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वीएसएसएस ने स्वास्थ्य के देवता धनवंतरी भगवान का किया पूजन




नागपुर। शनिवार को वीएसएसएस की टीम ने जरीपटका में स्वास्थ्य के देवता धनवंतरी भगवान का पूजन कर धनवंतरी जयंती मनाई। महाराष्ट्र अध्यक्ष प्रताप मोटवानी ने कहा कि धन्वन्तरि हिन्दू मान्यता के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने आयुर्वेद प्रवर्तन किया। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। 

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था।

आयुर्वेद की मूल अवधारणा मूल रूप से धन्वंतरि से जुड़ी हुई है, जिन्हें हिंदू चिकित्सा का देवता माना जाता है। धन्वंतरि को एक पौराणिक देवता माना जाता है जो एक हाथ में अमृत और दूसरी ओर आयुर्वेद के साथ दूध सागर मंथन के अंत में पैदा हुए थे। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया जिसमें 14 रत्न निकले थे अंतिम रतन अमृत था जिसे धनवंतरी हाथ में कलश लिए हुए अमृत को लेकर प्रकट हुए थे माता लक्ष्मी, रंभा, धनवंतरी मानव रूप में प्रकट हुए थे तब भगवान विष्णु धन्वंतरी के रूप में प्रकट हुए थे। 

भगवान विष्णु ने कहा देवता और असुर एक ही पिता कश्यप की संतान है देवता आत्मा को और असुर शरीर को ही सब कुछ मानते थे इस बात को लेकर समुंदर तट पर गहन विचार चला था। 

समुंद्र मंथन से जो रतन निकले थे उनका विभाजन भी देव और दानवो में हुआ था रत्नो के विभाजन को लेकर संघर्ष भी हुआ था तब धन्वंतरी ने अमृत रसायन का निर्माण किया था जिसे प्राप्त करने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध भी हुआ था उसी को देवासुर संग्राम भी कहा जाता है। 

महिला अध्यक्ष डॉ भाग्यश्री खेमचंदानी ने बताया कि भगवान धन्वंतरी के कथन के अनुसार 101 प्रकार की मृत्यु मनुष्य के जीवन में आती है इसमें एक ही काल मृत्यु होती है जो प्रत्येक जीवधारी को स्वीकार करनी पड़ती है शेष 100 अकाल मृत्यु होती है जिन्हें रोका जा सकता है उन्हें रोकने का प्रयास ही चिकित्सा है। 

नागपुर महिला अध्यक्ष पूजा मोरयानी ने बताया कि धनवंतरी के आयुर्वेद का इतना प्रभाव था सभी देवता भी उनकी चिकित्सा का सम्मान करते थे क्योंकि जो ज्ञान धन्वंतरी को प्राप्त हो गया था वह स्वर्ग में भी दुर्लभ था ज्ञान औषधि से ना केवल रोग बल्कि वृद्धावस्था भी दूर की जा सकती थी अपितु इससे अकाल मृत्यु से भी बचा जा सकता है, पूजन पंडित सुनील शर्मा महाराज ने करवाया।
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