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एक दीप मेरा भी



अंधियारे महल में
अंधेरी गलियों में
अंधेरे घर में
जहां सूर्य किरण पहुंचने को तड़पे
पहुंच जाए 
मेरी खुशीयों का 
एक कतरा वहां भी।

प्रभु
कितना दिया मुझे
झलमल झलमल दीपों की माला, 
मेरे हिस्से का एक दीप उधर भी।

उसके सूखे नयनों में
हो प्रेम की बौछार 
प्रज्वलित हो
स्नेही दिपावली 
मैं भी गाऊं
वो भी गाएं
राग भैरवी 
मल्हार छा जाएं
सुजलाम्- सुफलाम्
मलयज शीतलाम्
इस गुलिस्ताँ में फूल खिल जाएं।।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर (महाराष्ट्र)
काव्य 8362934229736766451
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