेज़ी का वर्चस्व कम हो रहा है। जन सामान्य अपनी भाषा के अखबार अधिक पढ़ रहे हैं। भाषाई पत्रकारिता में भारत की आत्मा अंतर्निहित है। सूचना क्रांति की घटना से भाषा और तकनीक का मजबूत गठजोड़ हुआ है। मोबाइल आदि हाथ के उपकरणों ने वैश्विक ग्राम और भाषाई पत्रकारिता के विकास को नए आयाम दिए हैं।
दो दशक पहले क्षेत्रीय खबरें तीसरे दिन स्थान पाती थीं किंतु अब तुरंत त्वरित गति से एक ही व्यक्ति गली, मुहल्ले की “आपकी खबर, आपकी भाषा में, देने लगा है।मुख्य समाचार पत्रों ने भी क्षेत्रीय झोली बना ली है। टी॰ वी॰ और इंटरनेट आदि हर माध्यम अपना स्थान बनाए हुए हैं। संवाद में सम्मिश्रित भावना बढ़ रही है। युवा पत्रकार वरिष्ठ जनों के अनुभव से सीखें। डिजिटल क्रांति होने से कम संसाधनों से भी उत्कृष्ट पत्रकारिता हो रही है और श्रोता तथा पाठक भी पनप रहे हैं। इंटरनेट पर नित लगभग तीन बिलियन वेब पेज सर्च किए जा रहे हैं। ट्वीटर पर 144 कैरेक्टर सक्रिय हैं। स्थानीय चैनलों में निरंतर वृद्धि हो रही है और दक्षतायुक्त रोज़गार के अवसर बढ़ रहे हैं। वर्ष 2030 तक भारत में डिजिटल वृद्धि सर्वाधिक होगी।
दैनिक जागरण के सुप्रसिद्ध पत्रकार श्री अनंत विजय ने कहा कि संप्रति भाषाई पत्रकारिता का स्वर्ण काल चल रहा है। भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र शीर्ष 10 में स्थान बनाए हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट बढ़ रहा है।मीडिया संस्थानों में कुशल पत्रकारों की आवश्यकता है जो भाषा और वर्तनी आदि की दक्षता के साथ अंतर्दृष्टि भी दे सकें। भारत के बाहर भी रोज़गार के असीमित अवसर हैं। जन संपर्क जरूरी है। हैरान करने वाली “रेडी टू पोस्ट और रेडी टू पेस्ट का चलन बढ़ा है। विज्ञापन देखकर खबर देना खतरनाक है।
वरिष्ठ पत्रकार और भाषा कर्मी श्री राहुल देव का कहना था कि आगामी तीन दशकों में भारतीय भाषाओं पर संकट दिख रहा है। अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ी अगली पीढ़ी में भारतीय भाषाओं में दक्षता और प्रयोग पर संदेह है। इस समय हमारे देश में लगभग 800 चैनल तथा 70 हजार पंजीकृत प्रकाशन हैं किंतु भाषावार रोज़गार प्राप्त पत्रकारों की संख्या ज्ञात नहीं है। कोविड के दौरान बहुत से पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया।
पत्रकारिता में भाषा ही पहला अस्त्र है जिसका शुद्धता से ज्ञान होना आवश्यक है। इसके साथ ही अंग्रेज़ी का कार्यसाधक भी निहायत जरूरी है। द्विभाषी और बहुभाषी पत्रकारों के लिए अपार अवसर हैं। सरकारी उपक्रम, निगम, निकाय, बैंक और बड़ी कंपनियाँ भी अपने यहाँ मीडिया अनुभाग खोलकर रोज़गार दे रही हैं किंतु हमें आगामी वर्षों में अपनी भाषाओं की शक्ति को बचाने का उपक्रम करना होगा तथा राजकाज की अनावश्यक स्तुति से बचना होगा।
भोपाल स्थित एशिया के पहले माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति एवं इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो॰ के॰ जी॰ सुरेश ने इस आयोजन पर अपार हर्ष प्रकट किया। उन्होंने कहा कि भाषाई पत्रकारिता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। राष्ट्रीय चैनल के साथ स्थानीय चैनल भी निरंतर खबरें दे रहे हैं जिनमें रुचि भी बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि उनके कार्यकाल में भारतीय जन संचार संस्थान के अमरावती परिसर में मराठी में और कोट्टायम में मलयालम में पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरू किया था जो सफल रहा। अब रीवा में ग्रामीण पत्रकारिता हेतु परिसर स्थापित हुआ है। अभी भोपाल में मोबाइल पत्रकारिता और सोशल मीडिया प्रबंधन में डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं।
सिनेमा अध्ययन क्षेत्र में पीएच॰ डी॰ करने की भी सुविधा है। भाषा की गुणवत्ता को लेकर हमें भी चिंता है। हमें किसी समाचार की कापी न कर कठोर परिश्रम से परिमार्जित करना होगा। अपनी भाषाओं से प्रेम रखते हुए अंग्रेज़ी को एक कौशल के रूप में लेना होगा तथा अनुवाद कला को विकसित करना होगा। इसके अलावा नौकरी के विज्ञापन में बहुकौशल के मद्देनजर अतिरिक्त भाषा के ज्ञान को वांछनीय बनाना चाहिए। सावधानी के साथ गुणवत्ता पर ज़ोर जरूरी है। निःसन्देह भाषाई पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल है और रोज़गार की अपार संभावनाएँ हैं।
जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित डॉ॰तोमियो मिजोकामि का मत था कि विदेशी नामों को शुद्धता से लिखना श्रेयस्कर होगा तथा अर्थ का अनर्थ न कर खबरों की तह में जाकर सच को ही प्रकट करना चाहिए। पूना से जुड़ी वसुंधरा कासीकर का कहना था कि वर्तनी की अशुद्धियों पर यथेष्ट ध्यान आवश्यक दे। मीडिया अनुभवी श्री राकेश शुक्ल का मंतव्य था कि मीडिया के बड़े घरानों और सत्ता के दबाव से बचना चाहिए। अतएव अच्छे पाठक, अच्छे श्रोता और अच्छे दर्शक भी व्यापक दृष्टिकोण अख़्तियार करें।
अध्यक्षीय उद्बोधन में पद्मश्री से सम्मानित पत्रकार श्री आलोक मेहता ने इस आयोजन पर खुशी जाहिर की और कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में अखबार जन जागरण का महत्वपूर्ण कार्य करते थे। पूंजी के लिए कारपोरेट जगत के बिना अखबार चलना मुश्किल होता है। चीन और जापान आदि में भी अंग्रेज़ी अखबार निकलते हैं किंतु हमारे यहाँ अंग्रेज़ी पर निर्भरता सीमित होती जा रही है। राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रह चुके श्री मेहता ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारिता में रोज़गार के अपार अवसर हैं।
आज अनेक अखबार केवल महिलाओं द्वारा ही चलाये जा रहे हैं। खबर लहरिया और गाँव कनेक्शन, आदि प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। कहना न होगा कि आजकल राजनीति और अपराध की सनसनीखेज खबरें ज्यादा आती हैं। कहीं रेटिंग के लिए भरोसा न उठ जाए। देश विदेश और क्षेत्र विशेष की समस्याएँ एक सी नहीं होती। युगीन परिवेश में “स्टार्ट अप" का सहारा लेना होगा। पत्रकारिता की अच्छी पुस्तकें छात्रों तक सुलभ हों। डॉक्टर और सैनिक की तरह मिडियाकर्मी को भी सिर पर कफन बाँधकर निकलना होगा। भारतीय भाषाओं में परस्पर आदान- प्रदान आवश्यक है। व्यापार बढ़ेगा तो रोज़गार बढ़ना भी स्वाभाविक है।
विज्ञापन में गुणवत्ता आवश्यक है। उन्होंने अज्ञेय, मनोहर श्याम जोशी और राजेंद्र माथुर आदि के साथ अपने जीवन के विस्तृत अनुभव भी साझा किए और कहा कि सच्चाई के लिए खबरों में बदलाव तथा गलती होने पर क्षमा याचना आवश्यक है। हमें पत्रकारिता में गुणवत्ता के साथ आर्थिक संसाधन, कुशल और सुयोग्य नेतृत्त्व तथा निजदोषदर्शन की भी आवश्यकता है।
इस कार्यक्रम के प्रणेता आदरणीय श्री अनिल जोशी जी के सान्निध्य में आयोजन से सभी महाद्वीपों के लगभग पच्चीस से अधिक देशों के लेखक, विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार एवं शोध छात्र जुड़कर लाभान्वित हुए जिनमें अमेरिका से अनूप भार्गव, मीरा सिंह, यू॰ के॰ से दिव्या माथुर, थाइलैंड से शिखा रस्तोगी, चीन से विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से संध्या सिंह, तथा भारत से स्वरांगी साने तथा प्रो. जगन्नाथन, प्रो. रितेश पाठक, अलका चौधरी, शोभना जैन, वरुण कुमार, राजेश जोशी, मीनाक्षी शेरोय, राखी तिवारी, किरण खन्ना, प्रसून लतान्त, यति अत्री, सुधांशु वशिष्ठ, धर्मेंद्र प्रताप सिंह, राहुल खटे, वागीश गौतम, प्रकाश निर्मल, राकेश पाण्डेय, सीमा शर्मा, राकेश चोकर, विजय प्रभाकर नगरकर, वसुंधरा काशिकर, गंगाधर वानोडे, प्रमोद कुमार शर्मा, अपर्णा सारस्वत, अभिजीत भागवत और विजय मिश्र तथा मधु वर्मा आदि सैकड़ों सुधीजन मुख्य रूप से थे।
अंत में जापान के ओसाका विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ॰ वेद प्रकाश ने अपनी ओजपूर्ण वाणी में माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशिष्ट वक्तावृंद तथा सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश -विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया। प्रो॰ वेद प्रकाश ने भारत–जापान संबंधी अनेक संदर्भ देते हुए हिंदी और भारतीय भाषाओं का वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, श्रोताओं, अभिप्रेरकों , संयोजकों, मार्गदर्शकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय से धन्यवाद दिया। ज्ञातव्य है कि यह कार्यक्रम “वैश्विक हिंदी परिवार शीर्षक से यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। डॉ॰ जयशंकर यादव ने बहुत ही सुंदर तरीके से रिपोर्ट लेखन कार्य संपन्न किया।
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- डॉ. गंगाधर वानोडे,
क्षेत्रीय निदेशक,
केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र