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सहेलियां...



 सुकून भरीं इतवार सी होतीं हैं।
बातों के बाज़ार सी होती हैं ।
 हंसी ठहाकों का भंडार होतीं हैं ।।

सहेलियां एक दूसरे की ढाल सी होतीं हैं।
वाकई बड़े कमाल की होतीं हैं।।

चुलबुली नादान सी,
शरारत की दुकान सी,
थोड़ी शैतान, थोड़ी हैरान,
दिनभर की जो सारी थकान उतार दे।
सहेली वो प्याली, चाय सी होती है।।   

माँ - बाप के बाद जो सबसे पहले 
आपकी परेशानी चेहरे से पहचान ले।
वो सहेली ही है जो बिन बोले
सारे  राज़  जान लेती  है।।

- डॉ. तौकीर फातमा 'अदा'
कटनी, मध्यप्रदेश 
काव्य 1470887126683445548
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