वही रह गया भीगने से!
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रह रह कर जिसके लिए।
वही रह गया भीगने से
जिसके जिगर को
जला गई बारिश की बूंदे।
वही रह गया भीगने से।
जिसकी उल्फत में बेकरार था दिल
जो रातें गुजरी किसी के सपनों के संग
वही सपना रह गया भीगने से।
उल्फत भरी बातें, वो मेहबूब का साथ
चाय की प्याली और भीगे तेरे लब,
बेकरार आरजू भरा दिल
फिर रह गया भीगने से।
जाने कैसी थी वो बारिश,
या अरमानों का सैलाब।
मौसम ए इश्क था,
रूह को भिगो गया,
और जिस्म रह गया भीगने से ।
कुछ टुकड़े तुम्हारी यादों के
बड़ी देर से ठहरे हुए हैं
कैसे उठे बादल
कहां जा के टकराए
अहसास –ए–मसर्रत
फिर रह गया भीगने से।
- तौकीर फातमा (अदा)
कटनी (मध्यप्रदेश)